मैं हूं महाराजों का राजा
खाऊं लड्डू पेड़े खाजा
भाग रे लंगोटे भाग यहां से
वरना बजा दूंगा तेरा बाजा
यह सुन कर बाबाजी ऐसे डरे कि गांव में जा कर मुखिया को बुला लाए| कुटिया की कुंडी खटखटा कर मुखिया ने पूछा, ‘बाबाजी की कुटिया में कौन घुसा है?’ भीतर से बुलंद आवाज में खरगोश बोला :
मैं हूं महाराजों को राजा
खाऊं लड्डू पेड़े खाजा
भाग रे मुखिया भाग यहां से
वरना बजा दूंगा तेरा बाजा
मुखिया भी ऐसा डरा कि दौड़ा-दौड़ा थाने गया और थानेदार को बुला लाया| थानेदार ने मूंछे मरोड़ते हुए पूछा, ‘ बाबाजी की कुटिया में कौन घुसा है?’ खरगोश कड़कती हुई सख्त आवाज में बोला :
मैं हूं महाराजों को राजा
खाऊं लड्डू पेड़े खाजा
भाग रे थानेदार यहां से
वरना बजा दूंगा तेरा बाजा
सुन कर थानेदार ऐसा डरा कि उसे बुखार चढ़ गया| अब बाबाजी और मुखिया क्या करते? वे दोनों भी चले गए| थोड़ी देर बाद खरगोश दरवाजा खोल कर बाहर निकला और लोमड़ी से मिल कर सारा किस्सा उसे सुनाया| लड्डू की बात सुन कर लोमड़ी के मुंह में पानी आ गया| वह बोली, ‘मैं भी कुटिया में जाऊंगी|’ खरगोश ने पूछा, अगर बाबाजी आ गए तो तुम क्या कहोगी?’ वह सीना तान कर बोली :
मैं हूं महारानियों की रानी
खाऊं लड्डू खाऊं गुड़धानी
भाग रे लंगोटे भाग यहां से
वरना याद दिला दूंगी नानी
खरगोश बोला, ‘ठीक है| जाओ, तुम भी लड्डूओं का मजा चख आओ|’
लोमड़ी तुरंत दौड़ी और बाबाजी की कुटिया में घुस कर ही उसने दम लिया| फिर दरवाजे में कुंडी लगा कर वह लड्डू खाने लगी| अभी उसने पहला लड्डू ही खत्म किया था कि बाबाजी आ पहुंचे| देखा तो दरवाजा बंद| फिर कौन घुसा होगा? वह बोले, ‘हमारी कुटिया में कौन छिपा है?’ भीतर से लोमड़ी चिल्लाई :
मैं हूं महारानियों की रानी
खाऊं लड्डू खाऊं गुड़धानी
भाग रे लंगोटे भाग यहां से
वरना याद दिला दूंगी नानी
बाबाजी ने उसकी पतली आवाज पहचान ली ‘अरे, यह तो लोमड़ी है!’ उन्होंने शोर मचा कर लोगों को इकट्ठा कर लिया| लोमड़ी घबरा गई| वह दरवाजा खोल कर भागने लगी, तो बाबाजी ने उसे पकड़ लिया और जम कर उसकी पिटाई की|
फिर पूछा, ‘क्यों महारानियों की रानी, लड्डू का स्वाद कैसा लगा?’ लोमड़ी क्या बोलती! दर्द से कराहती हुई वह वन में लौट गई|