ममता - Mamata

ममता – Mamata

मुगलसराय रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नम्बर-1 पर, दिल्ली जाने वाली ट्रेन के लिए लोगों की भीड़ लगी हुई थी| सभी अपने-अपने सामान तथा बच्चों के साथ ट्रेन का इंतजार कर रहे थे| तभी एक यात्री, नरेन्द्र प्रसाद को एक छोटे बच्चे की रोने की आवाज़ सुनाई पड़ी| नरेन्द्र जी नेक और दयालु इंसान थे| उन्होंने अपनी पत्नी सुमन से कहा, “देखो किसी नवजात बच्चे के रोने की आवाज़ आ रही है|”

उनकी पत्नी सुमन बोलीं, “हाँ, आ तो रही है, पर यह है किसकी और कहाँ से आ रही है?

नरेन्द्र – “देखता हूँ|”

सुमन – “मैं भी चलती हूँ|”

“मम्मी कहाँ जा रही हो? गाड़ी आने वाली है|” बच्चों ने कहा|

सुमन – “आने दो, अभी आते हैं|”

दोनों पीछे की ओर मुड़े, उन्हें प्लेटफ़ॉर्म पर रखे सामानों के बंडलों के बीच एक नवजात बच्ची रोती दिखाई दी| उसके पास कोई भी नहीं था| सुमन की ममता उमड़ आई| उन्होंने बच्ची को धीरे से उठाया, अपने आँचल में दुबकाकर कलेजे से लगाया|

नरेन्द्र प्रसाद जी की दो बेटियाँ पहले से ही थीं| उन्हें उस नवजात पर तरस आ गया| दोनों पति-पत्नी क्या करें, क्या न करें, सोच ही रहे थे कि दिल्ली जाने वाली ट्रेन आ गई| वे दोनों उस बच्ची को गोद में लिए दौड़े और अपनी बेटियों के साथ ट्रेन में चढ़ गए| रास्ते भर वे उस नवजात को कभी दूध तो कभी पानी पिलाते रहे और दुलारते, पुचकारते बारह घंटे बाद वे अपने घर दिल्ली पहुँच गए| घर आकर उन्होंने बच्ची को गुनगुने पानी से नहलाया| उनकी दोनों बेटियाँ प्रतिभा और नम्रता बक्से में रखे अपने बचपन के छोटे-छोटे पुराने कपड़े निकाल लाईं| कपड़े पहने नवजात बच्ची बहुत प्यारी छोटी गुड़िया-सी दिखने लगी| दोनों बेटियों ने उस गुड़िया का नामकरण भी कर दिया उसका नाम रखा गया ‘ममता’| नरेन्द्र जी और उनकी पत्नी सुमन ममता को देख-देखकर फूले नहीं समाते थे| उनकी दोनों बेटियों को खेलने और प्यार करने के लिए एक छोटा-सा, प्यारा खिलौना भी मिल गया था| नरेन्द्र समझदार थे और कानून के जानकर भी| उन्होंने अपने शहर के थाने में भी ममता के लावारिस मिलने की सूचना दे दी थी ताकि बात में उनके साथ कोई विवाद न खड़ा हो जाए|

दिन, महीने और साल बीतते गए, परन्तु ममता को लेने कोई नहीं आया| ममता नरेन्द्र की दोनों बेटियों के साथ खेलती-कूदती, धीरे-धीरे बड़ी होती गई| निर्धन नरेन्द्र, जो छोटी-सी नौकरी करते थे, ममता के भाग्य से तरक्की पाकर ऊँचे पद पर पहुँच गए| घर वैभव से भर गया| चारों तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ बिख़र गई| ममता नरेन्द्र जी की ममता की छाया में पलती रही| उसने 10 वीं कक्षा में राज्यभर में प्रथम स्थान पाकर अपने पापा का नाम रोशन किया| विद्यालय एवं राज्य सरकार ने उसे पुरस्कृत किया| इससे ममता का हौसला और भी बढ़ गया| सभी कक्षाओं में अनेक स्वर्ण-पदक जीतती हुई ममता ने इंजीनियरिंग की परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर अपने कॉलेज का नाम भी ऊंचा कर दिया|

नरेन्द्र बड़े गर्व से कहते, “ममता मेरी बेटी है और मैं ममता का पिता|” अपनी दोनों बेटियों का विवाह करते समय नरेन्द्र को अत्यंत हर्ष का अनुभव हुआ था| एक दिन जब ममता को पसंद करके एक आई.ए.एस. अधिकारी ने नरेन्द्र के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो मारे खुशी के वे बहुत देर तक आँसू बहाते रहे| जिस दिन उन्होंने ममता को डोली में बैठाया, उस दिन वे खूब रोए| उनकी पत्नी उन्हें समझा रही थी, किन्तु उनके आँसू कहाँ रुक रहे थे| वे कभी रेलवे स्टेशन पर रोने की आवाज़ को यादकर ममता की ओर देखते, तो कभी पति के बँगले की ओर जा रही अपनी आँगन की चिरैया भी अपने पालनहार माता-पिता व दोनों बहनों के प्यार को याद करके भीगी पलकों से कभी आगे तो कभी पीछे देखती हुई अपनी ससुराल की ओर उड़ चली थी|

नरेन्द्र और उनकी पत्नी सुमन आँखों में आँसू लिए अपने आपको धन्य मान रहे थे कि उन्होंने किसी असहाय, अनाथ और लावारिस बच्ची की रक्षा की तथा पालन पोषण कर उसे एक ऊँचे मुकाम पर पहुँचाने का सौभाग्य पाया|

काश! ऐसे कुछ और नरेन्द्र इस संसार में अवतरित हो जाएँ तो न जाने कितनी ही वैज्ञानिक, डॉक्टर उच्च अधिकारी और यहाँ तक कि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बन सकने वाली ममताओं को मौत के मुंह से निकालकर नवजीवन प्रदान किया जा सकता है|

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *