परिचय से मिलता है साहस

सबका अपना महत्त्व

एक अत्यन्त रमणीय उपवन में एक पेड़ के नीचे जल, वायु, सूर्य तथा मनुष्य बैठे हैं| सूर्य और मनुष्य एक लोहे की बेंच पर बैठे हुए हैं| उन दोनों के सामने लोहे की एक अन्य बेंच पर जल तथा वायु बैठे हैं| हालांकि असीम स्वरूप है इनका लेकिन यहां ये बहुत सहज और स्वाभाविक रूप से खुद को समेटे हुए बैठे हैं| तीनों में कुछ तनाव है| जल, वायु तथा सूर्य स्वयं को दूसरे से अधिक शक्तिशाली सिद्ध करते हुए परस्पर वार्तालाप कर रहे हैं| मनुष्य चुपचाप उनकी बातें सुन रहा है|

सूर्य-(तीव्र स्वर में) मैं सबसे अधिक शक्तिशाली हूं| मेरे कारण ही संसार में दिन होता है| मेरे प्रकाश में ही संसार के सब प्राणी अपने दैनिक तथा आवश्यक कार्य संपन्न करते हैं| मैं न होता तो संसार में सदैव अंधकार छाया रहता तथा प्राणियों का जीना मुश्किल हो जाता|

वायु- (सूर्य की भांति ही तीव्र स्वर में) नहीं सबसे शक्तिशाली मैं हूं| मेरे कारण ही प्राणियों के शरीर में जीवन का संचार होता है| मुझे प्राण भी कहते हैं| प्राण से ही प्राणी शब्द बना है| मैं अर्थात् वायु को जीवन का आधार है| प्राणी जब भी सांस लेता है तो वह मुझे ही बाहर से अपनी नासिका द्वारा शरीर के अंदर ग्रहण करता है| प्राणी अंधेरे में तो जी सकता है लेकिन बिना सांस ग्रहण किये तो वह थोड़ी देर ही काल के गाल में समा जाएगा|

जल -(वायु से भी अधिक तीव्र स्वर में) नहीं-नहीं| सबसे अधिक शक्तिशाली तो मैं हूं| प्राणियों के शरीर में 70 प्रतिशत पानी होता है| यदि मैं न होता तो शरीर के अंगों में रक्त संचालन न होता| इसके बाद फिर प्राणी जीवित भी न रहता|

सूर्य लेकिन मेरे न होने से…?

वायु-(सूर्य को बीच में ही टोकते हुए) तुम्हारे न होने से क्या हो जाएगा| संसार से चांद तो है| अंधेरे में भी प्राणी अपने सब काम कर सकते हैं| तुम इस भ्रम में मत रहो कि तुम्हारे न होने से संसार के काम रुक जाएंगे या प्राणी जीवित नहीं रह पाएंगे| हां मेरी बात और है| मेरे न होने से जरूर…

जल – (जोर से चिल्ला कर) हां तुम्ही सब कुछ हो| मैं तो कुछ भी नहीं| इस संसार में पानी का कितना महत्त्व है, इस बात को कवि रहीम ने भी एक दोहे के रूप इस प्रकार व्यक्त किया है|

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून|
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष चून||

अब तो मानते हो न कि पानी के बिना संसार के सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्य का भी जीना मुश्किल है| शेष जीवों की तो बात ही छोड़ दो|

वायु-हुं! फालतू की बकवास मनुष्य खुद अपने मुंह से कहता है| अपनी बढ़ाई तो कोई भी कर सकता है| अन्यथा जितना विनाश इस संसार का आदमी ने किया है और किसी जीवधारी ने नहीं किया| पता तो कुछ है नहीं| सौ बातों की एक बात| मैं हूं सबसे ज्यादा…

सूर्य – (वायु की बात काटते हुए) चुप हो जा वायु की बच्ची| अब तुम भी तो अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रही हो| मैं कहता हूं कि मेरी गर्मी और ताकत के सामने तुम दोनों थोड़ी देर तक भी नहीं ठहर सकते| तुम्हारी तो इतनी औकात भी नहीं है कि…

जल – (चिढ़ कर सूर्य की बात काटते हुए) बस-बस| ज्यादा झिड़कने की जरूरत नहीं है| जानता हूं तुम्हारी शक्ति भी| सर्दी के मौसम में तो ठंड के कारण आसमान में छुपे रहते हो| प्रकट होते भी हो तो बहुत देर के बाद| शाम के पांच बजते ही भाग खड़े होते हो| अपने आपको ज्यादा तीस मार खां समझते हो? जैसे दुसरे तो कुछ हैं ही नहीं| हां तो|

सूर्य – (क्रोधित होकर जल को गिरेबान से पकड़ते हुए) मुझसे जरा तमीज़ से बात किया करो| मेरा दिमाग घूम गया न तो तुम्हारी हड्डी-पसली तोड़ कर रख दूंगा| तुम मुझे अभी जानते नहीं हो|

मनुष्य – (बीच में हस्तक्षेप कर सूर्य के हाथों से जल की गिरेबान को छुड़ाते हुए) अरे नहीं भाई नहीं| ऐसे नहीं करते| जल को छोड़ो|

(सूर्य, जल की ओर क्रोध से घूरता हुआ उसकी गिरेबान को छोड़ देता है|)

वायु-(सूर्य की ओर क्रोध पूर्वक देखते हुए) हां यह बात गलत है| अपने विचारों को प्रकट करो| आपस में मारपीट थोड़े ही करनी चाहिए|

मनुष्य-वैसे तुम तीनों की सोच गलत है|
तीनों एक साथ – कैसे?

मनुष्य-तुम तीनों का अपना अपना महत्त्व है| इसलिए तुम तीनों समान रूप से शक्तिशाली हो|

सूर्य – (हठपूर्वक) मैं नहीं मानता|

मनुष्य-ठीक है| फिर तुम जल बन कर दिखाओ| ताकि लोग अपनी प्यास बुझा सकें या अपने दूसरे कार्य करें| चलो जाने दो| तुम वायु बन कर दिखाओ| ताकि लोग जीवित रहने के लिए सांस ले सकें|

(सूर्य चुपचाप सिर झुका लेता है|)

मनुष्य-इसी तरह वायु और जल भी अपने-अपने काम ही कर सकते हैं| ये वही काम कर सकते हैं जिन कामों के लिए उनकी उत्पत्ति हुई है| कोई भी तत्व दूसरे किसी भी तत्त्व का स्थान नहीं ले सकता| इसलिए प्रत्येक तत्त्व समान रूप से शक्तिशाली हैं| तुम सभी एक-दुसरे के पूरक हो| कोई भी स्थान तुम तीनों के बगैर नहीं है और यहां तुम में से किसी की भी कमी होती है, वहीं प्राकृतिक क्रियाओं में अस्थिरता आ जाती है| प्रत्येक का अपना-अपना महत्त्व है| मानते हो?

जल-बिलकुल मानते हैं| एकदम ठीक कहा आपने|

वायु – (मुस्कराते हुए) मुझे भी ऐसा ही लगता है|

सूर्य-अरे भई ऐसे थोड़े ही कहा गया है कि मनुष्य संसार का सबसे बुद्धिमान प्राणी है| मनुष्य भाई हम तीनों आपकी बात से सहमत हैं|

मनुष्य – (मुस्कराते हुए) शुक्र है तुम तीनों इस बात को समझ गये|

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