बाबा सुन्दर दास जी की जीवनी - Baba Sundar Das Introduction

बाबा सुन्दर दास जी की जीवनी – Baba Sundar Das Introduction

जब कोई प्राणी परलोक सिधारता है तो उसके नमित रखे ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ के पाठ का भोग डालने के पश्चात ‘रामकली राग की सद्द’ का भी पाठ किया जाता है| गुरु-मर्यादा में यह मर्यादा बन गई है| यह सद्द बाबा सुन्दर दास जी की रचना है| सतिगुरु अमरदास जी महाराज जी के ज्योति जोत समाने के समय का वैराग और करुण दृश्य पेश किया गया है|

सद्द का उच्चारण करने वाले गुरमुख प्यारे, गुरु घर के श्रद्धालु बाबा सुन्दर दास जी थे| आप सीस राम जी के सपुत्र और सतिगुरु अमरदास जी के पड़पोते थे| आप ने गोइंदवाल में बहुत भक्ति की, गुरु का यश करते रहे|

बाबा सुन्दर दास जी का मेल सतिगुरु अर्जुन देव जी महाराज से उस समय हुआ, जब सतिगुरु जी बाबा मोहन जी से गुरुबाणी की पोथियां प्राप्त करने के लिए गोइंदवाल पहुंचे थे| उनके साथ बाबा बुड्ढा जी और अन्य श्रद्धालु सिक्ख भी थे| उस समय बाबा सुन्दर दास जी ने वचन विलास में महाराज जी के आगे व्यक्त कर दिया कि उन्होंने एक ‘सद्द’ लिखी है| महाराज जी ने वह ‘सद्द’ सुनी| सुन कर इतने प्रसन्न हुए कि ‘सद्द’ उनसे लेकर अपने पास रख ली|

जब ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ जी की बीड़ तैयार की तो भाई गुरदास जी से यह ‘सद्द’ भी लिखवा दी| उस सद्द के कारण बाबा सुन्दर दास जी भक्तों में गिने जाने लगे और अमर हो गए| जो भी सद्द को सुनता है या सद्द का पाठ करता है, उसके मन को शांति प्राप्त होती है| उसके जन्म मरण के बंधन कट जाते हैं| यह ‘सद्द’ कल्याण करने वाली बाणी है|

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