परिचय से मिलता है साहस

दादाजी का बाघ

बाघ का शावक हमारा टिमोथी मेरे दादाजी को उत्तर भारत के देहरा नामक स्थान के पास तराई के जंगलों में शिकार यात्रा के दौरान मिला था| दादाजी देहरा में रहते थे और जंगल से भली-भांति परिचित थे| इसलिए शिकारी दल ने उन्हें साथ चलने के लिए मना लिया था|

जंगल के रास्ते पर चलते हुए शिकारियों के दल से कुछ ही दूरी पर टहलने हुए दादाजी को बरगद के पेड़ की जड़ों के बीच छिपा हुआ अट्ठारह इंच लंबा छोटा-सा बाघ का शावक मिला, जिसे शायद मां ने त्याग दिया था| शिकार-यात्रा खत्म होने के बाद दादाजी उसे देहरा में अपने घर ले आये, जहां दादीजी ने उसे नाम दिया टिमोथी|

घर की बैठक टिमोथी का सबसे पसंदीदा स्थान था| वह आराम से सोफे पर बैठता और बड़े ही शांत भाव से वहां ठाठ से लेटता और किसी पर तभी गुर्राता जब कोई उसे, उसके स्थान से हटाने की कोशिश करता| जो कोई भी उसके साथ खेलता, उसके पीछे छुपकर चलने का खेल, टिमोथी के मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन था| इसलिए जब मैं अपने दादाजी के यहां रहने के लिए गया तो मैं भी उसका चहेता बन गया| धूर्तताभरी आंखों और चापलूसी से अपने शरीर को झुकाते हुए धीरे-धीरे अचानक ही वह मेरे पैरों के काफी पास खिसक आता| तब वह अचानक मेरे पांवों पर झपट पड़ता| उसके बाद प्रसन्नता से अपनी पीठ के बल लेटकर खुशी में वह मेरे पावों के टखनों को काटने का खेल खेलता|

समय के साथ उसका आकार एक पूर्ण विकसित सुनहरे शिकारी कुत्ते की भांति हो गया और जब मैं देहरा में उसे घुमाने ले जाता तो लोग उसे देखते ही सड़क से एक ओर हट जाते थे| रात में वह हमारे रसोइए महमूद के क्वार्टर में सोता था| दादाजी ने ऐलान किया, “किसी दिन हम लोग महमूद के बिस्तर पर केवल टिमोथी को बैठे हुए देखेंगे, और महमूद गायब होगा|”

जब टिमोथी छह मास का हुआ, तब उसकी शरारतें ज्यादा गंभीर हो गयीं| प्राय: उसे जंजीर से बांध दिया जाता था| घर के लोगों ने उस पर विश्वास करना छोड़ दिया था| और जब उसने महमूद के आगे-पीछे खतरनाक इरादों से घूमना शुरू कर दिया, तब दादाजी ने टिमोथी को चिड़ियाघर में भेजने का फैसला किया|

लगभग दो सौ किलोमीटर की दूरी पर सबसे नजदीकी चिड़ियाघर लखनऊ में था| दादाजी ने खुद के लिए रेल के प्रथम श्रेणी के टिब्बे में सीटें आरक्षित कराई और यात्रा प्रारंभ की| लखनऊ चिड़ियाघर का प्रशासन एक सभ्य व स्वस्थ शेर को पाकर काफी प्रसन्न था|

दादाजी को छह महीने तक यह देखने का अवसर नहीं मिला कि टिमोथी अपने नये घर में कैसे रह रहा है? छह महीने बाद दादाजी लखनऊ में अपने रिश्तेदारों से मिलने गये| दादाजी चिड़ियाघर में गये और सीधे टिमोथी के पिंजरे के पास पहुंचे| वहां कोने में एक पूर्ण विकसित, स्वस्थ व सुनहरी धारियों वाला बाघ सुस्ता रहा था|

“हैलो टिमोथी,” दादाजी ने पुकारा|

फिर रेलिंग पर चढ़ते हुए उन्होंने पिंजरे की सलाखों के अंदर अपनी बांहों को डाला| टिमोथी आगे बढ़ा और दादाजी को बांहों में अपने सिर को लेने दिया| दादाजी ने टिमोथी के मस्तक को प्यार से थपथपाया और उसके कानों को गुदगुदाया| प्रत्येक बार जब भी टिमोथी गुर्राता, दादाजी प्यार से उसके मुंह को छूकर पुचकारते| ठीक उसी तरह जब टिमोथी उनके साथ रहता था और उसे शांत करने के लिए वह इसी तरह उसे पुचकारा करते थे|

टिमोथी ने दादाजी के हाथों को चाटा, पर जैसे ही दूसरे पिंजरे में बंधा तेंदुआ उस पर गुर्राया वह डरकर थोड़ा पीछे हट गया| परंतु जब दादाजी ने उस तेंदुए को कुछ बोलकर डरा दिया तो टिमोथी एक बार फिर लौटकर उनके हाथों को चाटने लगा| बार-बार वह तेंदुआ, घेरे के अंदर टिमोथी पर झपटता और टिमोथी हर बार चुपके से कोने में अपनी जगह पर खिसक जाता| काफी लोग इस अटूट प्रेम बंधन को देखने जमा हो गये| तभी एक गार्ड भीड़ को चीरता आगे आया और दादाजी से उसने पूछा कि वह क्या कर रहे हैं? दादाजी ने कहा, ‘मैं टिमोथी से बात कर रहा हूं| क्या तुम तब यहां नहीं थे, जब मैंने टिमोथी को छह महीने पहले यहां छोड़ा था?”

चिड़ियाघर कीपर ने चकित होते हुए कहा, “मैं काफी समय से यहां नहीं था|” चकित कीपर ने कहा| “आप अपनी बातचीत जारी रखें| मैं खुद कभी भी इस बाघ को छू नहीं सका हूं| मैंने हमेशा इसे गुस्सैल पाया है|”

दादाजी लगभग पांच मिनटों तक टिमोथी को प्यार से सहलाते-पुचकारते रहे, तभी उनका ध्यान एक दूसरे कीपर पर गया जो काफी देर से उन्हें थोड़ी घबराहट के साथ देख रहा था| दादाजी ने उसे पहचान लिया| यह वही कीपर था जो टिमोथी को चिड़ियाघर में छोड़ते वक्त यहां था| दादाजी ने पूछा, “क्या तुमने मुझे पहचाना?” तुम क्यों नहीं टिमोथी को इस गंदे तेंदुए से दूर किसी दूसरे पिंजरे में रखते|”

“लेकिन श्रीमान,” कीपर थोड़ा हकलाते हुए बोला, “यह आपका बाघ नहीं है|”

“मैं मानता हूं कि अब यह मेरा नहीं रहा,” दादाजी ने कहा| “लेकिन कम से कम तुम मेरी सलाह तो ले सकते हो|”

कीपर ने कहा, “मुझे आपका बाघ अच्छी तरह याद है| वह दो महीने पहले ही मर गया|”

दादाजी ने आश्चर्य से कहा, “मर गया?”

“हां श्रीमान, वह निमोनिया से मर गया| यह बाघ पिछले महीने ही घाटियों से पकड़ा गया है और काफी खतरनाक है|”

बाघ अभी भी दादाजी के हाथों को बड़े इत्मीनान के साथ चाट रहा था| दादाजी ने झटके से अपने हाथ को पिंजरे से बाहर निकाल लिया| बाघ के चेहरे के पास अपने मुंह को ले जाकर उन्होंने फुसफुसाया, “शुभ रात्रि, टिमोथी|” और कीपर की तरफ उपेक्षा से देखते हुए दादाजी तेजी से चिड़ियाघर के बाहर निकल गये|

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *