भगत साधना जी की जीवनी - Bhagat Sadhana Ji Introduction

भगत साधना जी की जीवनी – Bhagat Sadhana Ji Introduction

मानव जीवन में सदा परिवर्तन आता रहता है| वह परिवर्तन किसी न किसी घटना पर होता है और जीवन को बदल कर रख देता है| भक्त सधना कसाई था लेकिन प्रभु भक्त बन गया| आपकी कथा श्रवण कीजिए|

भक्त सधना जी के माता-पिता के नाम का पता कहीं नहीं मिलता| कर्म कसाई का था| आपका जन्म नगर सेवान (हैदराबाद, सिंध) में हुआ और उसी नगर में ही वास रहा| सधना जी को बचपन से ही सन्तों-फकीरों एवं महापुरुषों के पास बैठकर ज्ञान चर्चा सुनने की श्रद्धा थी| आप मूर्ति पूजक थे| इनको कहीं से सालगराम का पत्थर मिल गया था, जिसे मांस तोलने के लिए भार बना लिया| जिसे लोग बुरा मानते लेकिन लोगों को इस बात का पता नहीं था कि साधना जी सालगराम को देवता मानकर पूजते और उसके सहारे ही वह अपना मांस बेचने का कामकाज करते थे| सधना जी सालगराम से लाभ ही प्राप्त करते और वह उनके जीवन का सहारा था|

हिन्दू पंडित एवं संतों में बड़ी चर्चा हो रही थी कि सधना कसाई सालगराम से मांस क्यों तोलता है? एक दिन एक संत सधना जी की दुकान पर आया और विनती की कि ‘हे सधने! यह काला पत्थर मुझे दे दो, मैं इसकी पूजा-अर्चना किया करूंगा| यह सालगराम है, तुम कोई अन्य पत्थर रख लो| यह तुम्हारे लिए भार तोलने के कार्य योग्य है|’

सधना जान गया कि यह सन्त सालगराम ले जाना चाहता है| सधना ने बिना झिझक सालगराम उठा कर सन्त को पकड़ा दिया| वह सालगराम लेकर अपने डेरे को चला गया| डेरे पहुंच कर उसने सालगराम को स्नान करवाया और धूप-दीप जलाकर चंदन का तिलक लगाया तथा पुष्प भेंट किए| सन्त ने पूजा की और रात होने पर सो गया| जब साधू सोया हुआ था, तब उसे एक स्वप्न में सालगराम ने कहा – “तुम ने यह बहुत बुरा किया है, सधने के पास मैं बहुत खुश था क्योंकि वह हृदय से प्रेम एवं मेरी पूजा करता था, सच्ची श्रद्धा के साथ वह मेरा हो चुका था| वह मुझ से अटूट प्रेम करता है, मैं पूजा एवं सत्कार का भूखा नहीं, अपितु प्रेम का भूखा हूं, सधना मांस तोलते हुए भी मुझे याद करता था, मुझे उसके पास छोड़ आओ|”

यह वचन सुनकर संत की नींद खुल गई| वह सोचता हुआ और अपने किए कर्म पर पछताता रहा| जब दिन उदय हुआ तो संत सधने के पास वापिस गया| उसने सधने को कहा-‘सधना जी! अपना सालगराम वापिस ले लो| यह आपके पास ही ठीक है| आप धन्य हो, जिसे परमेश्वर याद करता है|

‘क्यों संत जी?’ सधने ने पूछा तो संत ने उसको रात के सपने की सारी बात कह सुनाई| यह बात सुन कर सधना के मन में और ज्यादा चाव तथा प्रेम उत्पन्न हो गया| वह प्रभु भक्ति करने लग गया| भक्त सधना उसी सालगराम के साथ मांस तोलता और उसकी पूजा-अर्चना करता| मन में सदा प्रभु का सुमिरन करता रहता|

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