ईमानदार लकड़हारा - Honest Wood Cutter

ईमानदार लकड़हारा – Honest Wood Cutter Man

एक बार की बात है, एक गाँव से एक गरीब लकड़हारा अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहता था| वह गरीब अवश्य था परंतु सच्चा और ईमानदार भी था| प्रत्येक सुबह वह घने जंगल में पेड़ की लकड़ियाँ काटने जाता और फिर उन्हें बेच अपनी जीविका चलाता|

एक दिन हर रोज़ की तरह वह जंगल में लकड़ियाँ काटने के लिए गया| वह नदी के किनारे एक पेड़ पर चढ़कर अपनी कुल्हाड़ी से लकड़ी काटने लगा| एक बार जैसे ही पेड़ की डाली काटने के लिए उसने कुल्हाड़ी उठाई कुल्हाड़ी उसके हाथ से छूट कर नदी में गिर गई|

गरीब लकड़हारा जल्दी से पेड़ के नीचे उतरा और नदी में झाँककर अपनी कुल्हाड़ी ढूँढने लगा| उसकी कुल्हाड़ी नदी में खो गई थी और उसे बाहर निकालने का कोई रास्ता नहीं था| वह नदी के किनारे बैठ कर दर्द भरी आवाज में रोने लगा|

वह कुल्हाड़ी ही उसकी जीविका का साधन थी| उसके बिना वह अपने परिवार का पालन-पोषण करने में असमर्थ था| दूसरी कुल्हाड़ी खरीदने के लिए उसके पास पैसे भी नहीं थे| वह नदी किनारे बैठा यह सब सोच रहा था कि अचानक एक यक्ष उसके सामने प्रकट हुआ और उसने रोने का कारण पूछा|

लकड़हारा बोला, “मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है| अब मैं अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करूँगा?”

उस यक्ष को गरीब लकड़हारे पर दया आ गई और वह बोला, “तुम चिंता मत करो| मैं एक अच्छा तैराक हूँ| मैं अभी तुम्हारी कुल्हाड़ी वापस लाता हूँ|” यह कहकर यक्ष ने पानी में डुबकी लगाई| थोड़ी देर बाद जब वह पानी से बाहर निकला तो उसके हाथ में एक कुल्हाड़ी थी जो शुद्ध सोने की बनी थी| यक्ष ने कहा, “क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”

“नहीं यह कुल्हाड़ी तो सोने की बनी है| नहीं, यह मेरी नहीं है|”

यक्ष सोने की कुल्हाड़ी नदी के किनारे छोड़कर पुन: नदी में कूद गया| इस बार वह चाँदी की कुल्हाड़ी लेकर आया|

“ये तो तुम्हारी ही कुल्हाड़ी होगी,” वह आत्मविश्वास के साथ बोला|

लेकिन लकड़हारे ने दोबारा मना कर दिया, “नहीं यह भी मेरी नहीं है| मेरी कुल्हाड़ी साधारण लोहे की बनी थी|”

यक्ष ने चाँदी की कुल्हाड़ी को भी किनारे छोड़ दिया| उसने फिर पानी में डुबकी लगाई| कुछ देर के बाद ही वह लोहे की कुल्हाड़ी लेकर आया| लकड़हारा अपनी कुल्हाड़ी देखकर खुशी से झूम उठा और चिल्लाया, “हाँ, यही है मेरी कुल्हाड़ी!”

लकड़हारे की ईमानदारी से यक्ष बहुत प्रसन्न हुआ और बोला, “मैं इस नदी का देवता हूँ| मैं तुम्हारी की सराहना करता हूँ| मैं तुम्हें उपहार स्वरूप सोने और चाँदी की दोनों कुल्हाड़ियाँ भी देता हूँ|”

लकड़हारे ने यक्ष से तीनों कुल्हाड़ियाँ बड़ी प्रसन्नता से स्वीकार कर लीं| उसने हृदय से यक्ष को धन्यवाद दिया और जल्दी से अपनी पत्नी और बच्चों को सुखद समाचार सुनाने के लिए घर की ओर चल पड़ा|

कथा सार: ईमानदारी हमेशा लाभदायक रहती है|

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