परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।
वर्जयेत् तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम्॥
अध्याय दो-श्लोक पाँच
आचार्य चाणक्य ने व्यावहारिक तथ्य की ओर इशारा करते हुए लिखा है कि जो व्यक्ति पीठ पीछे किसी की निन्दा करता है और मुख के सामने मीठी वाणी बोलता है, जो व्यक्ति उस घड़े के समान व्यवहार करता है जिसमें ऊपर दूध नजर आता है अन्दर विष भरा है, तो ऐसा व्यक्ति न तो विश्वसनीय होता है और न ही सच्चा मित्र, ऐसे व्यक्ति को तो त्यागने में ही भलाई है। Read more about मित्र भाव …