श्री लक्ष्मण-सुमित्रा संवाद

हरषित हृदयँ मातु पहिं आए। मनहुँ अंध फिरि लोचन पाए॥
जाइ जननि पग नायउ माथा। मनु रघुनंदन जानकि साथा॥2॥

भावार्थ:- वे हर्षित हृदय से माता सुमित्राजी के पास आए, मानो अंधा फिर से नेत्र पा गया हो। उन्होंने जाकर माता के चरणों में मस्तक नवाया, किन्तु उनका मन रघुकुल को आनंद देने वाले श्री रामजी और जानकीजी के साथ था॥2॥ Read more about श्री लक्ष्मण-सुमित्रा संवाद