लकड़हारे ने जवाब दिया, “नहीं, लेकिन चुपचाप अपनी झोपड़ी की ओर इशारा कर दिया। शिकारी उसके इशारे को नहीं समझ पाए और वहाँ से चले गए। लोमड़ी झोपड़ी से बाहर निकलकर आई और भागने लगी। लकड़हारे ने उसे आवाज लगाई और कहा, “तुम कितनी कृतघ्न हो! अपनी जान बचाने के लिए तुमने मुझे धन्यवाद तक नहीं दिया !” लोमड़ी रूखे स्वर में बोली, “अगर तुम्हारे बोल की तरह तुम्हारे इशारे भी भरोसे लायक होते तो मैं तुम्हें धन्यवाद जरूर देती।”
कई बार एक हल्का-सा इशारा, बोले गए शब्दों से ज्यादा बुरे होते हैं।