हालाँकि, चोरों ने ब्राह्मण का पीछा करना जारी रखा और उसके किसी एकांत स्थान तक पहुँचने की प्रतीक्षा करने लगे। बाजार से उसका घर काफी दूर था। कुछ दूर चलने के बाद ब्राह्मण को एक जंगल से भी गुजरना पड़ा। वहाँ पर रास्ता सुनसान था। ठगों ने सोचा कि यही जगह ब्राह्मण को ठगने के लिए ठीक रहेगी। उन्होंने योजना बना ली थी। दो ठग जंगल में अलग-अलग जगह खड़े हो गए, ताकि ब्राह्मण को यह न लगे कि वे एक साथ हैं।
ब्राह्मण की बकरी छीन लेने की उनकी योजना तैयार थी। उन्हें बस सही समय की प्रतीक्षा थी। उनमें से एक ठग रास्ते में ब्राह्मण के सामने आया और चेहरे पर आश्चर्य के भाव लाकर बोला, “अरे, इस गंदे कुत्ते को अपने कंधों पर क्यों लादे जा रहे हो ?”
ब्राह्मण नाराज होने लगा। “अंधे हो क्या ?” उसने ठग को डाँट दिया। “दिखाई नहीं देता कि मैं बकरी लिए जा रहा हूँ ?”
“मुझे तो बकरी नहीं, कुत्ता दिख रहा है,” ठग ने जवाब दिया। ब्राह्मण अपनी बकरी को ध्यान से देखने लगा। उसने बकरी का चेहरा और शेष शरीर देखा, फिर ठग से कहा, मुझे पूरा विश्वास है कि यह बकरी ही है, कुत्ता नहीं। या तो तुमने कभी बकरी देखी नहीं, या तुम पागल हो गए हो। जो भी हो, मुझे घर जाने दो।” ब्राह्मण कुछ भ्रमित-सा आगे चल पड़ा। तभी दूसरा ठग सामने आ गया और कहने लगा, “हे भगवान! अपने कंधों पर इस मरे हुए बछड़े को क्यों लिए जा रहे हो ?”
ब्राह्मण इस बार और अधिक भ्रमित हो गया। उसे अपने आप पर ही विश्वास नहीं रहा। । “हो न हो, इस जानवर में कुछ तो विशेष बात है!” ब्राह्मण के अंदर डर की भावना पैदा हो गई। शायद यह कोई प्रेत है, जो अपना रूप बदल रहा है।” उसने बकरी को वहीं नीचे उतार दिया और तेजी से चलता हुआ अपने घर आ गया। ठगों ने तुरंत बकरी को पकड़ लिया और अपने साथ ले गए।
हर किसी को अपनी स्वयं की बुद्धि पर ही विश्वास करना चाहिए।