परिचय से मिलता है साहस

मुकेश ने चिड़ियाघर बनाया

दिल्ली घूमने के दौरान मुकेश अपने मां-बाप के साथ चिड़ियाघर गया| वह रंग-बिरंगी चिड़ियों, सरीसृपों, लंगूरों और चिंपैंजियों और विशेषकर शेर, बाघ और तेंदुए जैसी बड़ी बिल्लियों को देखकर मंत्र-मुग्ध हो गया|वह एक छोटे से शहर देहरा में रहता था, जहां कोई चिड़ियाघर नहीं था| जैसे ही वह घर पहुंचा, उसने अपना एक चिड़ियाघर बनाने का निश्चय किया|

अगली सुबह नाश्ता करते हुए उसने घोषण कर दी, “मैं एक चिड़ियाघर बनाने जा रहा हूं|”

लेकिन उसकी छोटी बहन डॉली ने कहा, “लेकिन तुम्हारे पास तो कोई जानवर या पक्षी नहीं है|”

मुकेश ने कहा, “मैं कुछ को ले आऊंगा| चिड़ियाघर का मतलब ही है, जानवरों को एकत्र करना|”

वह बरामदे की सफेद दीवार को ध्यान से देख रहा था, जिस पर एक छिपकली एक मक्खी का पीछा कर रही थी|नाश्ते के बाद मुकेश ने उस छिपकली को पकड़ने की कोशिश की| लेकिन छिपकली जैसी दिखती थी, उससे ज्यादा सतर्क थी और हमेशा पकड़ने से पहले ही कुछ इंच आगे बढ़ जाती|

पड़ोस में रहने वाले तेजू ने अंदर आते हुए कहा, “छिपकली को पकड़ने का यह तरीका नहीं है|”

मुकेश ने कहा, “तुम पकड़कर दिखाओ|”

तेजू बगीचे से एक लकड़ी ले आया और उससे छिपकली को दीवार से उछालकर जूते के डिब्बे में डाल दिया| मुकेश ने कहा, “तुम मेरे चिड़ियाघर के मुख्य कीपर होगे|” इसके तुरंत बाद वह और मुकेश पीछे वाले बगीचे में तार के गोले से जाल बुनकर बाड़ा बनाने के काम में लग गये| यह तार का गोला उन्हें मुर्गियों के बाड़े में मिला था| तेजू ने पूछा, “हमारे चिड़ियाघर में और क्या होना चाहिए? हमें छिपकली के अतिरिक्त और भी कुछ चाहिए|”

मुकेश ने कहा, “तुम्हारी दादी मां का तोता|”

तेजू ने कहा, “बात तो ठीक है| लेकिन मुझे नहीं लगता कि वह अपने तोते को हमें उधार देंगी| तुम जानते ही हो कि वह एक धार्मिक तोता है, जिसे उन्होंने बहुत सारी प्रार्थनाएं और भजन सिखाए हैं|”

मुकेश ने कहा, “तब तो निश्चित रूप से लोग उसे सुनने आयेंगे और वे पैसे भी देंगे|”

तेजू ने कहा, “तुम ठीक कह रहे हो| हम किसी भी तरह तोते को ले लेंगे| और क्या?

मुकेश ने कहा, “मेरा कुत्ता! वह बहुत खूंखार है|”

“लेकिन कुत्ता तो चिड़ियाघर का जानवर नहीं है|”

“लेकिन मेरा है – वह एक जंगली कुत्ता है| उसका रंग काला है और उसकी आंखें पीली हैं| उसके जैसा कोई भी दूसरा कुत्ता नहीं है|”

वैसे तो मुकेश का कुत्ता अपना अधिकतर समय बरामदे में सोते हुए बिताता था, यह सुनकर उसने अपने सिर को उठाया ओर अपनी पीली आंखों से आभार प्रकट किया|

तेजू ने कहा, “इसे तो पीलिया है|”

मुकेश ने कहा, “नहीं, इसे पीलिया नहीं है| इसकी आंखें शुरू से पीली हैं|”

तेजू ने कहा, “बहुत अच्छा, तब तो हमारे पास एक छिपकली, एक तोता और पीली आंखों वाला एक काला कुत्ता हो गया है|”

मुकेश ने पूछा, “तुम्हारी बहन कोकी के पास एक सफेद खरगोश है| क्या वह हमें खरगोश उधार देगी?”

तेजू थोड़ी शंका व्यक्त करते हुए बोला, “पता नहीं, शायद वह किराए पर दे दे|”

मुकेश ने कहा, “चलो देखते हैं, शायद हमें सीताराम का गधा भी मिल जाए|” सीताराम धोबी का बेटा गधे पर गली के घरों के कपड़े लाता-ले-जाता था|

तेजू ने पूछा, “क्या वास्तव में तुम गधा चाहते हो?”

“क्यों नहीं? वह एक जंगल का गधा है|”

तेजू ने कहा, “मैंने जंगली गधे के बारे में सुना है, लेकिन जंगल के गधे के बारे में नहीं|”

“हां, जंगल का गधा, पालतू गधा और खच्चर सब एक ही जाति के हैं|”

तेजू ने कहा, “क्यों नहीं, तुम इसके शरीर पर काली धारी बना दो, और इसे जेब्रा बता दो|”

मुकेश ने कहा, “नहीं, वह बेईमानी है| हमें तो असली चिड़ियाघर बनाना है|”

शनिवार की दोपहर को कटहल के पेड़ की शाख पर चिड़ियाघर खुलने की सूचना देने वाला एक बड़ा सा साईन-बोर्ड लटका दिया गया| बच्चों को मुफ्त में आने की अनुमति थी जबकि बड़ों को पचास पैसे की टिकट खरीदनी थी| कोफी और डॉली टिकटें बेच रही थीं| चिड़ियाघर देखने के इच्छुक राहगीरों और माता-पिता को बेचने के लिए घर में बनाई हुई टिकटें रखी गईं| मुकेश और उसके दोस्तों ने विभिन्न बाड़ों और प्रत्येक जानवर की उपयुक्त पहचान के लिए सूचनापट तैयार करने में बड़ा परिश्रम किया|

पहला आकर्षण का केंद्र था, एक ढंका हुआ बहुत बड़ा पिंजरा, जिसमें घरेलू छिपकलियों को अलग छांटकर रखा गया था| वे थोड़ी सुस्त लग रही थीं, जबकि उन्हें गुबरेला और अन्य कीड़े-मकौड़े पर्याप्त रूप से खिलाए जा रहे थे|

दूसरे बाड़े में कोफी के सफेद खरगोश को प्रदर्शन के लिए रखा गया था| पीछे वाले बाड़े में मुकेश का कुत्ता था| मुकेश के कुत्ते वाले बाड़े पर एक सूचनापट लिखकर लगा दिया गया था – “पीली आंखों वाला दुलर्भ काला कुत्ता|” उसकी पीली आंखें अब कोफी के डरे हुए खरगोश की गुलाबी आंखों को सम्मोहित करने की कोशिश कर रही थीं| कुत्ता अपने पंजों से अपने बाड़े की जमीन खोदकर, खरगोश के बाड़े तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था|

सीताराम का छोटा गधा आम के पेड़ के साथ रस्सी से बंधा हुआ था| पेड़ में छोटी-सी कील पर एक तख्ती लटकी थी, जिस पर लिखा था – कच्छ का जंगली गधा| प्रजाति में यह शायद जंगली गधे का संबंधी रहा हो, लेकिन सभी उसे स्थानीय धोबी के गधे के रूप में पहचानते थे| वह बार-बार छूटकर भागने की कोशिश में था| ऐसा लगता था, जैसे उसके खाने का समय हो रहा है|

वहां एक बत्तख भी थी, जिसका शायद कोई मालिक नहीं था| वहां एक छोटी सी गाय भी थी जो अपने आप ही कहीं से भटककर आ गयी थी| लेकिन सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्रबिंदु तोता था| वह बार-बार तीन अलग-गलग प्रार्थनाएं बोल सकता था| जल्दी ही उसकी आसपास कई माता-पिता जमा हो गये और उसकी प्रशंसा करने लगे| सभी यह चाहते थे कि काश! उनके पास भी गाने वाला तोता होता| दुर्भाग्य से, तेजू और कोकी की दादी ने मंदिर जाने के लिए वही दिन चुना, इसलिए वह इस हंगामें से अनजान थीं जो उनके तोते को लेकर मचा हुआ था|

जब उधर मुकेश और तेजू चिड़ियाघर में घूमने वालों के साथ चलकर उन्हें जंगली कुत्तों और जंगली गधों के बारे में बता रहे थे, उसी समय कोफी और डॉली, टिकट काउंटर पर खूब कमाई कर रही थीं| उन्होंने लगभग दस रुपए इकट्ठे कर लिए थे और बिक्री की बढ़ोतरी की आशा कर रही थीं| तभी चिड़ियाघर में समस्या आ खड़ी हुई|

पीली आंखों वाले काले कुत्ते ने अपने बाड़े से खोदकर रास्ता बना लिया था और अब वह खरगोश के पिंजरे में अपना रास्ता खोदने की कोशिश कर रहा था| खरगोश डरकर गोल-गोल चक्कर लगाता चारों ओर दौड़ रहा था| इसी बीच गधा उस रस्सी को तोड़ने में सफल हो गया, जिससे वह बंधा था और जोर से रेंकता, दर्शकों की भीड़ को चीरता हुआ अपने घर की तरफ भागा|

कोकी चीखती हुई अपने खरगोश को बचाने दौड़ी और जल्दी ही उसे सुरक्षित रूप से अपनी बांहों में ले लिया| निराश कुत्ते ने अब बत्तख पर निशाना साध लिया| बत्तख बंद पिंजरे के ऊपर उड़ी, लेकिन कुत्ता सभी छिपकलियों को विभिन्न दिशाओं में छितराता हुआ उस पर कूद पड़ा|

इस सारी गड़बड़ी के बीच, किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि तोते का पिंजरा अचानक खुल गया था| खुशी से चीखते हुए और तेजी से पंख फड़फड़ाते हुए वह तोता पिंजरे से तेजी से बाहर निकला और उड़ गया|

डॉली चिल्लाई, “तोता गया|” और जमा हुए दर्शकों और बच्चों के बीच एकाएक खामोशी छा गयी| यहां तक कि कुत्ते ने भी भौंकना बंद कर दिया| दादी मां का प्रार्थना करने वाला तोता बचकर उड़ चुका था| अब वे दादी मां का सामना कैसे करेंगे|

भीड़ तेजी से छंट गयी| लोग नहीं चाहते थे कि उस घटना का आरोप उन पर लगे जिसका पता तेजू और कोकी की दादी मां को घर आकर चलेगा|

तेजू ने पूछा, “अब हम क्या करने जा रहे हैं?”

मुकेश इतना घबराया हुआ था कि वह कुछ करने या कहने की स्थिति में नहीं था| कोकी को एक तरीका सूझा| उसने कहा, “मेरा ख्याल है, हमें दूसरा तोता मिल जाएगा|”

“कैसे?”

“यहां इसने जो दस रुपये कमाए हैं, उन दस रुपयों से एक नया तोता खरीदा जा सकता है|”

अत: अपने साथ पिंजरा लेकर वे लोग जल्दी ही बाजार की ओर चल पड़े| वहां जल्दी ही उन्हें एक चिड़िया बेचने वाला मिल गया, जिसने उन्हें एक तोता बेचा जो दादी मां के तोते की तरह ही दिखता था| उस व्यक्ति ने उन्हें यह भरोसा दिलाया कि यह तोता जरूर बोलेगा|

घर के रास्ते में मुकेश ने इस बात को स्वीकार कर लिया, “यह तुम्हारी दादी मां के तोते की तरह ही दिखता है| लेकिन क्या यह प्रार्थना कर सकता है?”

कोकी ने कहा, बिल्कुल नहीं| लेकिन हम इसे सिखा सकते हैं|”

तेजू और कोकी की दादी मां की नजर कमजोर थी, इसलिए वह बदले हुए तोते पर ध्यान नहीं दे पायीं, लेकिन उन्होंने खूब शिकायत की कि तोते ने अपनी प्रार्थनाओं को दोहराना बंद कर दिया है और अब उसने कर्कश आवाज में शोर मचाना शुरू कर दिया है तथा कभी-कभी तो गाली भी देता है|

तेजू जल्दी ही इस दुखद स्थिति को सुधारने में लग गया| हर सुबह वह तोते के पिंजरे के सामने खड़ा होता और दादी मां की प्रार्थना को बार-बार दुहराता| कुछ सप्ताह में ही पक्षी ने उनमें से एक प्रार्थना को सीखकर दोहराना शुरू कर दिया| दादी मां फिर से खुश थीं, केवल इसलिए नहीं कि उनका तोता फिर से प्रार्थना करने लगा है, बल्कि इसलिए भी कि अब तेजू ने भी प्रार्थना शुरू कर दी है|

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