चलते-चलते उसने एक दिन रास्ते में एक पानी का चश्मा देखा| उसे बड़े ज़ोरों की प्यास लग रही थी| उसने भगवान का लाख-लाख शुक्र अदा किया जिसकी कृपा से उसे पानी की शक्ल नज़र आई|
प्यासा राजकुमार उस चश्मे की ओर तेज़ी से बढ़ा परन्तु जैसे ही वहाँ पर पहुँचा तो वह पानी न होकर चाँदी की भाँति चमकने वाला एक साँप था|
निराश होकर सुन्दर सिंह जैसे ही वापस जाने लगा तो पीछे से किसी ने आवाज़ दी – “ठहरो राजकुमार! तुम वापस क्यों जा रहे हो?” उस साँप ने अपना सिर उठाकर उससे कहा|
“भाई मैं तो प्यासा हूँ और पानी पीने आया था अब मैंने जैसे ही साँप को देखा तो वापस पानी की तलाश में जा रहा हूँ|”
“अरे भाई! प्यासे मत जाओ! मैं आपको पानी पिलाता हूँ| इस स्थान पर तुम्हें सब कुछ मिल जाएगा|” राजकुमार उसकी आवाज़ सुनकर फिर वापस आ गया और साँप के साथ-साथ चलने लगा|
थोड़ी देर बाद ही साँप उसे पानी के साफ-सुथरे चश्मे पर ले आया| उस चश्मे के चारों ओर बहुत बड़ा बगीचा था| राजकुमार पानी पीकर बगीचे में सैर करने लगा तो साँप चश्मे में कुद गया|
थोड़ी देर के बाद एक युवक बाहर आया| साँप ने बताया – “यह हमारे स्वामी है|” दोनों एक दूसरे के गले मिले फिर वह स्वामी अपने घर ले गया| वहाँ पर उसके लिए भोजन तैयार किया रखा था|
राजकुमार ने उस युवक से पूछा – “हे मित्र! आप कौन हैं, जो मुझसे इतना प्रेम कर रहे हैं तथा मेरी सेवा कर रहे हैं?”
“मेरे अजनबी मित्र! मैं असल में परी वंश से सम्बन्ध रखता हूँ| मेरा असली रूप साँप का ही है| जो साँप मुझे पानी में से निकालकर लाया था वह मेरा भाई है| मुझे परियों की रानी ने श्राप देकर साँप बना दिया था| साथ ही यह भी कहा था कि दूर देश से एक राजकुमार आएगा| उसके आने से तुम फिर से मानव बन जाओगे|”
“भइया! आज तुम्हारी कृपा से मैं फिर से इन्सान बन गया हूँ| अब मेरे भाई के लिए भी एक बार प्रार्थना करके इसे भी इन्सान बना दो|”
राजकुमार ने उसी समय-भगवान से प्रार्थना की तो वह साँप भी इन्सान बन गया|
“धन्यवाद मित्र! आपका जितना भी धन्यवाद करूँ कम होगा| अब तुम बताओ कि इस परियों के देश में तुम्हारा आना कैसे हुआ?”
“मित्र! मैं एक ऐसी राजकुमारी से विवाह करना चाहता हूँ जिसके पास जादू का एक हीरा है| उसके साथ-साथ दूसरा हीरा भी इसी संसार में है| उस राजकुमारी की यह शर्त है की जो कोई उस हीरे को लेकर आएगा मैं उसी से शादी करुँगी| मैं उसी हीरे को लेने यहाँ आया हूँ|”
“भैया राजकुमार! उस हीरे को पाना बड़ा कठिन है| उसे पाने के लिए तो तुम्हें अपनी जान से खेलना पड़ेगा|”
“मुझे अपनी जान की कोई चिन्ता नहीं| हाँ! मैं जीवन में हार मानना नहीं चाहता|”
“ठीक है, यदि तुम मरने-मारने के लिए तैयार हो गए हो तो चलो मैं तुम्हारे जाने का प्रबन्ध एक उड़न खटोले से कर देता हूँ| तुम्हारी सहायता के लिए मेरा यह भाई जो परी वंश से सम्बन्ध रखता है तुम्हारे साथ जाएगा|”
वहाँ से एक लम्बी यात्रा के बाद जैसे ही वे दोनों परियों के देश में पहुँचे तो तीन-चार देवों ने आकर उन्हें घेर लिया| थोड़ी देर में ही वे लोग उन्हें बन्दी बनाकर ले गए|
राजकुमार ने रात के अंधेरा का लाभ उठाते हुए वहाँ से अपने साथी को साथ लिया और भाग गया|
अब वह दोनों रात के अंधेरे में ही सफर करते रहे और दो दिन की कठिन यात्रा के बाद परियों के देश में पहुँच गए|
उस पहाड़ी पर एक बहुत बड़ा बगीचा था| रात के सफर की थकावट के कारण वे बगीचे में टहलने लगे| उसी समय एक भयंकर भूत वहाँ आया| उसने राजकुमार को अपने बगीचे में टहलते देखा तो क्रोध में भड़क उठा – “मेरे बगीचे में मानव जाती का क्या काम? पकड़ो इसे और जेल में बन्द कर दो| पता नहीं यह मानव हमारे देश में कैसे आ गया?”
राजकुमार को तो जेल में डाल दिया गया परन्तु उसके साथ में आए परी वंश के प्राणी को छोड़ दिया गया| हालांकि उस परी वंश के साथी ने उससे बहुत कहा कि – “यह मेरा मित्र है| भले ही इसका सम्बन्ध मानव जाति से है परन्तु मन का बहुत ही अच्छा है|” किन्तु उस महाकाल ने उसकी कोई भी बात न सुनी|
मित्र को कैद से निकालने के लिए उसने बड़ी चालाकी से रात के समय जब सब पहरेदार सो रहे थे राजकुमार को बाहर निकाला और अपने ही उड़न खटोले पर बैठाकर उस देश तक ले गया जो परियों की रानी का अपना देश था| यहीं पर राजकुमार ने चिड़िया के पंखों की राख अपने शरीर पर मलनी थी|
जैसे ही राजकुमार ने अपने शरीर पर वह राख मली तो वैसे ही उसकी शक्ल देव जैसी हो गई| उसी समय वह परियों के देश में प्रवेश कर गया| रास्ते में कितनी नदियाँ, कितने ही ऊँचे पहाड़ आए इन सबको वे किसी तरह से पार करते चले गए| राजकुमार का मित्र दो उड़ने वाले घोड़े पकड़ लाया था| वे घोड़े तैर भी सकते थे और उड़ भी सकते थे| उन घोड़ों पर जैसे ही वे बैठे तो वह हवा से बातें करने लगे|
दो दिन के सफर के बाद राजकुमार का दोस्त कुछ जंगलियों को अपने सैनिक बनाकर ले आया| ये सब परी देश के वासी थे| ये न मानव जाति के थे न ही पशु जाति के…. ये बड़े विचित्र प्राणी थे| इन्हें देखकर राजकुमार को हँसी आ रही थी|
अब तो केवल उसे अपना समय निकालना था| उसका मित्र जैसे-जैसे उसे परियों के राजा के पास ले गया| राजा तो इतना भयंकर था कि उसे देखते ही डर लगता था| कहाँ सुन्दर परियाँ और कहाँ यह काला देव?
हे भगवान! तुम्हारे भी यह कैसे-कैसे खेल हैं| कहीं प्रकाश तो कहीं अंधेरा| कहीं फूल तो कहीं यह अंगारे|”
राजा भयंकर तो जरूर था मगर मन का बहुत ही साफ और प्रेमी था| उसने राजकुमार की हिम्मत की दाद दी और उसकी प्रशंसा करते हुए कहा – “राजकुमार! तुम्हारी बहादुरी और हिम्मत की जितनी भी प्रशंसा करूँ वह काम ही होगी| आज तक हमारे देश में मानव जाति का कोई भी प्राणी प्रवेश नहीं कर सका था| तुमने तो अनहोनी को होनी बना दिया| किन्तु मेरी समझ में यह बात अभी तक नहीं आई कि तुमने यहाँ आने के लिए जो इतने कष्ट सहन किए हैं उनका क्या कारण है? मैं यह जानता हूँ कि कोई भी आदमी बिना किसी लक्ष्य के इतने कष्ट नहीं उठा सकता|”
“मेरे अजनबी मित्र! मैं भी आपकी तरह एक राजा ही हूँ| असल में मुझे एक राजकुमारी से प्रेम हो गया है| उसके पास एक बहुत कीमती हीरा है| उसने विवाह के लिए यही शर्त रखी है कि यदि मैं इसके साथ का दूसरा हीरा उसे लाकर दूँगा तभी वह मुझसे विवाह करेगी| अब मैं उससे इतना प्रेम करता हूँ कि उसके बिना मेरा जीवन व्यर्थ है| यही सोचकर मैंने अपने जीवन को दाँव पर लगा दिया| अब तो मेरे जीवन और भाग्य का फैसला आपके हाथ में है| आप चाहें तो मेरा जीवन बचा सकते हैं| आप वह हीरा मुझे दे देंगे तो मेरा घर भी आबाद हो जाएगा|”
परी देश के राजा ने जैसे ही राजकुमार की पूरी कहानी सुनी तो उसे पता चल गया कि इस राजा का प्रेम सच्चा है| इसी प्रेम के लिए उसने अपना जीवन तक दाँव पर लगा दिया| राजा ने उसी समय हीरा निकालकर राजकुमार को दे दिया और साथ ही उसने अपनी बेटी की शादी डमरु से कर दी| उसने इन दोनों से प्रार्थना की – “आप लोग कुछ दिनों के लिए हमारे देश में रुक जाएँ| इस परियों के देश में मानव जाति का प्रवेश तो हमने बन्द कर रखा है| तुम पहले मानव हो जिसने हमारा मन जीत लिया है|”
इस प्रकार राजकुमार उस हीरे को लेकर वापस राजकुमारी के पास पहुँचा तो राजकुमारी हीरे को पाकर बहुत प्रसन्न हुई और राजकुमार के गले में बाहें डालकर बोली – “आप वास्तव में ही मेरे पति बनने के योग्य हो|” और दूसरे दिन इन दोनों की शादी हो गई|