भूतों का पिता - Ghosts Father

भूतों का पिता

एक था लड़का| एक रोज वह काम की तलाश में मुंबई जाने के लिए तैयार हुआ| रास्ते में खाने के लिए मां ने उसे आलू के सात परांठे बना दिए| उन्हें टिफिन में रख कर लड़का पैदल चल पड़ा| थोड़ी देर बाद रास्ते में एक बावड़ी आई| दोपहर हो गई थी| लड़के ने सोचा, पेट में चूहे दौड़ रहे हैं| यहीं रुक जाऊं और टिफिन खा लूं|

लड़का वहीं बैठ गया| उसने टिफिन खोल कर पराठें निकाले| उसे जोरों की भूख लगी थी| वह सोचते हुए कहने लगा कि इनमें से कितने खाऊं? एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं, पांच खाऊं, छह खाऊं या सातों को चट कर जाऊं|

अब बात यह हुई कि बावड़ी में सात भूत रहते थे| उन्होंने लड़के की बात सुनी| वे डर गए| उनमें से एक बोला, ‘अरे, यह तीसमारखां कौन आ गया, जो हम सबको खा जाने की बात कर रहा है? जरूर कोई रुस्तमे-हिंद होगा|’ दूसरे भूत ने कहा, ‘चलो, हम उसे खुश कर दें, ताकि वह यहां से चला जाए|’ भूतों के पास एक तिलस्मी चूल्हा था| उसे लेकर एक भूत डरते-डरते ऊपर आया और बोला, ‘छोकरे, हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, जो तुम हमें खा जाने की बात करते हो| मांसाहार छोड़ो और शाकाहार की महिमा गाओ| जरूरत हो तो यह चूल्हा ले जाओ| यह ऐसा चमत्कारी है कि तुम इससे जो भी शाकाहारी पकवान मांगोगे, वह फटाफट मिल जाएगा|’

लड़के ने खुशी-खुशी चूल्हा लेते हुए मन में कहा, ‘वाह! अपनी तो किस्मत का फाटक ही खुल गया| अब मुंबई जाने की क्या जरूरत है! वह घर की ओर लौट चला| रास्ते में बहन का मकान था| रात वह वहीं रुका| सोते वक्त उसने सोचा, क्यों न एक बार फिर बावड़ी पर जा कर कोई दूसरी चीज ले आऊं| उसने अपनी बहन को सारी बात बताई, चूल्हा उसे सौंपा और सात परांठे ले कर चल दिया|

दोपहर आने से पहले ही वह बावड़ी पर पहुंचा| किनारे बैठ कर उसने परांठे निकाले और बोलने लगा, ‘एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं, चार खाऊं, पांच खाऊं, या सातों को चट कर जाऊं|’ यह सुन कर भूतों में फिर खलबली मच गई| चंद भूत तो मारे डर के कांपने लगे| आखिर उनमें से एक भूत साहस कर ऊपर आया| वह अपने साथ एक जादुई मुर्गी लाया था| उसने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की, ‘छोकरे, यह मुर्गी लो और हमारा पिंड छोड़ो| यह तुम्हें रोजाना सोने का एक अंडा देगी| लड़का खुश हो कर मन ही मन बोला, इसे कहते हैं, छप्पर फाड़ के!

वह मुर्गी ले कर बहन के घर आया| वहां वह दो दिन रहा| उसके मन में फिर एक बार बावड़ी पर जाने की छटपटाहट शुरू हो गई| फिर एक बार वह परांठे बनवा कर बावड़ी पर पहुंचा और पहले की तरह बोला, ‘एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं, चार खाऊं, पांच खाऊं, छह खाऊं या सातों को चट कर जाऊं|’ यह सुन कर बड़े भूत कांपने लगे और छोटे भूत रोने लगे| फिर उनमें से एक भूत रोता हुआ ऊपर आया और दंडवत कर बोला, ‘छोकरे, हमारा कलेवा करके तुम्हें क्या मिलेगा? बेहतर होगा कि तुम यह जता लो और घर लौट जाओ| इसे तुम कहोगे ‘चल रे जूते टन-टनाटन’ तो यह उछल कर झूठे, मक्कार, पाखंडी लोगों परा टूट पड़ेगा| जब तक तुम इसे नहीं रोकोगे, यह चोट करता रहेगा|’

लड़का वापस अपनी बहन के घर आया| जब उसने अपना चूल्हा और मुर्गी मांगी तो बहन की नीयत बिगड़ी| उसने असली चूल्हा और मुर्गी छिपा दिए और बाजार से खरीदा हुआ नकली चूल्हा और मुर्गी भाई को सौंप दी| बहन रसोई में गई तो भाई ने सोचा, जरा देखूं कि ये असली हैं या नहीं| उसने चूल्हे से कहा, ‘फटाफट रसगुल्ले दे|’ लेकिन चूल्हे ने कुछ भी नहीं दिया| फिर उसने मुर्गी से कहा, ‘झटपट सोने का अंडा दे|’ मुर्गी ने अंडा देने के बजाए उसे चोंच मारी| लड़का भड़क उठा| वह समझ गया कि यह बहन की ही चाल है| पर चिंता की कोई बात नहीं| अभी पता चल जाएगा|

अब लड़के ने बहन को बुला कर कहा, ‘यह जूता भी करामाती है| इसे तुम कहोगी कि चल रे जूते टन-टनाटन, तो यह नाचने लगेगा|’ बहन ने सोचा…क्यों न मैं इसे भी रख लूं? तुरंत वह वैसा ही दूसरा जूता ले आई और चुपके से असली जूते की जगह पर रख दिया| फिर अपने कमरे में जा कर असली जूते से वह बोली, ‘चल रे जूते टन-टनाटन, टन-टनाटन|’

करामारी जूता तुरंत उछला| यहां बहन के अलावा कोई और झूठा-मक्कार नहीं था| इसलिए वह बहन के सिर पर ही टूट पड़ा| बहन रोती-चिल्लाती हुई एक कमरे से दूसरे कमरे में दौड़ने लगी| जूता बराबर उसका पीछा करता उस पर चोंटें करता रहा| बहन बेचारी हैरान-परेशान हो गई| उसके सिर पर इतने जूते पड़े कि सारे बाल ही झड़ गए| अब वह दौड़ी-दौड़ी भाई के पास आई और बोली, ‘भैया, अपने इस करामारी जूते को तुम अपने पास बुला लो| देखो, इसने तो मार-मार कर मेरा सिर ही गंजा कर डाला है|’ भाई ने कहा, ‘जरूर बुला लूंगा, लेकिन पहले मेरा असली चूल्हा और मुर्गी लौटा दो|’ बहन खिसिया गई| उसने भाई को उसकी दोनों चीजें तुरंत सौंप दी| अब लड़के ने जूते से कहा, ‘टन-टनाटन आजा जूते छन-छनाछन|’ उसी क्षण जूता शांत हो कर लड़का पास चला आया|

दूसरे रोज लड़का अपने घर पहुंचा| वह चूल्हे से तरह-तरह के पकवान मांगता और मां के साथ बैठ कर खाता| सोने के अंडे बेच-बेच कर उसने एक हवेली बनवाई| उसमें वह मां के साथ ठाठ से रहने लगा|

एक रोज वह महल में गया और राजा को झुक-झुक कर सलाम करके बोला, ‘मैं आपकी राजकुमारी से ब्याह करना चाहता हूं|’ सुन कर राजा के माथे पर बल पड़ गए| बोला, ‘छोकरे, तेरी यह मजाल!’ फिर सिपाहियों को आदेश दिया, ‘इसे कैद में डाल कर रोज दस कोड़े मारे जाएं|’ लेकिन लड़के के पास तो करामाती जूता तैयार था| हुक्म पाते ही वह सिपाहियों पर टूट पड़ा| किसी की पगड़ी उड़ी, किसी की टांग टूटी, किसी का माथा फूटा, किसी का थोबड़ा लाल हो गया| थोड़ी ही देर में सबके सब भाग खड़े हुए|

अब राजा ने अपने सेनापति को भेजा| उसका भी वही हाल हुआ| उस पर इतने जूते पड़े कि वह वहीं ढह गया| आखिरकार राजा को अपनी राजकुमारी का ब्याह उस लड़के के साथ करना पड़ा|

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