राजपत्नी, गुरुपत्नी मित्रपत्नी तथैव च।
पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चेता मातरःस्मृताः।।
अध्याय पाँच-श्लोक तेइस
राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता इन सबको अपनी माता के समान मानना चाहिए, इन्हें अपनी माँ के समान ही आदर-सम्मान देना चाहिए, इनके रूप सौन्दर्य यौवन पर आसक्त होना, इनके प्रति कुदृष्टि रखना अथवा कामुकता की भावना को स्थान देना दोष एवं पाप है, जो व्यक्ति ऐसा करता है, वह अपनी माता के साथ अनैतिक आचरण करता है। वस्तुतः राजपत्नी, गुरु पत्नी, मित्र की पत्नी और सास आदि माता के समान ही श्रद्धेय हैं।
इनका सदा सम्मान करना चाहिए।