“मुक्ति पाने के लिए, दरअसल में अपने जीवन, विशेषकर तंगहाली, गरीबी से हार चुका हूं| मेरे पास कुछ भी नहीं पूरी तरह कंगाल हूं” – विलय ने वजह बताई| उसके प्रत्येक शब्द से हताशा टपक रही थी| “मुझे लग रहा है तुम सच नहीं बोल रहे हो?” विश्वास ने असहमति जताई| विलय को अपने ऊपर लगा इल्जाम अच्छा नहीं लगा – “मरने की कगार पर खड़ा व्यक्ति झूठ नहीं बोलेगा| फिर आपको मेरी परिस्थिति के बारे में क्या मालूम?” “एक बार फिर सोचकर बताओ क्या तुम्हारे पास सचमुच कुछ भी नहीं?” डॉ. विश्वास ने दोबारा पूछा, “हां अच्छी तरह सोच चुका हूं” – विलय ने अपना इरादा दोहराया|
“फिर मैं कुछ साबित करूं?” विश्वास ने मुस्कराते हुए कहा| ठंडी श्वास भरते हुए विलय बोला – “क्या साबित करेंगे डॉक्टर साहब?” “ठीक है फिर एक काम करो| तुम्हारे पास जो दो-दो वस्तुओं का सेट है उनमें से एक-एक मुझे दे दो” रहस्यात्मक ढंग से मुस्कराते विश्वास ने कहा| विलय अनभिज्ञता प्रकट करते बोला – “मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं” “मैं समझाता हूं| जैसे तुम्हारे पास दो आंखें हैं| एक दे दो| उसके लिए एक लाख रुपया दूंगा” विश्वास ने प्रस्ताव किया| “मैं ऐसा नहीं कर सकता” विलय ने आक्रोश जाहिर किया| अनुसनी करते विश्वास ने कहा – “तुम्हारे दो कान हैं एक दे दो, पच्चीस हजार दिला दूंगा|” “नहीं यह मुमकिन नहीं” विलय ने स्पष्ट इंकार किया|
“एक पैर दे सको तो उसके बदले तीस हजार दिला दूंगा”
विश्वास ने अगला प्रस्ताव किया| गर्दन हिलाते हुए विलय झुंझला कर बोला, “आप क्या शरीर के सौदागर हो?” “चलो एक हाथ दे दो उसके भी पच्चीस हजार मिल जाएंगे” डॉ. विश्वास ने सौदेबाजी चालू रखी| “नहीं बिलकुल नहीं” विलय ने पूर्वत दोहरा दिया|
“फिर तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हारे पास कुछ नहीं|
तुम्हारे प्रत्येक अंग की कीमत हजारों-लाखों में है” डॉ. विश्वास ने कहा| विलय हैरानीपूर्वक घूरने लगा – “मैं समझ गया, आप शरीर के भगवन कहलाते हो इसलिए मुझे बचाने के लिए ऐसा कह रहे हैं|” “मैं हकीकत बयां कर रहा हूं| सोचो जब आंख, कान, हाथ, पैर आदि बाहरी अवयव की इतनी भारी कीमत है तो किडनी, लीवर तो बेशकीमती होंगे| यानी पूरे शरीर की कीमत की तुम कल्पना ही नहीं कर सकते|” विलय को कुछ सूझ नहीं रहा था, क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करें?
कुछ पल डॉ. विश्वास उसके चेहरे को घूरते रहे मानो उसके अंदर का पढ़ने का प्रयास कर रहे हों, फिर मुस्कराते हुए बोले, “एक बात बताओ जिसके पास मीठी बातें करने के लिए गज भर की जुबान हो, सुंदर वस्तुएं देखने के लिए खूबसूरत आंखें हों, अच्छी बातें सुनने के लिए दो लंबे कान हों, प्रकृति और दुनिया की सैर करने के लिए दो लंबे पैर हों, बढ़िया काम करने के लिए दो मजबूत बाजू हों… जिसके पास इतना बेशुमार खजाना हो उससे बढ़कर अमीर भला और कौन हो सकता है?” “यह सब किताबी बातें हैं” विलय ने कहा|
“बिलकुल सत्य कहा मैं सहमत हूं| अगर इन अवयवों से सार्थक काम नहीं लोगे तो… सचमुच में ये किताबी या जड़ साबित होंगे वर्ना कर्मठ और पुरुषार्थी के लिए तो ये अनमोल हैं| एक बात जरूर है| आत्महत्या करने पर यह शरीर मिटटी के मोल नष्ट हो जाएगा| तुम्हारे घरवालों को कितना कष्ट होगा इसका अंदाजा है तुम्हें?” डॉ. विश्वास के इन सवालों ने विलय को तिलमिला दिया फिर भी उसकी आंखों में आंखें आवेश उभर आया| “नाराज मत हो भाई मुझे पता है यह शरीर तुम्हारी मिल्कियत है और उसके साथ तुम कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हो… लेकिन एक बात मत भूलना…
“कौन सी बात अब यह भी बता दो” विलय ने झुंझलाते कहा| “यही कि तुम्हारे माता-पिता ने इस सुंदर शरीर को जन्म दिया है| लालन-पालन कर बड़ा किया है| इस शरीर ने इस धरती की हवाओं में सांस भरी है| यहां की पावन नदियों का जल पिया है| यहां की फसलों की खाकर शरीर पुष्ट किया है| क्या इन सबका तुम पर तनिक भी अधिकार नहीं?” डॉ. विश्वास ने यह सब पूछकर विलय को जैसे झकझोर दिया|
“तो मैं क्या करूं?” विलय ने पूछा, उसके पास बचाव का कोई तर्क नहीं शेष बचा था| “मैं बताऊं… समझ लो कि तुमने आत्महत्या कर ली… अब तुम्हारा इस शरीर पर कुछ अधिकार नहीं रहा… इसलिए इसे दूसरे काम में लगाओ… इसे माता-पिता को समर्पित कर दो| देश-समाज के प्रति अर्पित कर दो| कुछ सूझ नहीं रहा हो तो माता-पिता के बताए रास्ते पर जीवन जीने का प्रयास करो” विश्वास ने राह दिखाई
विश्वास ने विदा लेते कहा- “अच्छा अब मैं चलता हूं… अब तुम जो निर्णय लोगे वह सही होगा… बेस्ट ऑफ लक|”
कुछ पल तक विलय डॉ. विश्वास के जाते हुए कदमों को देखाता रहा| फिर मन ही मन मंथन करते हुए धीमे कदमों से अपने घर की राह चल पड़ा| डॉ. विश्वास ने उसके जीवन के अंधेरे में रोशनी की एक किरण दिखा दी थी| उसका मन कृतज्ञता से भर उठा|