परिचय से मिलता है साहस

संगत

हवा और पेड़ों का तो जन्म-जन्म का नाता है यह कहना बड़ा कठिन है कि हवा चलती है तो पेड़ खुश होते हैं या पेड़ जब खुश होते हैं तब हवा चलती है| ये दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं और आपस में अच्छे दोस्त भी हैं|

एक दिन की बात है जैसे ही हवा का झोंका आया, एकदम वातावरण में बदबू ही बदबू फैल गई| सब पेड़ नाक-भौं सिकोड़ने लगे और सबने बुरा सा मुंह बनाया, एक ने हवा से पूछा, “हवा यह क्या किया, पूरा माहौल दुर्गंध से भर गया| तुम आज कहां गई थी जो अपने साथ इतनी दुर्गंध समेट लाई हो| हम सब को सांस लेना भी दूभर हो रहा है| तुम आजकल कैसी संगत करने लगी हो|”

हवा ने उत्तर दिया, “पेड़ भाई, मैं आज जिस रास्ते से होकर गुजरी, वहां एक सड़ा जानवर पड़ा था आस-पास ढेर सारा कूड़ा भी पड़ा था| जमा पानी भी सड़ रहा था वहां| मैं क्या करती”

“ऐसी गंदी बदबू की संगत क्यों करती हो हवा?” “मैं भी क्या करूं? जैसा माहौल और वातावरण मिलेगा मैं उसी के अनुरूप ढल जाती हूं| यही मेरी प्रकृति है|”

“अच्छा आईंदा ध्यान रखूंगी आज तो मैं जाती हूं, ऐसा कह हवा वहां से चली गई|”

दूसरे दिन जब हवा का झोंका आया, तो चारों तरफ खुशबू बिखर गई, सारा वातावरण सुगंध से ऐसा सराबोर हुआ कि सारे पेड़ झूम उठे| एक पेड़ बोला, “वाह हवा आज तो तुमने मन खुश कर दिया| आज कितनी अच्छी महक साथ लेकर आयी हो|”

हवा ने जवाब देते हुए कहा, “कल मैं गंदी जगह से होकर आई थी तो बदबू मेरे साथ आ गई थी और आज एक बगीचा घूम कर आ रही हूं तो वहां के फूलों की महक मुझमें समा गई| इस अनुभव से आज मुझे यह बहुत अच्छी तरह समझ में आ गया कि संगत का असर क्या होता है| जो जैसी संगत करेगा वैसा ही नतीजा पायेगा| साफ-सुथरी जगह रहोगे तो मैं भी ताजी और स्फूर्तिदायक रहूंगी| वातावरण गंदगी से भरा होगा तो मैं भी प्रदूषित हो जाऊंगी|”

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