साहसी बालक - Brave Boy

साहसी बालक – Brave Boy

अंकित और आकाश दोनों गहरे मित्र थे| दोनों पढाई के साथ-साथ खेल-कूद में बिह प्रथम आते थे| विद्यालय के सभी अध्यापक अंकित व आकाश से बहुत प्रसन्न रहते थे| अंकित को क्रिकेट का बहुत शौक था और आकाश पुस्तकालय में बैठकर पुस्तकें पसंद करता था|

अंकित और आकाश के विद्यालय में क्रिकेट प्रतियोगिता शुरू होने वाली थी| जिसकी फीस पाँच सौ रुपए प्रति खिलाड़ी थी| शनिवार को फीस जमा कराने की आख़िरी तारीख थी| परन्तु यह क्या? आकाश ने देखा, अंकित कक्षा से बाहर बैठकर फूट-फूटकर रो रहा है| अंकित को रोता देख आकाश ने परेशान होकर पूछा, “मित्र! तुम इतना क्यों रो रहे हो?”

अंकित – “आज क्रिकेट प्रतियोगिता की फीस भरने की आख़िरी तारीख है|”

आकाश – “तो क्या हुआ?”

अंकित – “मेरे पास फीस भरने के लिए रुपए नहीं है|”

आकाश – “अपने पापाजी से माँग लो न| वे रुपए दे देंगे और तुम जाकर फीस भर देना|”

अंकित – “परन्तु………”

आकाश – “परन्तु क्या? क्या तुम्हारे पापाजी के पास पाँच सौ रुपए भी नहीं हैं|”

अंकित – “नहीं, आकाश| ऐसा नहीं है| (आँसू बहाते हुए) भाई| बात यह है कि आज मेरे पापा जी बैंक से रुपए निकालकर घर आ रहे थे, रास्ते में दो लड़के बाइक पर सवार होकर आए और पापा जी से रुपयों का बैग छिनकर भाग गए|”

आकाश – “दोस्त! तुम चिंता मत करो| मैं कहानियों की नई किताब खरीदने के लिए रुपए लाया हूँ, इन्हीं रुपयों से तुम मैच की फीस भर देना|”

अंकित – “और तुम्हारी किताबें………..?

आकाश – “तुम उसकी चिंता मत करो| मैं अपने पापा जी को सारी बातें बता दूँगा| वे मुझे और रुपए दे देंगे|”

यह सुनकर अंकित बहुत खुश हुआ उसने आकाश को गले से लगा लिया|

उसी दिन दोपहर को, जब वे स्कूल से घर जा रहे थे, उन्होंने दो अनजान लोगों को एक घर में बार-बार ताक-झाँक करते देखा| दोनों ने पास जाकर उन अनजान लोगों से पूछा, “अंकल आप किसकी तलाश कर रहे हैं ?”

अजनबी – “तुम्हें क्या मतलब, तुम कौन हो?

आकाश – “अंकल हम इसी कॉलोनी में रहते हैं|”

अजनबी – “रहते हो तो रहो अपने घर में| यहाँ क्या है तुम्हारा?”

आकाश – “नहीं अंकल! हम तो ऐसे ही पूछ रहे थे|”

अजनबी – “तो चलो, भागो यहाँ से|”

दोनों मित्र चुपचाप अपने-अपने घर चले गए|

दोनों मित्र रातभर उन्हीं व्यक्तियों के बारे में सोचते रहे| सुबह होते ही उन्हें पता लगा कि उस घर में चोरी हो गई है| सारा सामान चोरी हो गया है| चोर उस घर में रहने वाली पाँच साल की बच्ची को भी उठा ले गए हैं| सारा मौहल्ला इस घटना से बेहद परेशान था| दोनों मित्रों ने सोचा कि इन चोरों को पकड़वाकर ही राहत की साँस लेंगे|

दूसरे दिन दोपहर को एक मकान से कुछ लोगों की आवाज़ों को सुनकर, वे दोनों उस मकान के पास गए| यह मकान महावीर प्रसाद का था जो कई महीनों से खाली था| आकाश ने अंकित से कहा, “चलो मित्र! चलकर देखते हैं कहीं चोरों, ने इस घर को अड्डा तो नहीं बना लिया? दोनों मित्र चुपके से खिड़की से झाँकने लगे, तभी एक आदमी ने अचानक पीछे से अंकित को पकड़ लिया| आकाश किसी तरह बच गया और रोता हुआ घर की ओर भागा| भागते समय उसने देखा कि एक आदमी खिड़की से एक मकान में घुस रहा है उसके चेहरे पर नकाब है| आकाश समझ गया कि यह चोर है| इस बार आकाश ने समझदारी से काम लेते हुए, खिड़की को बाहर से तुरन्त बन्द कर दिया और कुंडी लगा दी| फिर शोर मचाना शुरू किया- “चोर-चोर, पकड़ो-पकड़ो|” आकाश की आवाज़ें सुनकर कॉलोनी के लोग इकट्ठे हो गए|

एक पड़ोसी – “अरे, क्या हुआ?”

दूसरा पड़ोसी – “कहाँ है चोर? पकड़ो-पकड़ो|”

तीसरा पड़ोसी – “अरे, 100 नंबर पर फोन कर दो|”

इसी बीच आकाश उस मकान के मालिक राजेन्द्र अंकल को, उनकी दुकान से बुलाने जा ही रहा था कि उसने देखा, वह चोर जिसे उसने घर में बंद किया था, छत से कूदकर नीचे आ गया है| आकाश को देखते ही चोर ने गुस्से से चाकू निकालकर आकाश पर हमला कर दिया| इस बार भी आकाश सतर्क था| उसने तुरंत चालाकी से चोर के पैरों में टाँग अड़ाकर, उसे गिरा दिया और चिल्लाने लगा| सभी पड़ोसियों ने उस चोर को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया| फिर आकाश पुलिसवालों को उस खाली मकान में ले गया और उसने अपने मित्र अंकित तथा बन्दी बनाकर रखी गई बच्ची की भी जान बचा ली| इस प्रकार समझदारी और हिम्मत से उसने दो जिन्दगियों को बचा लिया तथा चोरों को पकड़वाकर सच्चे नागरिक होने का फर्ज़ भी निभाया| आकाश के इस बहादुरी पूर्ण कार्य के लिए सरकार ने गणतंत्र-दिवस पर उसे पुरस्कृत एवं सम्मानित किया|

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