“तू क्या बनेगा रे, वाइटी?” एक दिन ब्लैकी ने पूछा|
“मैं बनूंगा घाट का पत्थर,” अपनी दिली इच्छा जता कर वाइटी ने भी जानना चाहा, “और तू क्या बनेगा?”
“मैं मील का पत्थर| दोनों दोस्त आसपास ही रहेंगे| तू घाट की सेवा करना और मैं सड़क पर,” ब्लैकी ने कहा, “यह जीवन दूसरों के काम आ जाए, यही अच्छा है|”
उन दोनों की बातें ब्राउनी पत्थर सुन रहा था| उस ने कहा, “मुझ से नहीं पूछोगे कि मैं क्या बनूंगा?”
“बताबता, भाई, तू क्या बनेगा?” ब्लैकी ने जानने की उत्सुकता दिखाई|
“मैं बनूंगा बस का कांच| सामने लगूंगा| हमेशा चमचमाता रहूँगा,” ब्राउनी बोला|
“ठीक ठीक| हम लोग तुम्हें रोज देखेंगे| तुम्हारे मन की मुराद पूरी हो,” ब्लैकी ने खुश हो कर कहा| वाइटी भी खुश हो गया|
समय बीतता गया| कुछ साल बाद जैकी बंदर ने ब्लैकी पत्थर को तराश कर मील का पत्थर बना कर सड़क किनारे लगा दिया| पेंटर नीरो भालू ने उस पर सफेद पेंट कर दिया और एक तरफ काले पेंट से लिख दिया ‘आनंदवन, 1 किलोमीटर’ और दूसरी ओर नंदवान, 20 किलोमीटर|’
जंबो हाथी ने वाइटी को उठाया और ले जा कर घाट पर रख दिया| जानवर उस पर बैठ कर नहानेधोने लगे, कपड़े साफ करने लगे|
जानवरों की सेवा करते हुए दोनों दोस्त बेहद खुश थे|
अब बारी थी ब्राउनी की| पत्थर से कांच बनाने वाली फैक्टरी के कुछ मजदूर एक दिन जंगल में आए और कई पत्थरों के साथ ब्राउनी को भी ले जाए| उसे बारीक पीसा गया| उस से अच्छी क्वालिटी का कांच बन गया| उस कांच को एक खूबसूरत बस के सामने वाले हिस्से में लगाया गया|
ब्राउनी खुश, उस की दिली तमन्ना पूरी हो गई| बस आनंदवन और नंदवान के बीच चलने लगी|पहले दिन जब बस आनंदवन से चल कर नदी के पास आई तो ब्राउनी ने ब्लैकी और वाइटी का नाम ले कर तेज आवाज में कहा, “देखो दोस्त, मेरा सपना पूरा हो गया| मैं बस का कांच बन गया|”
यह सुन कर ब्लैकी और वाइटी बेहद खुश हुए| उन्होंने देखा कि ब्राउनी चमक रहा था| ब्लैकी और वाइटी ने हाथ हिला कर उस का स्वागत किया| बस जहां तक दिखी, वे दोनों उसे देखते रहे|
उस दिन से वे दोनों रोज बस का इंतजार करते और ब्राउनी के आनेजाने का हाथ हिला कर गर्मजोशी से स्वागत करते|
लेकिन कुछ दिनों बाद ब्राउनी घमंडी हो गया| उस ने अपने उन दोस्तों की ओर देखना तक बंद कर दिया| उस के व्यवहार में आए बदलाव के बावजूद वे दोनों दोस्त उस का इंतजार करते थे|
समय गुजरता गया| एक दिन वह बस सड़क पर अचानक आ गए एक जानवर को बचाने के चक्कर में बेकाबू हो गई और ब्लैकी से टकराती हुई गड्ढे में जा गिरी|
ब्लैकी उखड़ गया| उसे काफी चोट लगी| लेकिन वह यह देख कर अपना दर्द भूल गया कि उस का दोस्त ब्राउनी टूट कर बिखर गया था| कांच के कई टुकड़े ब्लैकी और वाइटी के पास भी जा कर गिरे|
“यह ठीक नहीं हुआ| हमारा दोस्त ब्राउनी टुकड़ेटुकड़े हो गया,” यह कह कर ब्लैकी और वाइटी रो पड़े|
यह देख कर ब्राउनी को अपनी गलती पर बेहद अफसोस हुआ| उस ने कहा, “दोस्तो, मुझे माफ कर दो| मुझे घमंड की सजा मिली है| यह सच है कि मैं ने कांच बनने के लिए अपने को पूरी तरह बदल डाला| खूब कष्ट सहे| उस का मुझे अच्छा फल मिला और मैं काफी ऊंचाई पर पहुंच गया, लेकिन तुम लोगों जैसे अच्छे दोस्तों को छोटा मान बैठा| इसी घमंड के कारण मेरी यह हालत हुई है|”
यह कहते कहते कांच बने ब्राउनी ने दम तोड़ दिया| ब्लैकी और वाइटी खूब रोए|
“देखो, सड़क और घाट पर कांच के टुकड़े पड़े हैं| किसी के पैर में चुभ जाएंगे| इन्हें कहीं दूर फेंक दो,” एक दिन सीनियर सफाईकर्मी बंटू सूअर ने अपने सहयोगी मोटू सूअर से कहा|
मोटू ने कांच के टुकड़ों को वहीँ कचरे के डब्बे में फेंक दिया|
ब्लैकी को दोबारा सड़क के किनारे लगा दिया गया| वह दूरी बताने का काम करने लगा| वाइटी अपना काम कर ही रहा था| उन दोनों को अपने दोस्त ब्राउनी के खोने का बेहद दुख था|