अगले दिन जब वह पुन: खेत में आया तो उसने कटोरे में एक सोने का सिक्का रखा देखा| अब वह प्रतिदिन बाँबी के आगे दूध से भरा कटोरा रखता और अगले दिन सोने का सिक्का ले जाता| एक बार ब्राह्मण को किसी दुसरे गाँव में किसी काम से जाना था| उसने अपने पुत्र को दूध लेकर जाने के लिए कहा| पुत्र निर्देशानुसार दूध का कटोरा बाँबी के पास रखकर आ गया| अगले दिन जब उसने कटोरे में एक सोने का सिक्का देखा तो वह ललचा गया|
उसने सोचा कि अवश्य ही यह बाँबी सोने के सिक्कों से भरी है| यदि वह उस साँप को मार दे तो सभी सिक्के एक बार में ही पा लेगा| यह सोचकर उसने साँप पर छड़ी से वार किया परंतु साँप बहुत फुर्तीला था| उसने तुरंत ही ब्राह्मण पुत्र को काट लिया जिससे उसने वहीं दम तोड़ दिया| अगले दिन हरिदत्त गाँव लौटा| साँप के काटने से हुई पुत्र की मृत्यु की सुचना से ही वह समझ गया कि उसके पीछे लालच ही था|
दूसरे दिन वह स्वयं साँप के लिए दूध लेकर पहुँचा| वह साँप से दूध पीने का आग्रह करने लगा| साँप बाँबी के अंदर से ही बोला, “तुम अपने पुत्र की मृत्यु को भूलकर लालच के कारण यहाँ आए हो| मैंने ही तुम्हारे पुत्र को काटा था परंतु तुम सोने के सिक्कों के लालच के कारण मुझे दोबारा दूध देने आ गए| तुम जैसे लालचियों के लिए मैं कुछ नहीं करता| तुम यहाँ से चले जाओ और दोबारा नहीं आना|
कथा सार: लालची आदमी की कोई मदद नहीं करता|