मित्रता

मित्रता – Friendship

सोनाली और सुरभि दो पक्की सहेलियाँ थी| वे आपस में सभी बहनों से भी ज्यादा प्रेम व स्नेह से रहती थी| दोनों एक दूसरे के सुख-दुःख में काम आती थीं| सोनाली साईकिल दौड़ में हिस्सा लेकर प्रथम स्थान हासिल करना चाहती थी| इसलिए प्रतिदिन सुबह साईकिल चलाने का अभ्यास किया करती थी| उसकी दोस्त सुरभि उसका उत्साह बढ़ाया करती थी| सुरभि को गिटार बजाने का शौक था| वह संगीत की प्रतियोगिता में भाग लेकर अपना तथा अपने परिवार का नाम रोशन करना चाहती थी| दोनों सखियाँ गरीब परिवारों से थीं| उनके माता-पिता की आय के साधन भी सीमित थे|

सोनाली ने बहुत मेहनत की| साल के अंत में प्रतियोगिता का समय आया| दोनों सहेलियाँ विद्यालय पहुँची| सोनाली ने पूरी लगन और विश्वास से मैदान में साइकिल दौड़ाई| सुरभि ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ बजाकर अपनी दोस्त का हौसला बढ़ा रही थी, किन्तु बहुत परिश्रम के बावजूद भी सोनाली की कोशिश बेकार गई| वह प्रतियोगिता हार गई| उदास सोनाली रोने लगी और रोते-रोते कहने लगी, “काश! आज उसकी साईकिल में गियर होते तो वह अवश्य ही जीत जाती|” सुरभि सोनाली को समझाकर घर ले गई और बोली, “अगली साईकिल दौड़ में तुम ही जीतोगी, यह मुझे विश्वास है|”

शाम को जब दोनों पार्क में मिलीं, तब सोनाली ने सुरभि से पूछा “तुम अपनी संगीत की कक्षा में क्यों नहीं गई?” सुरभि ने उदास होकर कहा कि उसकी गिटार का तार टूट गया था और मम्मी के पास पैसे नहीं थे| कक्षा में जाती तो अध्यापिका डांटती| उन्होंने पहले ही कहा था कि नया गिटार खरीदकर लाओ, नहीं तो कक्षा में समय खराब मत करो| यह सुनकर सोनाली सोच में पड़ गई| दोनों सहेलियाँ बातें करती हुई अगले सप्ताह रविवार को मिलने का वादा करके अपने-अपने घर चली गईं|

अगले सप्ताह रविवार के दिन शाम पाँच बजे दोनों सहेलियाँ पार्क में मिलीं| सोनाली ने कहा “दोस्त! हाथ आगे बढ़ाओ|” सुरभि ने अपने हाथ आगे बढ़ा दिए| सोनाली ने एक गुलाबी रंग का लिफाफा सुरभि के हाथों में प्यार से रखा और बोली, “तुम नया गिटार खरीद लेना, उस पर मीठी-मीठी धुन बजाना और मेरी दोस्ती को हमेशा याद रखना|” सुरभि ने लंबी साँस लेकर कहा, “पर मैंने तो गिटार बेच दी ताकि तुम गियर वाली साईकिल खरीद सको|” सोनाली का मन विचलित हो गया वह सुरभि को अपनी बाहों में भरकर बोली, “मैंने तुझे गिटार दिलाने के लिए साईकिल बेच दी, दोस्त!” यह जानकर दोनों उदास हो गईं| कुछ देर तक दोनों कुछ समझ न पाई कि क्या करें? तभी कुछ सोचकर सोनाली ने कहा, “चलो जो हुआ सो हुआ| अब इन पैसों से तुम गिटार खरीद लो और प्रतियोगिता की तैयारी करो| सुरभि ने कहा, “नहीं मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूँ| तुम साईकिल खरीदो और मन लगाकर जीत की तैयारी करो| उस समय उनकी अध्यापिका उसी पार्क में घूमने आई थी जिसने उनकी सभी बातें सुन ली थीं| एक दुसरे के प्रति दोनों के त्याग तथा प्रेम देखकर उसका दिल भर आया| उसने दोनों की सहायता करने का निश्चय किया|

अगले दिन अपने साथी अध्यापिकाओं से उसने इस विषय पर चर्चा की| सभी की सहायता से उसने गियर वाली साईकिल तथा गिटार खरीद कर सोनाली और सुरभि को उपहार में दी| अध्यापिकाओं का अपने प्रति प्यार देखकर दोनों का मन भर आया| उन्होंने निश्चय किया कि किसी भी सुरत में प्रतियोगिता जीतकर अपनी अध्यापिकाओं के भरोसे को टूटने नहीं देंगी|

नए साल के शुरू में ही दोनों सहेलियाँ मेहनत व लगन से प्रतियोगिता की तैयारी में जुट गईं| इस बार सोनाली साईकिल रेस में तथा सुरभि गिटार बजाने में प्रथम आई| दोनों ने अपने-अपने परिवार, अध्यापकों और विद्यालय का नाम रोशन किया| किसी ने ठीक ही कहा है – “जहाँ चाह है, वहाँ राह है|”

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