परिचय से मिलता है साहस

परिवार में उल्लू

सर्दियों की एक शाम को उत्तरी भारत के देहरादून वाले अपने घर के आंगन की सीढ़ियों पर मैंने और मेरे दादाजी ने चित्तीदार उल्लू के एक बच्चे को देखा| जब दादाजी ने उसे उठाया तो वह अपनी चोंच से खट-खट की आवाज निकालने लगा| परंतु जब उसे हमने कच्चा मांस खिलाया और पानी पिलाया तो वह शांति से मेरे बेड के नीचे बैठ गया|

चित्तीदार उल्लू मूलतः छोटे पक्षी होते हैं – पूर्णत: विकिसत उल्लू सामान्यत: चिलबिल से बड़े नहीं होते| लेकिन वह बड़े उल्लुओं की तरह बदशक्ल नहीं होते| मैंने उनके एक जोड़े को प्राय: अपने आम के पुराने पेड़ पर बैठे देखा था और मैंने कई बार पेड़ के तने को थपथपाकर देखा और उनमें से किसी एक को पेड़ की खोसल से अपना चेहरा दिखाने के लिए प्रोत्साहित किया| लेकिन वे दिन के समय घर में ही रहना पसंद करते हैं, क्योंकि उन्हें उन पक्षियों के हमले का डर रहता है, जो उल्लुओं को अपना दुश्मन मानते हैं|

यह नन्हा उल्लू का बच्चा मेरे पलंग के नीचे खुश था| अगले दिन हमने आंगन में ठीक उसी जगह पर एक दूसरे उल्लू के बच्चे को देखा| केवल तभी हमारा ध्यान आंगन में बने पाइप के ऊपर की ओर गया, जहां एक उजड़ा हुआ सा घोंसला बना हुआ था, जिसमें से ये बच्चे गिर गये थे| हमने दूसरे उल्लू को पहले वाले उल्लू के साथ ही रख दिया और फिर दोनों को खाना खिलाया|

जब मैं सोने गया, तब वे खिड़की की कगार पर मच्छरों की जाली के अंदर सटकर बैठे थे| और काफी रात गये उनकी मां ने उन्हें वहां देख लिया था| बाहर से रात को वह काफी देर तक हल्ला मचाती रही| सुबह मैंने देखा कि वह अपने बच्चों के लिए जाली के पास ही एक मरा हुआ चूहा डाल गयी है जिसकी पूंछ जाली से अंदर लटक रही थी| उसे बिल्कुल विश्वास नहीं था कि मैं उसके बच्चों को कुछ खिलाऊंगा|

वे नन्हे पंछी हमारे यहां पलने-बढ़ने लगे| दस दिन बीत जाने पर, मैं और मेरे दादाजी उन्हें मुक्त करने के विचार से बगीचे में ले आये| मैंने एक को आम के पेड़ की डाली पर रख दिया और फिर दूसरे को उठाने के लिए झुका ही था कि किसी ने मेरे सिर के पीछे जोर से मारा| कुछ ही पल बाद उस मादा उल्लू ने दादाजी पर भी हमला किया, लेकिन उन्होंने फुर्ती से अपना बचाव कर लिया|

मैंने जल्दी से दूसरे उल्लू को आम के पेड़ के नीचे रख दिया| फिर एक सुरक्षित दूरी पर खड़े होकर हमने देखा कि मादा उल्लू अपने बच्चों को बगीचे के कोने में उगी लंबी घास में ले गयी है|

हमने सोचा था कि वह अब अपने बच्चों सहित हमारे घर से कहीं दूर चली जायेगी, पर अगली ही सुबह मैंने उन दोनों नन्हें उल्लुओं को अपने आंगन में टोपियों के स्टैंड पर बैठे देखा| मैं दादाजी को बताने के लिए भागा| जब हम वापस लौटे तो हमने देखा कि उल्लू मां कुछ मीटर दूर बर्डबाथ पर बैठी है| उसने हमें देखकर प्यार से ‘व्हू व्हू’ किया, जिससे यह साबित हो गया कि वह अपने कल के व्यवहार पर शर्मिंदा है|

दादाजी ने कहा, “अब तुम्हारे सामने एकदम निस्वार्थ मां बैठी है| यह तो स्पष्ट है कि वह चाहती है कि हम उन बच्चों की देखरेख करें क्योंकि वे बच्चे अब थोड़े बड़े हो गये थे और वह स्वयं अब उनका ठीक ढंग से पालन-पोषण नहीं कर सकती थी|”

अब नन्हे उल्लू हमारे परिवार का हिस्सा बन गये| वे उन चंद पालतुओं में से थे, जिन्हें दादीमां पसंद करती थीं| उसने समय-समय पर जो सांप, बंदर और कौए| पाले थे, दादी मां ने उन सभी को नापसंद किया था| परंतु इन नन्हे उल्लुओं को वह पसंद करती थीं तथा उन्हें प्राय: मोटी सवाई खिलाया करती थीं|

उन नन्हे उल्लुओं को भी दादी की मोटी सवाई अच्छी लगती थीं| नन्हे उल्लू दादी से इस कदर घुल-मिल गये थे कि घर में किसी को भी पेटीकोट में देखते ही वे प्यार से पंख हिलाने लगते| फिर चाहे उनसे डरने वाली मेरी माबेल चाची ही क्यों न हो| जब भी नन्हे उल्लू मैत्री के भाव से चाची के इर्द-गिर्द आते, वह चीखते चिल्लाते हुए इधर-उधर भागने लगती|

इस बात को भूलकर कि मैंने और दादाजी ने उनको पाला था, वे कभी तो मनमाने ढंग से पंख पसारते और जिसे भी पेंट पहने हुए देखते उसे ही चोंच मार देते| उन्हें खुश करने के लिए दादाजी कई बार उन्हें खिलाने के समय पेटीकोट पहन लिया करते थे| मुझे भी उन्हें खुश करने के लिए कई बार एप्रेन पहनना पड़ता था|

दादी मां के पुकारने पर वो बिल्ली की ‘म्याऊं’ जितनी कोमल आवाज निकालते पर जब कभी आसपास जंगली उल्लू होते तो वे रात भर दिल दहलाने वाली आवाजों में चीखते-चिल्लाते|

उन्हें दादी मां के रखे हुए छिछले बर्तन में बैठना और पंख फड़फड़ाना बहुत अच्छा लगता| उन्हें तब और भी मजा आता जब उन पर जग से ठंडा पानी डाला जाता| वे पूरी तरह से भीग जाते, फिर उछलते और तौलिए के रैक पर जा बैठते| वहां खुद को हिलाते-डुलाते और फिर दूसरी बार पानी डलवाने के लिए वापस आ जाते| कभी-कभार तो वे तीसरी बार भी आ धमकते| दिन में वे टोपियों के स्टैंड पर ऊंघते| रात में वे घर में खुले घूमते| उनका रात का काम था कीड़ों को खाना, जिसके लिए रसोईघर उनका प्रमुख शिकार स्थल था| अपनी तेज आंखों और तीखी चोंच के कारण वे यह काम करने में माहिर थे|

बचपन के उन दिनों को याद करें, तो मन में दादी मां की वह तस्वीर उभरती है जिसमें वह आरामकुर्सी पर बैठी हुई हैं और वह नन्हा उल्लू भी उनके एप्रेन में ही पंख पसारकर बैठा हुआ है| एक बार दोपहर के समय, जब मैं दादी मां के कमरे में गया तो वह सो रही थीं| वहां उन दोनों में से एक उल्लू दादी मां के तकिए को तब तक खिसकाता रहा जब तक वह उनके कान के पास नहीं आ गया| फिर कुछ ही देर में दादी मां और छोटा उल्लू दोनों खर्राटे लेने लगे|

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