एक राह चलते राहगीर ने उन्हें बताया कि यहाँ एक मरा हुआ हाथी रास्ते में पड़ा है| वे सभी जन्मांध थे, उन्हें हाथी का मतलब समझ नहीं आया| वे हाथी के अलग-अलग अंगों को छूकर देखने लगे|
पहले अंधे व्यक्ति ने हाथी के शरीर को छूकर बताया, “हाथी एक दीवार की तरह है|”
दूसरे अंधे व्यक्ति ने हाथी के दाँतों को छुआ| वे बड़े तीखे और पैने थे| वह बोला, “हाथी एक बरछी की तरह है|”
तीसरे अंधे व्यक्ति ने उसकी लंबी घुमावदार सूँड को छुआ| वह बोला, “यह तो साँप की तरह है|”
चौथे व्यक्ति ने हाथी के पैरों पर अपना हाथ घुमाया और अचंभित होकर बोला, “हाथी एक पेड़ की तरह है|”
पाँचवे अंधे व्यक्ति ने हाथी के कानों को हुआ| वह बड़े और सपाट थे| वह सोचकर हँस पड़ा और बोला, “यह तो पंखे की तरह है|”
छठे अंधे व्यक्ति ने उसकी पूँछ को पकड़ा था| वह सख्त और घुमावदार थी| वह बोला, “हाथी रस्सी की तरह लगता है|”
अब वे सभी हाथी की बनावट को लेकर आपस में बहस करने लगे| वे सभी अपनी जगह सही भी थे और गलत भी| उन सभी ने हाथी के बारे में जो कहा वह सच था| लेकिन वह सब गलत थे क्योंकि उन्होंने पूरे हाथी को एक साथ नहीं देखा था|
कथा सार: अंधा व्यक्ति रंग की पहचान नहीं कर सकता|