एक बार महिषासुर ने ब्रह्माजी से वरदान पाने के लिए कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे दर्शन दिए। ब्रह्माजी ने उससे वर मांगने को कहा तो महिषासुर ने कहा, “प्रभु! मुझे अमर कर दीजिए।”
“यह असंभव है, भक्त! जो जन्मा है, उसे मृत्यु से छुटकारा नहीं मिल सकता।” ब्रह्मा जी ने कहा।
महिषासुर सोच में पड़ गया, ‘अब क्या करूं, इस तरह तो मेरी तपस्या ही व्यर्थ चली जाएगी।’ फिर कुछ सोचकर उसने कहा, “प्रभु! यदि मुझे मरना ही है तो मुझे यह वर दीजिए कि मेरी मृत्यु किसी पुरुष के द्वारा न होकर किसी स्त्री के हाथों हो।”
ब्रह्माजी ने ‘तथास्तु’ कहा और अंतरधान हो गए। ब्रह्मा के जाने के बाद महिषासुर सोचने लगा, ‘एक अबला और असहाय स्त्री मुझे कैसे मार पाएगी? ब्रह्माजी ने ऐसा वर देकर तो मुझे एक तरह से अमर ही कर दिया है।’
खुशी में फूला हुआ महिषासुर वापस पाताल लोक पहुंचा। उसे देखकर असुरों ने उसकी जयजयकार की। महिषासुर बोला, “अब देवता मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। स्वर्गलोक पर चढ़ाई करने की तैयारी करो।”
शीघ्र ही असुर सेना स्वर्गलोक जा पहुंची। इतनी बड़ी सेना देखकर स्वर्गलोक के रखवाले घबरा गए और वे देवराज इंद्र को सूचना देने दौड़ पड़े। उन्होंने देवराज इंद्र को असुर सेना के आने की बात बताई तो देवराज इंद्र ने भी तत्काल अपनी सेना को उनका मुकाबला करने का आदेश दे दिया। देवेंद्र अपने ऐरावत हाथी पर चढ़कर स्वयं असुरों का मुकाबला करने पहुंचे। उन्होंने चिल्लाकर असुरराज महिषासुर से कहा, “महिषासुर! तुम जहां हो, वहीं से वापस लौट जाओ। तुम बार-बार अमरावती पर आक्रमण करते रहे हो और हर बार पराजित होकर लौटे हो। अपनी प्रजा के प्राणों से न खेलो। लौट जाओ अन्यथा इस बार मेरे हाथों जरूर मारे जाओगे।”
“इंद्र! मैं बातें करने नहीं, युद्ध करने आया हूं। मुंह बंद करो और हथियार उठाओ।” महिषासुर गरजा।
महिषासुर का ताना सुनकर देवेंद्र तिलमिला उठे। उन्होंने अपना वज्र उठाया और महिषासुर पर झपट पड़े। देवेंद्र के आगे बढ़ते ही देवसेना भी असुर सेना पर पिल पड़ी। घमासान युद्ध शुरू हो गया।
लेकिन कुछ ही देर के युद्ध के बाद असुर सेना देवसेना पर भारी पड़ने लगी। असुर उत्साह से भरे हुए थे| उन्होंने इतने वेग से हल्ला बोला कि देवसेना के पांव उखड़ गए। देव सैनिक जान बचाने के लिए भाग छूटे।
देवताओं को खदेड़कर महिषासुर ने इंद्र का सिंहासन हथिया लिया और सिंहासन पर बैठकर कहा “आज से मैं देवताओं का स्वामी हूं। अब से सब लोग केवल मेरी पूजा करेंगे। ब्रह्मा, विष्णु और शिव की कोई पूजा नहीं करेगा।”
महिषासुर के सैनिक ऋषि-मुनि आदि सबको देव पूजा से रोकने लगे। विरोध करने पर वे ऋषिमनि को बहुत मारते-पीटते और उनकी हत्या कर देते। इससे तीनों लोकों में आतंक फैल गया। सब लोकों में त्राहि-त्राहि मचने लगी। देवता भागकर कैलाश पर्वत पर पहुंचे और शिव से कहा, “हे देव! हमारी रक्षा कीजिए। महिषासुर के अत्याचारों से तीनों लोक कांप रहे हैं। उसकी शक्ति के आगे हम लाचार हो गए हैं। ऐसा कब तक चलता रहेगा देव। क्या इसी तरह सजनता पर दुर्जनता की विजय होती रहेगी?”
शिव ने देवताओं को आश्वस्त किया, “हे देवो, निश्चिंत हो जाओ। बहुत शीघ्र तुम्हारे दुर्दिनों का अंत होगा। मैं ब्रह्मा और विष्णु से मिलकर कोई उपाय निकालूंगा।”
तीनों महादेव मिले और एक योजना बनी महिषासुर को मारने की। तीनों महादेवों के मुखों से एक अनुपम तेज पुंज प्रकट हुआ। वैसा ही तेज पुंज इंद्र आदि देवों के मुख से भी निकला। वह तेजपुंज नारी रूप में परिवर्तित हो गया। उसके हजार बांहें थीं। ये देवी दुर्गा थीं। देवताओं ने समवेत स्वरों में देवी की आराधना की, “हे देवी! तुम्हीं जगत की उत्पत्ति का कारण हो। तुम दुर्गा हो। तुम्हीं पराशक्ति हो। समस्त शक्ति का स्रोत भी तुम्हीं हो। दुष्ट महिषासुर का नाश करके हमारी रक्षा करो।”
तत्पश्चात शिव ने अपने त्रिशूल से एक और त्रिशूल निकालकर दुर्गा को भेंट किया। विष्णु ने सुदर्शन चक्र तथा देवराज इंद्र ने देवी को अपना वज्र दिया। इसी प्रकार अन्य देवों ने भी अपने-अपने दिव्यास्त्र देवी को भेंट किए।
शस्त्रास्त्र लेकर दुर्गा सिंह पर सवार हुईं। उन्होंने इतने जोर से नाद किया कि सागर में ऊंची-ऊंची भयंकर लहरें उठने लगीं। पृथ्वी कांप गई और पर्वत हिल उठे। महिषासुर का सिंहासन डोल उठा और वह चीख उठा, “अरे यह क्या हो रहा है। अचानक यह भयंकर नाद कैसा है?”
महिषासुर पता लगाने के लिए अपने महल से बाहर निकला। बाहर सिंहवाहिनी दुर्गा मौजूद थीं। महिषासुर ने उस पर घृणा भरी दृष्टि डाली और बोला, “ओह, तो तू है ये गर्जना करने वाली। पर तू तो एक साधारण नारी है।”
“मैं साधारण नारी नहीं हूं, मूर्ख। मैं ब्रह्माजी का दिया हुआ वचन पूरा करने आई हूं। तूने नारी के हाथों मरने का वचन मांगा था न?” दुर्गा तिक्त स्वर में बोली।
महिषासुर ने तुरंत अपनी तलवार निकाली और जोर से चिल्लाया, “सैनिको, इसे पकड़ो। मार डालो इसे।”
महिषासुर के आदेश करने की देर थी कि असुर दुर्गा पर तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करने लगे।
देवी दुर्गा ने एक लंबा नि:श्वास भरा। उनके नि:श्वास से हजारों गण पैदा हो गए जो असुर सेना का विध्वंस करने लगे। देवी दुर्गा के वाहन सिंह ने भी महिषासुर की सेना में घुसकर सहस्रों असुरों को यमलोक पहुंचा दिया। अब तो महिषासुर गुस्से से पागल हो उठा। वह चीखा, “मैं इस दानवी को और इसकी सेना को नष्ट कर दूंगा।”
महिषासुर ने एक भैंसे का रूप धारण किया और फुफकारता हुआ देवी दुर्गा पर झपटा। दुर्गा के कई गण उसके पैरों तले रौंद डाले गए। दुर्गा के अनेक गण उस भैंसे की पूंछ की फटकार से मारे गए। यह देख देवी को क्रोध आ गया। उसने पाश फेंक कर भैंसे को बांध लिया। महिषासुर ने अपना पूरा जोर लगाया और देवी का फेंका हुआ पाश तोड़ डाला। अब वह सिंह का रूप धारण कर देवी पर झपटा। लेकिन देवी दुर्गा ने तलवार से उसका सिर काट डाला। सिर कटते ही वह पुनः अपने पहले वाले रूप में आ गया और खांडा निकालकर देवी की ओर लपका, लेकिन देवी ने इस बार भी अपनी शक्ति से उसका वध कर डाला। लेकिन वह फिर भी नहीं मरा और एक विकराल हाथी बनकर दुर्गा की ओर झपटा। लेकिन देवी भी सतर्क थीं। उन्होंने तलवार से उसकी सूंड काट दी। इस पर वह पुन: भैंसा बनकर देवी की ओर गर्जना करता हुआ दौड़ा। दुर्गा ने घृणा से उसकी ओर देखा और बोली, “मूढ, अभी तू गरज ले, पर क्षण भर बाद तू मेरे हाथों मारा जाएगा। तब देवता हर्ष से गर्जना करेंगे।”
दुर्गा की बात सुनकर महिषासुर क्रोध में भरकर उनकी ओर झपटा, परंतु देवी ने उछलकर उसको अपने एक पांव तले दबा लिया। महिषासुर अपने को छुड़ाने के लिए जोर लगाने लगा। जैसे ही उसका आधा शरीर भैंसे के मुख से निकला, देवी ने तलवार उठाई और उसका सिर काट डाला। यह देख देवताओं की खुशी का ठिकाना न रहा। वे प्रकट होकर देवी की स्तुति करने लगे, “हे देवी, तुम धन्य हो। तुम धर्म की रक्षा और पापों का नाश करने वाली हो। हम तुम्हारा वंदन करते हैं, देवी। इसी तरह सदैव ही हमारी रक्षा करती रहना।”
इस प्रकार देवता और सज्जन मानव महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त हो गए। तीनों लोकों में देवी दुर्गा की कीर्ति फैल गई।