नारी - Woman

नारी

कोकिलानां स्वरो रूपं स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम्।
विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम्।।

अध्याय तीन-श्लोक नौ

कोयल की मीठी वाणी अर्थात् उसका कर्णप्रिय स्वर ही उसका रूप है, कोयल भी कौए के समान काली और कुरूप होती है, परन्तु उसका स्वर लोगों के कानों को इतना मधुर और प्रिय लगता है कि वे उसके कुरूप होने की उपेक्षा करके, उसकी भद्दी शक्ल का ध्यान न देकर उससे स्नेह करने लगते हैं। Read more about नारी

श्रेष्ठ पिता - Best Father

श्रेष्ठ पिता

लालयेत् पञ्चवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत्।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्।।

अध्याय तीन-श्लोक अट्ठारह

बुद्धिमान पिता का कर्तव्य है कि बच्चों को पाँच वर्ष की आयु तक खूब लाड़-प्यार करे क्योंकि सन्तान का प्यार-दुलार से पालन करना तो माता-पिता की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। छह से पन्द्रह वर्ष तक बुरा काम करने पर दण्डित करना भी उचित है, क्योंकि यही अवस्था पढ़ने-लिखने की, सीखने और चरित्र- निर्माण करने की, अच्छी प्रवृत्तियों को अपनाने की होती है। बच्चे को सोलह वर्ष में आते ही उसके साथ मित्रवत् व्यवहार करके कोई भी बात युक्तिपूर्वक समझानी चाहिये। कठोरता बरतने पर वह विरोध भी कर सकता है, विद्रोही बनकर घर भी छोड़ सकता है। Read more about श्रेष्ठ पिता

श्रेष्ठ माता - Great Mother

श्रेष्ठ माता

राजपत्नी, गुरुपत्नी मित्रपत्नी तथैव च।
पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चेता मातरःस्मृताः।।

अध्याय पाँच-श्लोक तेइस

राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता इन सबको अपनी माता के समान मानना चाहिए, इन्हें अपनी माँ के समान ही आदर-सम्मान देना चाहिए, इनके रूप सौन्दर्य यौवन पर आसक्त होना, इनके प्रति कुदृष्टि रखना अथवा कामुकता की भावना को स्थान देना दोष एवं पाप है, जो व्यक्ति ऐसा करता है, वह अपनी माता के साथ अनैतिक आचरण करता है। वस्तुतः राजपत्नी, गुरु पत्नी, मित्र की पत्नी और सास आदि माता के समान ही श्रद्धेय हैं। Read more about श्रेष्ठ माता

विद्या - Knowledge

विद्या

रूप-यौवन-सम्पन्नाः विशालकुलसम्भवाः।
विद्याहीनाः न शोभन्ते निर्गन्धा इव किशुकाः।।

अध्याय तीन–श्लोक आठ

किंशुक के रक्तवर्ण के पुष्प देखने में तो खूबसूरत लगते हैं, परन्तु उनमें गन्ध नहीं होती इसलिए अच्छे व आकर्षक रंग को लिये रहने पर भी गन्ध रहित होने के कारण उपेक्षित होते हैं। लोगों का ध्यान उनकी ओर आकृष्ट नहीं होता तथा देवताओं के ऊपर चढ़ने से भी वंचित रहते हैं। इसी तरह उच्च कुल में जन्म लेने के पश्चात् रूपवान युवक भी विद्याहीन होने पर समाज में उचित आदर-सम्मान प्राप्त नहीं कर पाते। विद्या के अभाव में उनका ऊँचा वंश, रूप-सौन्दर्य, यौवन सबके सब उपेक्षित हो जाते हैं। अभिप्राय यह है कि उच्च वंश, सुन्दर रूप और सशक्त यौवन की शोभा विद्या से ही होती है। विद्या के अभाव में ये सब गुण किंशुक के पुष्पों के समान निरर्थक हो जाते हैं। Read more about विद्या

ईश्वर - God

ईश्वर

प्रणम्य शिरसा देवं त्रैलोक्याधिपतिं प्रभुम्।
नानाशास्त्रोद्धृतं वक्ष्ये राजनीति समुच्चयम्।।

अध्याय एक-श्लोक एक

मैं तीनों लोकों के स्वामी भगवान के चरणों को शीश नवाकर प्रणाम करता हूँ, तदोपरान्त मैं राजनीति के 37 सिद्धान्तों का उल्लेख जन-कल्याण के लिए करता हूँ, इनका एकत्रीकरण विभिन्न शास्त्रों से किया गया है। किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करने से पूर्व इष्ट देव की स्मरण-परम्परा का निर्वाह करते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु हैं और कार्य साधक हैं, उनको प्रणाम! Read more about ईश्वर

चाणक्य की जीवनी - Biography of Chanakya

चाणक्य की जीवनी

महापण्डित आचार्य चाणक्य जो विश्व विख्यात ग्रंथ ‘कौटिल्य अर्थशास्त्र’ के रचयिता हैं, को सत्ता परिवर्तन करने वाले महान राजनीतिज्ञ के रूप में भी जाना जाता है। Read more about चाणक्य की जीवनी