मैं बिस्तर से बाहर कूदा| फिर मैंने दराज से गत्ते का बक्सा निकाला जिसमें छोटे-छोटे छेद थे| मैंने ढक्कन खोलकर देखा कि महारानी ठीक है या नहीं|
महारानी अर्थात बांस भृंग सेब के बीजकोष पर सोई हुई थी| दादाजी और मैंने उसे नियम से भृंग दौड़ के लिए सप्ताह भर का कड़ा प्रशिक्षण दिया था तथा दौड़ से पहले वह विश्राम कर रही थी जिसकी वह हकदार थी| मैंने उसे जगाया नहीं| बक्सा बंद करके मैं घर के पिछले दरवाजे से बाहर निकल गया| उस सुबह मुझे स्कूल जाना था और मैं नहीं चाहता था कि दादीजी मुझे बाजार के पास सरकारी पार्क में जाते देखें| वह भृंगों को बिल्कुल पसंद नहीं करती थीं|
जब मैं बगीचे में पहुंचा तो सूर्य की तपन से ओस की बूंदें पन्नों का रूप लेने लगी थीं और मेरे नंगे पांवों के नीचे ठंडी व गर्म घास थी| पार्क के एक कोने में लड़कों व लड़कियों का एक झुंड खड़ा था जो जोशपूर्ण लहजे में बात कर रहे थे| उनमें वे दो लड़के भी थे जिन्होंने मुझे दौड़ में भाग लेने का न्योता दिया था| इनमें एक तेरह साल का हृष्ट-पुष्ट और आत्मविश्वासी रणवीर था| दूसरा बारह साल का अनिल था जो उतना ही आत्मविश्वासी, लेकिन अधिक विनम्र भी था|
रणवीर का काला राइनो भृंग सबका चहेता था| यह बड़ा भृंग था जिसका माथा अपने मालिक की ही तरह आक्रामक था| उसका नाम ब्लैक प्रिंस था| अनिल का भृंग आकार में बिल्कुल सामान्य था, लेकिन उसकी मूंछें काफी लंबी थीं| मुझे संदेह हुआ कि वह झींगुर प्रजाति का है न कि भृंग प्रजाति का, और उसे मूछा कहते थे|
दूसरे और भी कई प्रतियोगी थे, लेकिन कोई भी दावेदार नहीं लगता था| इसलिए सभी का ध्यान ब्लैक प्रिंस, मूछा और मेरी महारानी पर था जो अभी तक सेब के बीजकोष पर सोई हुई थी| गुपचुप तरीके से शर्तें लगाई जा रही थीं – कुछ सिक्को की और कुछ कंचों की| विजेता को मिलने वाला पुरस्कार प्रदर्शित किया हुआ था| वह एक महामृग भृंग था जो काफी खतरनाक लगता था और विजेता उससे बड़े पैमाने पर दौड़ वाले भृंगों का प्रजनन करवा सकता था|
अनिल का मूछा अपने बक्से से निकल भागा| इससे कुछ परेशानी हुई| उसने घास पर शरण ली थी, लेकिन वह पकड़ा गया और उसे फिर बक्से में बंद कर दिया गया|
दौड़ का रास्ता लगभग छह फुट लंबा था| ट्रैक छह इंच चौड़े थे और उनके इर्द-गिर्द कार्डबोर्ड की पट्टियां लगाई गयी थीं ताकि प्रतियोगी केवल आगे या पीछे जा सकें| दौड़ शुरू करने की लाइन पर उन्हें कार्डबोर्ड के टुकड़े के पीछे रखा गया था और दौड़ शुरू होने पर उस बोर्ड को उनके पीछे रखा जाना था|
सफेद-नीला पाजामा सूट पहने हुए एक सिख लड़का स्टार्टर का कार्य कर रहा था और उसने शोर थमने तक सीटी बजाई व फिर दौड़ के नियम बताए| भृंगों को दौड़ के दौरान छूना मना था, उन्हें पीछे से धक्का नहीं देना था और आगे खाना दिखाकर उन्हें लुभाना भी मना था| केवल आवाज व प्रोत्साहित करके उनका उत्साह बढ़ाया जा सकता था|
मूछा और ब्लैक प्रिंस दौड़ के लिए तैयार थे, लेकिन महारानी सेब के बीजकोष को छोड़ना नहीं चाह रही थी| मुझे उसे वहां से उठाना पड़ा और फिर मैंने उसे दौड़ की आरंभिक लाइन पर रख दिया| मूछा की मूंछें उसके प्रतिद्वंदी के पैरों में फंस गयीं| इससे और विलंब हो गया, लेकिन उन्हें जल्दी ही अलग करके अपनी-अपनी जगह पर रख दिया गया| दौड़ शुरू होने वाला थी|
अनिल पालथी मारकर बैठा था ओ गंभीरता और शांति से कभी मूछा और कभी अंतिम सीमा रेखा की ओर देख रहा था| रणबीर अपनी मोटी भौंहों को सिकोड़कर ध्यान से देख रहा था| दर्शकगण तनाव में खामोश थे|
सीटी बजी और प्रतियोगी दौड़ने लगे| यानी मूछा और ब्लैक प्रिंस दौड़ने लगे, लेकिन महारानी अभी तक आरंभिक बिंदु पर ही थी| शायद सोच रही थी कि उसके सेब का बीजकोष कहां गया|
सभी जोश से तालियां बजा रहे थे| अनिल बार-बार उछल रहा था रणबीर गला फाड़-फाड़कर चिल्ला रहा था| मूछा तेजी से दौड़ रहा था| ब्लैक प्रिंस कोई खास रुचि नहीं दिखा रहा था|, लेकिन कम से कम वह दौड़ तो रहा था और इस प्रकार की दौड़ का परिणाम कुछ भी हो सकता था| मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था| मैंने और दादाजी ने महारानी को जो कुछ भी सिखाया था, वह सब बेकार होता नजर आ रहा था| अभी तक वह हक्की-बक्की थी और सेब से वंचित किए जाने के कारण कुछ नाराज भी थी|
उधर मूछा अंतिम सीमा रेखा से लगभग दो फुट पहले ही अचानक रुक गया| वह अपनी मूंछों से कुछ परेशान लगता था| अनिल व रणबीर पूरे जोश में थे| महारानी की ओर कोई भी ध्यान नहीं दे रहा था| वह अपने आसपास जुटे लोगों को संदेह से देख रही थी| उसे शक था कि उसका सेब छिन जाने के पीछे उन्हीं लोगों का हाथ था| मैंने उसे दौड़ने के लिए मिन्नत की और बड़ी मुश्किल से खुद को उसे धक्का देने से रोका| यदि मैं उसे धक्का देता तो वह उसी वक्त दौड़ के अयोग्य घोषित कर दी जाती|
जैसे ही ब्लैक प्रिंस मूछा के बराबर आया, वह रुक गया ओर ऐसे देखने लगा मानो पूछ रहा हो कि दौड़ की अंतिम सीमा रेखा कहां है| अनिल व रणबीर दोनों अब और भी जोश में भरकर अपने प्रतियोगियों को उत्साहित करने लगे तथा सभी तरफ से तालियां जोर-जोर से बजने लगीं|
अपने सेब के बीजकोष से वंचित हो जाने के कारण क्रोध व निराशा से भरी महारानी आजाद होने और नया भोजन तलाशने की जुगत में बड़े अंदाज से तेज-तेज आगे बढ़ी|
मैं खुशी से चिल्लाया, लेकिन जब तक वह अपने प्रतिद्वंदीयों के बराबर नहीं आ गयी, किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया| जैसे ही महारानी ने रिकॉर्ड समय में अंतिम सीमा रेखा पार की, दर्शक हैरानी से उसे देखने लगे|
सभी लोगों ने उस बहादुर की सराहना की| अनिल व रणबीर ने खेल भावना से मुझसे हाथ मिलाया व मेरे द्वारा अपनाए गए तरीके के लिए मुझे बधाई दी| स्टार्टर ने लोगों को चुप कराने के लिए सीटी बजाई और मुझे पुरस्कार प्रदान किया|
मैंने अपने नए भृंग को आदर से देखा और उसकी कठोर, सपाट पीठ पर हल्की थपकी दी| महारानी को इससे कहीं ईर्ष्या न हो, मैंने उसे सेब के बीजकोष पर वापस रख दिया| अनिल ने कहा कि वह अगली दौड़ से पहले मूछा की मूछों को थोड़ा सा काट देगा जबकि रणबीर का कहना था कि ब्लैक प्रिंस को पतला होने की जरूरत है|
घर आकर मैंने दादाजी को ईनाम में मिला महामृग भृंग दिखाया|
दादाजी ने कहा, “यह बहुत प्यारा है और मेरे पास सिखाने के कुछ नये गुर हैं| लेकिन हमें महारानी की अनदेखी नहीं करनी चाहिए|” उन्होंने महारानी को एक बड़ा लाल सेब दिया| उसने सेब पर कब्जा करने में बिल्कुल भी देर नहीं लगाई|