भाई गुरदास जी ने जै देव भक्त जी का यश इस प्रकार गाया है| यह भक्त बंगाल में हुआ है तथा आपका जन्म गांव केंदल ज़िला बीर भूम (बंगाल) में हुआ| आपके माता-पिता गरीब थे| मां बाम देवी तथा पिता भोज देव थे| वह जाति से ब्राह्मण थे| गरीबी होने के साथ-साथ आपके पास समझदारी थी| इसलिए जै देव जी को उन्होंने पाठशाला में बंगला तथा संस्कृत पढ़ने के लिए भेज दिया| ग्यारहवीं सदी में बंगाल में हिन्दू राज था| संस्कृत साधारणता पढ़ाई जाती थी| एक ब्राह्मण के पुत्र के लिए संस्कृत पढ़ना ज़रूरी था| संस्कृत पढ़ने के साथ आप राग भी सीखते रहे और अपने आप गीत गाने लग जाते थे|
जै देव जी की विद्या पूरी भी नहीं हुई थी की उनके माता-पिता का देहांत हो गया| उनके देहांत का जै देव जी के मन पर बहुत असर हुआ| दुःख को सहन न करते हुए वैराग भरे गीत रच-रच कर गाते रहते| उनके गीतों को सुन कर लोग भी वैराग में आ जाया करते थे|
जै देव विद्या पढ़ते गए और घर की पूंजी या रिश्तेदारों की सहायता मिलती गई| विद्या से मन उचाट न किया| इस तरह उनके दिन बीतते रहे| वह पाठशाला जाते रहे|