लंकाकाण्ड - Lanka Kand

सुबेल पर श्री रामजी की झाँकी

चौपाई :
इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा॥
सिखर एक उतंग अति देखी। परम रम्य सम सुभ्र बिसेषी॥1॥

भावार्थ:- : यहाँ श्री रघुवीर सुबेल पर्वत पर सेना की बड़ी भीड़ (बड़े समूह) के साथ उतरे। पर्वत का एक बहुत ऊँचा, परम रमणीय, समतल और विशेष रूप से उज्ज्वल शिखर देखकर-॥1॥ Read more about सुबेल पर श्री रामजी की झाँकी

लंकाकाण्ड - Lanka Kand

रावण को मन्दोदरी का समझाना

दोहा :
बाँध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस।
सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस॥5॥

भावार्थ:- : वननिधि, नीरनिधि, जलधि, सिंधु, वारीश, तोयनिधि, कंपति, उदधि, पयोधि, नदीश को क्या सचमुच ही बाँध लिया?॥5॥ Read more about रावण को मन्दोदरी का समझाना

लंकाकाण्ड - Lanka Kand

श्री राम का सेना सहित समुद्र पार करना

दोहा :
सेतुबंध भइ भीर अति कपि नभ पंथ उड़ाहिं।
अपर जलचरन्हि ऊपर चढ़ि चढ़ि पारहि जाहिं॥4॥

भावार्थ:- : सेतुबन्ध पर बड़ी भीड़ हो गई, इससे कुछ वानर आकाश मार्ग से उड़ने लगे और दूसरे (कितने ही) जलचर जीवों पर चढ़-चढ़कर पार जा रहे हैं॥4॥ Read more about श्री राम का सेना सहित समुद्र पार करना

लंकाकाण्ड - Lanka Kand

नल-नील द्वारा पुल बांधना, श्री राम जी द्वारा श्री रामेश्वर की स्थापना

सोरठा :
सिंधु बचन सुनि राम सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ।
अब बिलंबु केहि काम करहु सेतु उतरै कटकु॥

भावार्थ:- : समुद्र के वचन सुनकर प्रभु श्री रामजी ने मंत्रियों को बुलाकर ऐसा कहा- अब विलंब किसलिए हो रहा है? सेतु (पुल) तैयार करो, जिसमें सेना उतरे।॥ Read more about नल-नील द्वारा पुल बांधना, श्री राम जी द्वारा श्री रामेश्वर की स्थापना

लंकाकाण्ड - Lanka Kand

लंकाकाण्ड मंगलाचरण

श्लोक :
रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहं
योगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्‌।
मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवं
वन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्‌॥1॥

भावार्थ:- : कामदेव के शत्रु शिवजी के सेव्य, भव (जन्म-मृत्यु) के भय को हरने वाले, काल रूपी मतवाले हाथी के लिए सिंह के समान, योगियों के स्वामी (योगीश्वर), ज्ञान के द्वारा जानने योग्य, गुणों की निधि, अजेय, निर्गुण, निर्विकार, माया से परे, देवताओं के स्वामी, दुष्टों के वध में तत्पर, ब्राह्मणवृन्द के एकमात्र देवता (रक्षक), जल वाले मेघ के समान सुंदर श्याम, कमल के से नेत्र वाले, पृथ्वीपति (राजा) के रूप में परमदेव श्री रामजी की मैं वंदना करता हूँ॥1॥ Read more about लंकाकाण्ड मंगलाचरण

सुन्दरकाण्ड - Sundara Kanda

समुद्र पर श्री राम जी का क्रोध

दोहा :
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥57॥

भावार्थ:- इधर तीन दिन बीत गए, किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता। तब श्री रामजी क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती!॥57॥ Read more about समुद्र पर श्री राम जी का क्रोध

सुन्दरकाण्ड - Sundara Kanda

दूत का रावण को समझाना और लक्ष्मण जी का पत्र देना

दोहा :
की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर।
कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर ॥53॥

भावार्थ:- उनसे तेरी भेंट हुई या वे कानों से मेरा सुयश सुनकर ही लौट गए? शत्रु सेना का तेज और बल बताता क्यों नहीं? तेरा चित्त बहुत ही चकित (भौंचक्का सा) हो रहा है॥53॥ Read more about दूत का रावण को समझाना और लक्ष्मण जी का पत्र देना

सुन्दरकाण्ड - Sundara Kanda

लक्ष्मण जी का रावण के लिए सन्देश देना

सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा॥
संकुल मकर उरग झष जाती। अति अगाध दुस्तर सब भाँति॥3॥

भावार्थ:- हे वीर वानरराज सुग्रीव और लंकापति विभीषण! सुनो, इस गहरे समुद्र को किस प्रकार पार किया जाए? अनेक जाति के मगर, साँप और मछलियों से भरा हुआ यह अत्यंत अथाह समुद्र पार करने में सब प्रकार से कठिन है॥3॥ Read more about लक्ष्मण जी का रावण के लिए सन्देश देना

सुन्दरकाण्ड - Sundara Kanda

विभीषण जी का श्री राम की शरण लेना

दोहा :
रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।
मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि॥41॥

भावार्थ:- श्री रामजी सत्य संकल्प एवं (सर्वसमर्थ) प्रभु हैं और (हे रावण) तुम्हारी सभा काल के वश है। अतः मैं अब श्री रघुवीर की शरण जाता हूँ, मुझे दोष न देना॥41॥ Read more about विभीषण जी का श्री राम की शरण लेना

सुन्दरकाण्ड - Sundara Kanda

रावण को विभीषण का समझाना और विभीषण का अपमान

दोहा :
सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥37॥

भावार्थ:- मंत्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥37॥ Read more about रावण को विभीषण का समझाना और विभीषण का अपमान