भगत पीपाजी जी की जीवनी - Bhagat Pipa Ji Introduction

भगत पीपाजी जी की जीवनी – Bhagat Pipa Ji Introduction

सतिगुरु नानक देव जी महाराज के अवतार धारण से कोई ४३ वर्ष पहले गगनौर (राजस्थान) में एक राजा हुआ, जिसका नाम पीपा था| अपने पिता की मृत्यु के बाद वह राज तख्त पर विराजमान हुआ| वह युवा तथा सुन्दर राजकुमार था| वजीरों की दयालुता के कारण वह कुछ वासनावादी हो गया तथा उसने अच्छी से अच्छी रानी के साथ विवाह कराया| इस तरह उसकी दिलचस्पी बढ़ती गई तथा कोई बारह राजकुमारियों के साथ विवाह कर लिया| उनमें से एक रानी जिसका नाम सीता था, अत्यंत सुन्दर थी, उसकी सुन्दरता तथा उसके हाव-भाव पर राजा इतना मोहित हुआ कि दीन-दुनिया को ही भूल गया| वह उसके साथ ही प्यार करता रहता, जिधर जाता उसी को देखता रहता| वह भी राजा से अटूट प्यार करती|

जहां पीपा राजा था और राजकाज के अतिरिक्त स्त्री रूप का चाहवान था, वहीं देवी दुर्गा का भी उपासक था, उसकी पूजा करता रहता| दुर्गा की पूजा के कारण अपने राजभवन में कोई साधुओं तथा भक्तों को बुला कर भजन सुनता और भोजन कराया करता था| राजभवन में ज्ञान चर्चा होती रहती| उस समय रानियां भी सुनती तथा साधू और ब्राह्मणों का बड़ा आदर करतीं, उनका सिलसिला इसी तरह चलता गया| यह सिलसिला इसीलिए था कि उसके पूर्वज ऐसा करते आ रहे थे तथा कभी भी पूजा के बिना नहीं रहते थे| उन्होंने राजभवन में मंदिर बनवा रखा था|

उस समय भारत में वैष्णवों का बहुत बोलबाला था| वह मूर्ति पूजा के साथ-साथ भक्ति भाव का उपदेश करते थे| शहर में वैष्णवों की एक मण्डली आई| राजा के सेवकों ने उनका भजन सुना तथा राजा के पास आकर प्रार्थना की-महाराज! शहर में वैष्णव भक्त आए हैं, हरि भक्ति के गीत बड़े प्रेम तथा रसीली सुर में गाते हैं|

यह सुन कर राजा ने उनके दर्शन के लिए इच्छा व्यक्त की| उसने अपनी रानियों से कहा| रानी सीता बोली, ‘महाराज! इससे अच्छा और क्या हो सकता है? अवश्य चलो|’

राजा पीपा पूरी सलाह तथा तैयारी करके संत मण्डली के पास गया| उसने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि ‘हे भक्त जनो! आप मेरे राजमहलों में चरण डाल कर पवित्र करें| तीव्र इच्छा है कि भगवान महिमा श्रवण करें तथा भोजन भंडारा करके आपकी सेवा का लाभ प्राप्त हो| कृपा करें प्रार्थना स्वीकार करो|’

संत मण्डली के मुखी ने आगे से उत्तर दिया-‘हे राजन! यदि आपकी यही इच्छा है तो ऐसा ही होगा| सारी मण्डली राज भवन में जाने को तैयार है| भंडारे तथा साधुओं के लिए आसन का प्रबन्ध करो|’

पीपा एक राजा था| उसने तो आदेश ही देना था| सेवकों को आदेश दिया| सारे प्रबन्ध हो गए| एक बहुत खुली जगह में फर्श बिछ गए तथा संत मण्डली के बैठने का योग्य प्रबन्ध किया| भोजन की तैयार भी हो गई|

संत मण्डली ने ईश्वर उपमा का यश किया| भजन गाए तो सुन कर पीपा जी बहुत प्रसन्न हुए| संत भी आनंद मंगलाचार करने लगे, पर जब संतों को पता लगा कि राजा सिर्फ मूर्ति पूजक तथा वासनावादी है तो उनको कुछ दुःख हुआ| उन्होंने राजा को हरि भक्ति की तरफ लगाना चाहा| उन्होंने परमात्मा के आगे शुद्ध हृदय से आराधना की कि राजा दुर्गा की मूर्ति की जगह उसकी महान शक्ति की पुजारी बन जाए|

उन हरि भक्तों की प्रार्थना प्रभु परमात्मा ने सुनी|

राजा पीपा को अपना भक्त बनाने के लिए नींद में एक स्वप्न द्वारा प्रेरित किया|

उस सपने की प्रेरणा से राजा पर विशेष प्रभाव पड़ा|

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