परिचय से मिलता है साहस

जादू का कुँआ

“सूरज” यह वही युवक था जो अपने घर से इसलिए भाग आया था कि वह दुनिया की सैर करना चाहता था| अपने देश में घूमकर जनता को करीब से देखना चाहता था| उसके पिता राजा अभयसिंह भी उसे इस कार्य से रोक नहीं सके थे|

राजा को किसी फ़क़ीर ने आकर बताया कि इस संसार में एक ऐसा गुसलखाना (स्नानगृह) है जो स्वयं ही घूमता रहता है| उसके अन्दर अपने आप ही पानी, साबुन, वस्त्र आते हैं| स्नान करते समय यदि आपको किसी भी चीज़ की आवश्यकता पड़ जाती है तो आप गुसलखाने को आवाज़ दीजिए बस आपकी चीज़ हाज़िर|

राजा अभयसिंह अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजा माने जाते थे| उन्हें अपने बेटे सूरज पर पूरा विश्वास था कि वह भी उनकी तरह ही वीर योद्धा होगा|

यही कारण था कि राजा ने अपने बेटे को बुलाकर कहा – “देखो बेटा सूरज! मैं तुम्हें तभी इस राजगद्दी के योग्य समझूँगा जब तुम उस घूमने वाले जादू के गुसलखाने को लेकर आओगे|”

“पिताजी! आप चिन्ता न करें| सूरज सिंह जिस काम में हाथ डाल लेता है उस कार्य में या तो विजय होगी या फिर मृत्यु| हारी हुई जिन्दगी आपके बेटे को पसन्द नहीं|”

इतनी बात कहकर सूरज सिंह वहाँ से निकल गया| घोड़े पर चलते-चलते वह एक शहर के बाहर पहुँचा तो उसने एक कुएँ पर बहुत भीड़ जमा होती देखी| उसने घोड़े को रोककर एक आदमी से पूछा – “भैया! क्या बात है इस कुएँ पर इतने लोग क्यों इकट्ठे हो रहे हैं?”

“भाई! मैंने यही सुना है कि शहर के प्रबन्धक का बेटा जो दो दिन से कुएँ के पास बैठा प्रभु की उपासना में लगा हुआ था आज उसने अचानक ही कुएँ में छलाँग लगा दी| अब उसे बाहर निकालने के सारे प्रयत्न विफल हो गए| सब लोग दु:खी और निराश खड़े हैं| किसी की समझ में नहीं आता कि अब उस बच्चे को कैसे निकाला जाए?”

सूरज ने देखा लड़के के माता-पिता बुरी तरह रो रहे थे| माँ ने तो छाती पीट-पीटकर अपना बुरा हाल कर लिया था|

सूरज उसे इस प्रकार रोते न देख सका| उसने घोड़े से उतरकर उस औरत से पास जाकर कहा – “माँ जी! आप शान्त हो जाओ| रोने-धोने से आपका बेटा छलाँग लगाकर तो बाहर नहीं निकल आएगा| वह तो बाहर निकलेगा| किसी न किसी तरीके से| कोई कुएँ में छलाँग लगाकर कूद  जाए तभी तो उसे बाहर निकालकर ला सकता है|”

“बेटा! यहाँ पर तो कोई भी ऐसा पुरुष नहीं जो कुएँ में कूदने का साहस कर सके| हमारे तो नसीब फूट गए हैं…. हम क्या करें?”

सूरज से उस माँ का रोना देखा न गया| उसने झट से कहा – “माँ जी! आप चिन्ता न करें| मैं इस कुएँ में कूद रहा हूँ| भगवन ने चाहा तो आपके बच्चे को लेकर ही आऊँगा| बस आप थोड़ी देर तक मेरा इन्तज़ार करना|” इतनी बात कहकर वह कुएँ में कूद गया|”

जब सूरज ने आँखें खोलीं तो उसने देखा कि वहाँ कोई कुआँ नहीं था| वह तो एक खुले स्थान पर लेटा हुआ था| जिस पलंग पर वह लेटा हुआ था उस पर चारों ओर मोतियों की झालरें लटक रही थीं| उसके सामने ही एक सुन्दर युवक बैठा था| उसके चारों ओर परियाँ ही परियाँ जमा थीं|

जैसे ही वह उठकर बैठा तो एक परी जिसके सिर पर सोने का ताज रखा इस बात का प्रतीक था कि वह परियों की रानी है| उसकी ओर देखकर पास बैठे युवक से बोली – “देखो! तुम्हारा एक भाई और आ गया| इसे भी अपने पास बुला लो और उसका हाल जानों|” तभी एक परी उसे उठाकर उस सुन्दर लकड़े के पास ले गई|

अब दोनों मिले तो अपनी बातें करने लगे| सूरज ने उससे उसका नाम पूछा तो उसने बताया कि – “मेरा नाम प्रकाश है|

“तुम कुएँ में कैसे गिर गए?”

“एक दिन मैं इधर घूमने को निकला तो मैंने कुएँ की मुंडेर पर बैठी इस लड़की (जो परियों की रानी है) को देखा| जैसे ही मैंने इसका हाथ पकड़ने का प्रयत्न किया तो उसने कुएँ में छलांग लगा दी| मैं भी इसके प्यार में इतना अंधा हो गया था कि मैंने भी इसके पीछे कुएँ में छलांग लगा दी| बस फिर क्या था यहाँ आया तो जीवन के सारे आनन्द प्राप्त हो गए हैं| अब तो ऐसा लगता है जैसे मैं नर्क से स्वर्ग में आ गया हूँ|”

“तुम स्वर्ग में मौज उड़ा रहे हो और जो नर्क में तुम्हारे माँ-बाप रो-रोकर पागल हो रहे हैं उनके बारे में भी तुमने सोचा है?”

“भैया! अब मैं इस कुएँ से निकलकर कैसे जाऊँ? मैं तो उसी हालत में बाहर जा सकता हूँ जब हमारी परी रानी की अनुमति मिलेगी| कुएँ में गिरना तो बड़ा सरल है लेकिन कुएँ से बाहर निकलना सरल नहीं है|”

“ठीक है! मैं ही इस परी रानी से बात करता हूँ|”

यह कहते हुए सूरज उस परी के पास गया और उससे कहने लगा – “देखो परी रानी! इस लड़के के माँ-बाप रो-रोकर पागल हो रहे हैं| आप इसे उनसे मिलने की अनुमति दे दो|”

वह हँसकर बोली – “देखो सूरज! न तो हम तुम्हारे इस भाईबन्द को यहाँ पर लेकर आये न ही इसे किसी ने जाने से मना किया है| यह तो स्वयं ही पागल होकर मेरे पीछे दौड़ता हुआ आया था| अब यदि अपने माँ-बाप से मिलना चाहता है तो खुशी से जाए|”

सूरज ने खुशी से उसका हाथ पकड़कर कहा – “चलो प्रकाश भाई चलो! अब तो तुम्हें अनुमति मिल गई|” सूरज जैसे ही उसका हाथ पकड़कर उठाने लगा तो परी झट से बोली – “ठहरो! इसे अनुमति नहीं कहते|”

“देखो परी रानी! आप भी एक नारी हो| क्या नारी होकर इसके माँ-बाप का दुःख नहीं समझ सकती हो जो अपनी औलाद के लिए तड़प रहें हैं?”

“देखो सूरज! हमारे देश में ये सब झूठे आडम्बर नहीं चलते| हम इन सब रिश्तों को नहीं जानते| हम केवल प्रेम के बारे में जानते हैं| मैं अब इस प्रकाश की प्रेम की परीक्षा लूँगी| यदि यह उस परीक्षा में पूरा उतरा तो मैं इस कुछ दिनों के लिए तुम्हारे साथ जाने की अनुमति दे दूँगी|”

“ठीक है! आप इसकी प्रेम परीक्षा ले लो|”

परियों की रानी ने ताली बजाई तो दासियाँ भागी हुई आईं| उसने अपनी भाषा में उन दासियों से कुछ कहा तो थोड़ी देर के बाद ही एक बड़े कड़ाहे में खौलता हुआ पानी उनके सामने आया|

तब परियों की रानी प्रकाश से बोली – “यदि तुम मुझसे सच्चा प्रेम करते हो तो इस खौलते हुए पानी में कूद जाओ|”

प्रकाश जैसे ही उस पानी में छलांग लगाने लगा तो परी रानी ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपने सीने से लगाकर बोली – “प्रकाश! आज तुम जीत गए और मैं हार गई| वास्तव में ही तुम जीत गये और मैं आज से तुम्हारी दासी बन गई हूँ| अब तुम कुछ दिन के लिए अपने माँ-बाप से मिलने जा सकते हो|”

इस प्रकार से सूरज ने प्रकाश को अपने साथ लिया| परियों की रानी ने उसे अपने जादू की शक्ति से बाहर निकाल दिया|

जैसे ही प्रकाश अपने माँ-बाप से जाकर मिला तो वे ख़ुशी से पागल हो गए थे| उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनका बेटा जीवित वापस आ गया है|

उन्होंने सूरज को कई दिन अपने पास बेटे की भाँति रखा| अब तो सूरज और प्रकाश की मित्रता बहुत पक्की हो गई| एक मास तक उनके घर रहने के बाद वह फिर से घूमने वाले गुसलखाने की तलाश में निकल पड़ा|

 

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