महापण्डित आचार्य चाणक्य जो विश्व विख्यात ग्रंथ ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ के रचयिता हैं, को सत्ता परिवर्तन करने वाले महान राजनीतिज्ञ के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने नन्द वंश के उस समय के सर्वशक्तिशाली राजा महानन्द का विनाश करके उस राज्य पर अपने अनुयायी, शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को प्रतिष्ठित किया। चाणक्य, अपने समय के महाविद्वान पण्डित आचार्य चणक के पुत्र थे। चणक के ज्ञानी, तेजस्वी पुत्र होने के कारण ही उन्हें चाणक्य कहा जाने लगा। उनका वास्तविक नाम विष्णुगुप्त है। उनके आठ नामों का उल्लेख उनके ग्रंथों में मिलता है जो इस प्रकार हैं-वात्स्यायन, मल्लनाग, कौटिल्य, चाणक्य, द्रमिल, पक्षिलस्वामी, विष्णुगुप्त तथा अंगल। अपनी ‘कौटिल्य नीति’ के कारण इन्हें मुख्य रूप से ‘कौटिल्य’ नाम से जाना गया। ‘चाणक्य नीति’ उनके विश्व विख्यात ग्रंथ“कौटिल्य अर्थशास्त्र” से उन्हीं द्वारा अलग किये गये 17 अध्यायों पर आधारित ग्रंथ रचना है जिसे चाणक्य ने अलग से ‘चाणक्य नीति’ नाम दिया। इस ग्रंथ की रचना के पीछे महापण्डित का मूल उद्देश्य यह था कि उनकी नीतियों का लाभ आम इन्सान भी युगों-युगों तक उठाता रहे। ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ वास्तव में विशद् ग्रंथ है, जिसमें राज्य, राजा, जनता, विधान, तथा समाज के नियमों की व्याख्या की गई है। दूरदर्शी चाणक्य को इस बात का ज्ञान था कि समय के कालचक्र के साथ राज्य और समाज की व्यवस्थाएं बदलती रहेंगी, ऐसा भी समय आयेगा जब कि राजशाही टूटने पर समाज की व्यवस्था और विधान बदलेगा। इस समय भी उनकी ‘चाणक्य नीति’ की उपयोगिता हर किसी के लिए हितकर रहेगी। कैसी भी समाज की व्यवस्था बनती रहे, पर इसे समाज में मानव तो रहेगा, मानव बिना समाज की कल्पना निरर्थक है-जब तक धरती पर मानव रहेगा, उनकी ‘चाणक्य नीति’ की उपयोगिता बनी रहेगी, क्योंकि चाणक्य नीति’ मानव को सही मानव बनाने का ज्ञान प्रदान करती है।
‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’, जिसमें अपनी ‘नीतियों’ को आम आदमियों के लिए चाणक्य ने अलग करके पुस्तकाकार रूप दिया, उसकी गहराई के बारे में जानकारी पाने के लिए हमें मूल ग्रंथ ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र के बारे में संक्षिप्त जानकारी लेनी आवश्यक है-इस ग्रंथ के वर्णित राज्य-सिद्धान्तों के साथ-साथ राज्य प्रबन्ध सम्बन्धी सूक्ष्म तत्त्वों को पिरोया गया है। इस ग्रंथ के विषय को देखकर संसार के बड़े से बड़े कूटनीतिज्ञ भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते हैं; भारतीयों के राजनैतिक ज्ञान की प्रौढ़ता का लोहा मानते हैं। इस ग्रंथ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सिद्धान्त और व्यवहार का आदर्श और यथार्थ का तथा ज्ञान और क्रिया का अद्भुत और सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। इसीलिए आज इस ग्रंथ का महत्त्व यूनान के महान् दार्शनिक अरस्तु और प्लेटो के ग्रंथों से कहीं अधिक आंका जाता है।
चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में स्वयं लिखा है-
“पृथिव्यां लाभे पालने च यावन्त्यर्थशास्त्राणि पूर्वाचार्ये;
प्रस्थापितानि प्रायशस्तानि संहृत्यैकमिदमर्थशास्त्रं कृतम्।”
(प्राचीन आचार्यों ने राज्य की प्राप्ति की और उसको सुरक्षा से सम्बन्धित जितने भी राजनीतिशास्त्रों की रचना की है, उन सबके सार का संग्रह करके मैंने अपना अर्थशास्त्र लिखा है।)
इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भारत में राजनीति विषय पर पहले भी प्राचीन काल में ग्रंथ लिखे गये, पर अब उपलब्ध नहीं; काल के हाथों नष्ट हो गये। यह सौभाग्य का विषय है कि चाणक्य का अर्थशास्त्र हमारे लिए सुलभ हो गया। यह ग्रंथ भी शताब्दियों तक अंधकार में खोया रहा। काफी समय बाद पुरानी पाण्डुलिपियों के बीच मूल प्रति के रूप में चाणक्य की हस्तलिपि में मिला और इसका प्रकाशन संसार हित में सुलभ हो सका। आचार्य चाणक्य लिखित ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र के अलग किये गये ‘चाणक्य नीति’ के अलावा ‘चाणक्य सूत्र’ 15 अधिकरणों तथा 160 प्रकरणों में विभक्त ग्रंथ है। इसमें राजा के कर्तव्यों, गुप्तचरों की नियुक्ति, सेना पर कड़ी दृष्टि, मंत्रियों की नियुक्ति और समय-समय पर उनकी परीक्षा, कर विधान, भूमि, दुर्ग, कोश की देखभाल, युद्ध, सन्धि तथा तटस्थता के साथ-साथ घोषित शत्रु और छद्मशत्रु की पहचान के अतिरिक्त अपने पुत्रों तक से सावधान रहने आदि का विस्तृत वर्णन है। इस प्रकार इस ग्रंथ में राजनीति, विज्ञान का सांगोपांग और समग्र रूप से वर्णन हुआ है। इस ग्रंथ में कलाओं, शिल्पों को समुन्नत करने की अनेक विधियां बतायी गयी हैं। मदिरा जैसी नशीली वस्तुओं पर नियंत्रण रखने, वनों और खानों का लाभ उठाने, सिंचाई के साधनों को अपनाने तथा दुर्भिक्ष के समय जनहित करने योग्य कार्यों और उपायों का उपयोगी वर्णन किया गया है। इतना ही नहीं, दण्ड विधान तथा अन्य रीति-नीति सम्बन्धी बातों का भी व्यवहारिक चित्रण तथा सिद्धान्त और व्यवहार का अद्भुत यथार्थ से भरपूर समन्वय इस ग्रंथ में किया गया है।