चन्दन का पेड़ - Sandalwood Tree

चन्दन का पेड़

मंडप नगर एक बहुत ही सुन्दर और हरा-भरा कस्बा था, जिसमें चंदन और माधव नाम के दो प्रिय मित्र रहते थे| चंदन अमीर परिवार का लाड़ला पुत्र था और माधव गरीब लकड़हारे का चरित्रवान बालक था| दोनों एक ही विद्यालय में पढ़ते थे| चंदन, अपने अमीर माता-पिता के लाड़-प्यार में पलने के कारण कुछ अधिक शरारती हो गया था| माधव उसके विपरीत स्वभाव का था| जब भी चंदन शरारतें करता, माधव उसे समझाने की कोशिश करता था| कभी-कभी दोनों एक दूसरेके विचारों से असहमत होने पर आपस में कुट्टी कर लेते, पर दस-बीस मिनट एक दूसरे से अलग रहने के बाद पुन: मित्रता कर लिया कराते|

एक दिन उनके विद्यालय में वन-महोत्सव बहुत धूम-धाम से मनाया गया| चंदन और माधव दोनों ने अपने विद्यालय के इस उत्सव में बढ़-बढ़कर भाग लिया| दोनों मित्रों ने अपने विद्यालय के अन्य विद्यार्थियों के साथ आम, नीम, पीपल, बरगद तथा गुलमोहर आदि के बहुत से पेड़ विद्यालय परिसर में लगाए| सभी बच्चे अपने द्वारा लगाए गए पेड़ों की नियमित रूप से देखभाल करते तथा दिन-रात उन्हीं कोमल पौधों के विषय में बातें करते|

माधव सभी बच्चों से अधिक समझदार और परिश्रमी था| उसकी गिनती विद्यालय के होनहार छात्रों में होती थी| एक दिन चंदन और उसके एक दूसरे मित्र प्रियांशु में आपस में किसी बात पर झगड़ा हुआ और दोनों में कुट्टी हो गई| चंदन की यह शरारत माधव को अच्छा नहीं लगी| माधव ने बहुत प्यार से चंदन को समझाया, “भाई! ऐसा करना अच्छी बात नहीं है| हम सब एक ही कक्षा के विद्यार्थी हैं| हमें मिलकर रहना चाहिए, आपस में लड़ने से तो हम कमज़ोर हो जाएँगे|” चंदन तुनककर बोला, “माधव! तुम्हें मेरे बारे में कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है| मैंने जो कुछ किया, अच्छा ही किया है|”

माधव ने पुन: उसे बहुत प्यार से समझाया, “मित्र! गुस्सा आने पर हमारी बुद्धि खराब हो जाती है और ऐसे में कोई निर्णय लेना गलत भी हो सकता है| तुम अमीर पिता की संतान हो, इसलिए सोचते हो तुम जो कुछ भी कर रहे हो, अच्छा ही कर रहे हो| यह तुम्हारा घमंड हो सकता है, शालीनता नहीं|” इस सीख को सुनकर, चंदन माधव से भी उल्टा-सीधा बोलने लगा और कुट्टी करके अपनी सीट पर जाकर बैठ गया|

दूसरे दिन सुबह सभी बच्चे विद्यालय पहुंचे| माधव अपने पौधे के लिए, अपने घर से प्रतिदिन एक बोतल में पानी भरकर लाता था| उसे बढ़ता देखकर बहुत खुश होता था| आज विद्यालय में आने के बाद जब वह अपने लगाए पौधे को पानी दे रहा था तभी उसकी नज़र चंदन द्वारा लगाए गए पौधे पर पड़ी| उसने देखा वह पौधा उखड़ा पड़ा था| माधव ने पौधे को उठाया और जैसे ही उसे पुन: जमीन में लगाने लगा, चंदन ने उसे देख लिया| चंदन ने समझा माधव ने मेरा लगाया हुआ पौधा उखाड़ दिया है| वह नाराज़ होकर बिना कुछ कहे अपनी कक्षा में चला गया| दिन ऐसे ही गुज़र गया| दोनों मित्र एक दूसरे से कुछ भी नहीं बोले|

अगले दिन माधव जब विद्यालय पहुँचा, तब उसने देखा, उसका लगाया हुआ पौधा अपनी जगह पर था ही नहीं| माधव यह देखकर एक पल तो हक्का-बक्का रहा किंतु उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उसका पौधा चंदन ने ही उखाड़कर कहीं फेंक दिया है|

माधव ने समझदारी का परिचय दिया| उसने किसी से कुछ नहीं कहा| अपनी बोतल का पानी चंदन द्वारा लगाए गए पौधे को देकर, वह कक्षा में चला गया| चंदन ने माधव की उदासी का कारण पूछा| माधव ने मुस्कराकर कहा, “कुछ नहीं, आज पता नहीं क्यों, मन नहीं लग रहा है|” माधव ने अपने पेड़ के उखड़ जाने के दर्द को अपने दिल में ही दबाए रखा, किंतु अपना नियम नहीं तोड़ा| वह प्रतिदिन घर से बोतल में पानी भरकर लाता और उसे चंदन के पेड़ में डाल देता| -“‘चंदन का पेड़” धीरे-धीरे बढ़ने लगा| माधव अपने लगाए पेड़ को भूल गया| उसे अपना-पराया नहीं आता था, वह तो कर्म करने में ही विश्वास रखता था|

चंदन ये सब देखता रहा और अपने किए एक अंदर ही अंदर पछताता रहा| उसने तो पौधे को केवल लगाया ही था, किन्तु माधव ने उसकी सेवा की, लालन-पालन किया, पशुओं से बचाया और उसे ‘चंदन का पेड़’ नाम से प्रसिद्ध कर दिया|

आज-कल उसी “चंदन के पेड़” के नीचे बैठकर, किसी न किसी कक्षा के विद्यार्थी शिक्षा पाते हैं| विद्यालय में चारों तरफ उस पेड़ की खुशबू महकती रहती है| आज भी चंदन जब उस पेड़ के निकट आता है, उसे शर्म महसूस होती है और माधव उसे देखकर मन ही मन बहुत खुश होता है|

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