दष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशय: ।।
अध्याय एक-श्लोक पांच
चाणक्य ने कहा है कि अज्ञानी व्यक्ति को कोई भी बात समझायी जा सकती है क्योंकि उसे किसी बात का ज्ञान तो है नहीं। अतः उसे जो कुछ समझाया जायेगा वह समझ सकता है। ज्ञानी को तो कोई बात बिल्कुल सही तौर पर समझायी ही जा सकती है। किन्तु अल्पज्ञानी को कोई भी बात नहीं समझायी जा सकती, क्योंकि उसमें अल्पज्ञान के रूप में अधकचरे ज्ञान का समावेश होता है जो कि किसी भी बात को उसके मस्तिष्क तक पहुँचने ही नहीं देता। इस बात को इस रूप में जानें कि जिस गृहस्थ की पत्नी दुष्ट होती है, उसका जीवन मरण के बराबर हो जाता है और जिसका मित्र नीच स्वभाव का हो उसका भी अन्त निकट ही समझा जाना चाहिए। ठीक इसी प्रकार जिसके नौकर-चाकर मालिक के सामने बोलते हों तो उसके लिए भी जीवन का कोई अर्थ नहीं होता है। Read more about समाज …