परिचय से मिलता है साहस

पिंकू के कारनामे

एक समय की बात है, चिकनी लकड़ी का एक टुकड़ा अंतू नामक एक बूढ़े बढ़ई की दूकान में एक तरफ पड़ा हुआ था| एक दिन अंतू की निगाह उस पर पड़ी और वह उसको पसंद आ गया|

उसने सोचा-मैं इस टुकड़े से मेज का एक पाया बनाऊंगा|

यह सोचकर उसने उस टुकड़े को छीलने के लिए उस पर कुल्हाड़ी चलाई| लेकिन पहली चोट मारते ही उसे एक धीमी और महीन आवाज सुनाई पड़ी-मुझे इतनी जोर से मत मारो|

तुम सोच सकते हो कि उस आवाज को सुनकर अंतू की क्या दशा हुई होगी| उसका कुल्हाड़ी वाला हाथ में ऊपर ही उठा रह गया, उसकी आंखें फैल गईं| उसने सोचा-यह आवाज किधर से आई? उसने कमरे में चारों तरफ नजर दौड़ाई, लेकिन वहां कोई नहीं था| तब उसने दरवाजा खोलकर बाहर सड़क पर भी झांककर देखा, लेकिन वहां उस समय कोई नहीं था| तब फिर कौन हो सकता है?

अंतू को सब लाल टमाटर, कहकर पुकारते थे, क्योंकि उसकी नाक का सिरा पके टमाटर की तरह लाल था| उसका सिर गंजा था| इसलिए उसने बनावटी बाल लगा रखे थे|

जब महाशय लाल टमाटर को यह मालूम नहीं हो सका कि वह आवाज किधर से आई, तो उसने अपने नकली बालों को सहलाते हुए अपने आप से कहा-अरे! मैं भी कैसा पागल हूं| कहीं कोई आवाज नहीं थी| यह सिर्फ दिमागी भ्रम था और कुछ नहीं|

यह सोचकर वह फिर काम में लग गया| उसने उस लकड़ी के टुकड़े पर फिर एक जोर की चोट कुल्हाड़ी से मारी और चोट लगते ही, फिर वैसी ही महीन आवाज उसे सुनाई पड़ी-अरे! मार डाला रे! मार डाला!

अबकी बार लाल टमाटर की आंखें भय और आश्चर्य से फैल गई और उसकी जीभ फाउंटेन पेन की ट्यूब की तरह बाहर निकलकर ठोड़ी तक लटक आई| वह सोचने लगा-समझ में नहीं आता, यह आवाज किधर से आ रही है? यहां आस-पास कोई दूसरा प्राणी भी तो नहीं है| तो फिर क्या संभव है कि यह लकड़ी का टुकड़ा एक बच्चे की तरह बोलना सीख गया हो? मुझे तो विश्वास नहीं होता| अरे! अरे! यही लकड़ी का टुकड़ा जो मेरे हाथ में है, यह भी एक वैसा ही टुकड़ा है जैसे दूसरे| फिर क्या इसके अंदर कोई छिपा हुआ है? अगर ऐसा है, तो फिर उसकी खैर नहीं| मैं अभी उसकी खबर लेता हूं|

यह कहने के बाद महाशय लाल टमाटर जी ने उस टुकड़े को जोर-जोर से दीवार पर पटकना शुरू किया| पांच मिनट बीत गए, लेकिन कोई आवाज नहीं निकली| दस मिनट बीत गए, फिर भी कोई आवाज नहीं निकली| तब अंतू उर्फ लाल टमाटर ने सोचा-अरे यह सब मेरा भ्रम है और कुछ नहीं|

यह सोचकर उसने एक रंदा उठाया और टुकड़े को चिकना करने का विचार किया| लेकिन वह अब भी भयभीत था| अपने आपको थोड़ी हिम्मत बंधाने के लिए उसने एक भजन गाना शुरू कर दिया|

जब उसने रंदा चलाया, तो उससे हंसी की आवाज निकली| किसी ने कहा-वाह! भाई तुम! तुम तो मुझे गुदगुदा रहे हो|

अब की बार लाल टमाटर जी के होश गुम हो गए| वह जमीन पर गिरकर चारों खाने चित हो गए| जब उनको होश आया, तो वह उठकर बैठे, लेकिन उस समय उसकी नाक का सिरा लाल नहीं, बल्कि भय से नीला पड़ गया था|

उसी समय किसी ने बाहर से दरवाजा खटखटाया|

अंतू में उठने की हिम्मत तो थी नहीं इसलिए बैठे-बैठे ही बोला-कौन है, भई? अंदर आ जाओ|

तुरंत ही एक बूढ़ा आदमी अंदर आया| वह अंतू का मित्र गप्पू था| उसने भी अंतू की तरह नकली बाल लगा रखे थे| वे बाल हलुवे के रंग के थे, इसलिए मुहल्ले के बच्चे उसे चिढ़ाने के लिए ‘हलुवा’ कहकर पुकारते थे| अंतू भी कभी-कभी चिढ़ाने के लिए उसको इसी नाम से पुकारता था, तब गप्पू भी उसको लाल टमाटर कहकर चिढ़ाता था|

वे दोनों ही अपने नकली नामों को सुनकर बहुत चिढ़ते थे और कहने वाले पर इतने क्रोधित होते, मानो उसको चबा ही डालेंगे|

गप्पू ने दुकान के भीतर आते ही तुरंत अभिवादन किया और अंतू ने भी उसका प्रत्युत्तर दिया| उसके बाद गप्पू ने कहा-एक तकलीफ देनी थी तुम्हें|

…बोलो

…मेरे दिमाग में एक ख्याल आया है भाई अंतू, और वह यह कि मैं एक कठपुतला बनाकर उसको वे सब काम सिखा दूं, जो एक बच्चा कर सकता है| फिर मैं उसको लेकर भ्रमण करूं, तो शायद मुझे काफी आदमनी हो जाए| तुम्हारा इस बारे में क्या ख्याल है?

अंतू उत्तर देने ही जा रहा था, लेकिन उसके मुंह से कोई बात निकलने से पहले ही एक आवाज और और कहीं से आई – “वाह भाई हलुवे, वाह! क्या बात कही है तुमने भी| बिलकुल हलुवे जैसी ही मजेदार|”

हलुवा शब्द सुनकर गप्पू को बहुत गुस्सा आया| उसकी आंखें अंगारों के समान लाल हो गई| उसने सोचा-यह बात अंतू ने ही कही है| इसलिए वह बोला क्यों जी, तुम मेरा अपमान कर रहे हो?

अंतू बेचारा भौचक्का-सा रह गया| बोला-कौन तुम्हारा अपमान कर रहा है|

…तुमने मुझे हलुवा कहकर नहीं पुकारा?

…नहीं तो|

…तुम झूठ बोलते हो| अगर तुमने नहीं कहा, तो किसने कहा? क्या मैंने ही कह दिया?

…तुम तो बेकार की बात करते हो|

इस प्रकार दोनों में तू-तू, मैं-मैं होने लगी| हाथापाई की नौबत भी आ गई| वे एक-दूसरे को नोचने-खसोटने लगे|

जब लड़कर दोनों थक गए, तो दोनों के नकली बाल एक-दूसरे के हाथ में आ गए|

…मेरे बाल मुझे दो| -अंतु बोला

…तुम मुझे मेरे बाल दो| – गप्पू बोला

…लो भाई| -कहकर दोनों ने एक दूसरे को बाल दे दिए और फिर दोनों ने हाथ मिलाए|

अंतू बोला…अच्छा, जो हो गया सो हो गया| अब यह बताओ तुम्हें क्या चाहिए?

…मुझे एक लकड़ी का टुकड़ा चाहिए|

…बस इतनी-सी बात| यह लो| …कहकर अंतू उसको वही लकड़ी देने लगा जिसने उसको सुबह से परेशान कर रखा था, लेकिन जैसे ही वह टुकड़ा उसे देने लगा, वह उसके हाथ से छूटकर गप्पू के पैर पर गिरा और उसके गिरते ही पप्पू चिल्लाया …”अरे मार डाला रे| क्या तुम पड़ोसियों की सेवा इसी प्रकार से करते हो?”

“…माफ करना भाई, गप्पू| दोष मेरा नहीं, इस लड़की के टुकड़े का है जो तुम्हारे पैर पर गिरा है|” -अंतू ने सफाई देते हुए कहा|

“…यह तो मैं भी जानता हूं कि यह एक लकड़ी का टुकड़ा है, लेकिन उसको मेरे पैर पर तो तुमने ही गिराया है|”

“…नहीं भई, मैंने नहीं गिराया|”

“…झूठे कहीं के|”

“…देखो गप्पू, मुझे गाली मत दो|”

ऐसा कहते-कहते वे फिर उड़ने लगे| जब लड़ाई खत्म हुई, तो गप्पू के हाथ अंतू के दो बटन आ गए थे और गप्पू के चेहरे पर दो खरोंचें| इस प्रकार जब हिसाब बराबर हो गया, तो वे दोनों गले मिले और पिछली गलतियों के लिए माफी मांगकर जिंदगी भर एक-दुसरे के पक्के मित्र बने रहने की कसम खाने लगे|

उसके बाद गप्पू उस लकड़ी के टुकड़े को लेकर चला गया|

घर पहुंचकर गप्पू ने अपने औजार संभाले और एक कठपुतला तैयार करने में लग गया|

उसने सोचा…मैं उसका नाम क्या रखूंगा? मेरे ख्याल से तो उसका नाम पिंकू ही बढ़िया रहेगा| बाल बनाए, फिर माथा और आंखें| जब आंखें तैयार हो गईं, तो सोचो, उनको अपनी और ताकते हुए देखकर गप्पू को कितना आश्चर्य हुआ होगा?

अंत में उसने उसकी नाक बनाई, लेकिन ज्यों ही वह बनी, वह बढ़ने लगी| वह बढ़ती गई|

गप्पू ने उसको काटकर छोटा करने की कोशिश की, लेकिन जितनी ज्यादा वह उसे छोटी करने की कोशिश करता, उतनी ही वह और बढ़ जाती|

मुश्किल से मुंह तैयार हुआ कि कठपुतले ने हंसना शुरू कर दिया|

“…हंसना बंद करो|” -गप्पू गुस्से में भरकर बोला| लेकिन उसके कहने का कोई असर नहीं हुआ|

उसने धमकाते हुए फिर कहा – “मैं कहता हूं हंसना बंद करो|”

उसने हंसना बंद कर दिया, लेकिन अपनी जीभ इतनी बाहर निकाल ली कि वह लटकने लगी|

गप्पू ने सोचा …अब इसकी तरह ध्यान देकर नष्ट करना व्यर्थ है| इसलिए वह फिर काम में लग गया|

मुंह तैयार करके उसने उसकी ठोड़ी फिर गला, कंधे, पेट और हाथ बनाए|

जब हाथ तैयार हो गए तो गप्पू ने देखा, उसकी टोपी गायब थी और वह पिंकू के हाथ में थी|

…पिंकू, मेरी टोपी फौरन मुझे दो|

लेकिन पिंकू ने वह टोपी वापस करने के स्थान पर अपने सिर पर पहन ली|

गप्पू के साथ ऐसा धृष्टतापूर्ण मजाक किसी ने नहीं किया था|

पिंकू के पैर बनने अभी शेष थे| जब पैर बनकर तैयार हो गए, तो गप्पू की नाक पर एक लात आकर लगी|

…ठीक है बेटा| मैं इसी के लायक हूं| -गप्पू ने कहा|

फिर उसने पिंकू को सहारा देकर चलना सिखाया| जब पिंकू चलने-फिरने और दौड़ने लगा, तो फिर दौड़ते-दौड़ते दरवाजे से बाहर निकल गया और सड़क पर कूद कर भागने लगा|

गप्पू उसके पीछे भागा लेकिन वह उसको पकड़ नहीं पाया क्योंकि पिंकू तो खरगोश की तरह दौड़ रहा था|

…उसे रोको, उसे रोको| -गप्पू चिल्लाकर बोला| लेकिन जब लोगों कठपुतले को इस तरह भागते हुए देखा, तो उन्हें बड़ा आश्चर्य और आनंद हुआ| वह बजाए उसको रोकने के तमाशा देखने लगे|

तभी सौभाग्य से एक सिपाही आ निकला| शोरगुल सुनकर उसने सोचा…शायद कोई बछड़ा अपने मालिक के यहां से भाग आया है| यह सोचकर वह सड़क के बीच में जमकर खड़ा हो गया ताकि जब बछड़ा उधर से निकले तो वह उसे रोक सके|

पिंकू ने थोड़ी देर से देखा कि एक सिपाही रास्ता रोके खड़ा है| उसने सोचा …मैं अचानक उसकी टांगों के बीच से होकर निकल जाऊंगा और वह आश्चर्य से मुंह बनाए देखता ही रह जाएगा| उसने ऐसा ही करने की कोशिश भी की लेकिन वह अपनी इस चाल में सफल नहीं हो सका|

सिपाही ने अपने शरीर को जरा-सी तकलीफ दिए बिना ही बड़ी चतुराई से उसकी नाक पकड़ ली| फिर उसी तरह पकड़े-पकड़े वह उसको गप्पू के पास ले गया|

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