महाकवि कालिदास की गणना संस्कृत साहित्य में शीर्षस्थ कवियों में की जाती है। उनकी सात कृतियों का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हो चुका है। वस्तुतः कालिदास का नाम विश्व साहित्य के प्रमुख कवियों में शुमार हो चुका है। Read more about महाकवि कालिदास …
महाकवि कालिदास की गणना संस्कृत साहित्य में शीर्षस्थ कवियों में की जाती है। उनकी सात कृतियों का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हो चुका है। वस्तुतः कालिदास का नाम विश्व साहित्य के प्रमुख कवियों में शुमार हो चुका है। Read more about महाकवि कालिदास …
हरियाली का वास्तव में मानव-जीवन में यों ही बड़ा महत्व माना जाता है। हरा होना यानि सुखी और समृद्ध होना माना जाता है। इसी प्रकार जब किसी स्त्री को ‘गोद हरी’ होने का आशीर्वाद दिया जाता है, तो उसका अर्थ होता है गोद भरना यानि पुत्रवती होना। Read more about भारत में हरित क्रान्ति …
दोहा :
बंदी मागध सूतगन बिरुद बदहिं मतिधीर।
करहिं निछावरि लोग सब हय गय धन मनि चीर॥262॥
भावार्थ:- धीर बुद्धि वाले, भाट, मागध और सूत लोग विरुदावली (कीर्ति) का बखान कर रहे हैं। सब लोग घोड़े, हाथी, धन, मणि और वस्त्र निछावर कर रहे हैं॥262॥ Read more about जयमाला पहनाना, परशुराम का आगमन व क्रोध …
दोहा :
राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि।
चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि॥260॥
भावार्थ:- श्री रामजी ने सब लोगों की ओर देखा और उन्हें चित्र में लिखे हुए से देखकर फिर कृपाधाम श्री रामजी ने सीताजी की ओर देखा और उन्हें विशेष व्याकुल जाना॥260॥ Read more about धनुषभंग …
जनक बचन सुनि सब नर नारी। देखि जानकिहि भए दुखारी॥
माखे लखनु कुटिल भइँ भौंहें। रदपट फरकत नयन रिसौंहें॥4॥
भावार्थ:- जनक के वचन सुनकर सभी स्त्री-पुरुष जानकीजी की ओर देखकर दुःखी हुए, परन्तु लक्ष्मणजी तमतमा उठे, उनकी भौंहें टेढ़ी हो गईं, होठ फड़कने लगे और नेत्र क्रोध से लाल हो गए॥4॥ Read more about श्री लक्ष्मण जी का क्रोध …
तब बंदीजन जनक बोलाए। बिरिदावली कहत चलि आए॥
कह नृपु जाइ कहहु पन मोरा। चले भाट हियँ हरषु न थोरा॥4॥
भावार्थ:- तब राजा जनक ने वंदीजनों (भाटों) को बुलाया। वे विरुदावली (वंश की कीर्ति) गाते हुए चले आए। राजा ने कहा- जाकर मेरा प्रण सबसे कहो। भाट चले, उनके हृदय में कम आनंद न था॥4॥ Read more about बंदीजनों द्वारा जनकप्रतिज्ञा की घोषणा, राजाओं से धनुष न उठना, जनक की निराशाजनक वाणी …
दोहा :
जानि सुअवसरु सीय तब पठई जनक बोलाइ।
चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं िलवाइ॥246॥
भावार्थ:- तब सुअवसर जानकर जनकजी ने सीताजी को बुला भेजा। सब चतुर और सुंदर सखियाँ आरदपूर्वक उन्हें लिवा चलीं॥246॥ Read more about श्री सीताजी का यज्ञशाला में प्रवेश …
चौपाई :
सीय स्वयंबरू देखिअ जाई। ईसु काहि धौं देइ बड़ाई॥
लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई॥1॥
भावार्थ:- चलकर सीताजी के स्वयंवर को देखना चाहिए। देखें ईश्वर किसको बड़ाई देते हैं। लक्ष्मणजी ने कहा- हे नाथ! जिस पर आपकी कृपा होगी, वही बड़ाई का पात्र होगा (धनुष तोड़ने का श्रेय उसी को प्राप्त होगा)॥1॥ Read more about श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का यज्ञशाला में प्रवेश …
दोहा :
देखन मिस मृग बिहग तरु फिरइ बहोरि बहोरि।
निरखि निरखि रघुबीर छबि बाढ़इ प्रीति न थोरि॥234॥
भावार्थ:- मृग, पक्षी और वृक्षों को देखने के बहाने सीताजी बार-बार घूम जाती हैं और श्री रामजी की छबि देख-देखकर उनका प्रेम कम नहीं बढ़ रहा है। (अर्थात् बहुत ही बढ़ता जाता है)॥234॥ Read more about श्री सीताजी को पार्वती जी का वरदान …
दोहा :
उठे लखनु निसि बिगत सुनि अरुनसिखा धुनि कान।
गुर तें पहिलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान॥226॥
भावार्थ:- रात बीतने पर, मुर्गे का शब्द कानों से सुनकर लक्ष्मणजी उठे। जगत के स्वामी सुजान श्री रामचन्द्रजी भी गुरु से पहले ही जाग गए॥226॥ Read more about श्री सीता-रामजी का पुष्पवाटिका में परस्पर दर्शन …