परिचय से मिलता है साहस

शायर का भुर्ता

एक थे शायर| नाम था झंडेलाल जानी| उनकी बीवी का बैंगन बहुत पसंद थे| एक रोज उसने अपने मियां को पुकारा, ‘जानी रे जानी|’ शायर मियां ने कहा, ‘बोलो मेरी रानी|’ बीवी चहकी, ‘आज तो भुर्ता खाने का मन करता है| दो-चार बैंगन ले आओ न|’ शायर मियां सिर पर टोपी और कंधे पर झोला डाल चल दिए| थोड़ी ही दूरी पर नदी किनारे एक बाड़ी थी| शायर मियां वहां पहुंचे, लेकिन वहां कोई था नहीं| जब मालिक वहां नहीं है, तो बैंगन किससे पूछ कर लिए जाएं? शायर मियां ने थोड़ी देर सोच कर तय किया कि मालिक नहीं है तो न सही, नदी तो है| हम उसी की इजाजत से लेंगे|

शायर मियां बोले, ‘पानी रे पानी|’ नदी कुछ नहीं बोली तो वे खुद ही नदी की तरफ से बोले, ‘बोल झंडेलाल जानी|’ शायर मियां ने पूछा, ‘बैंगन ले लूं दो-चार?’ नदी मौन रही तो उसकी ओर से शायर मियां ने ही फिर कहा, ‘हां-हां, ले लो न दस-बारह|’

शायर मियां ने बड़े-बड़े दर्जन-भर बैंगन झोले में डाले और घर पहुंच कर बीवी को दिए| बीवी ने मिर्च-मसाला डाल कर उनका भुर्ता बनाया| दोनों ने साथ बैठ कर चटखारे लेते हुए खाया| हफ्ते-भर में सारे बैंगन खत्म हो गए| बीवी को बैंगन भुर्ते का चस्का लग गया| शायर मियां आए-दिन नदी किनारे जाते और बाड़ी में से बैंगन चुरा कर ले आते| धीरे-धीरे बाड़ी में बैंगन कम होने लगे| बाड़ी के मालिक सयानेलाल सानी ने सोचा, जरूर कोई चोर बैंगन चुराने आता होगा!

एक रोज सयानेलाल सवेरे से एक पेड़ की आड़ में छिप कर खड़ा हो गया| घंटे भर बाद शायर मियां झोला लेकर पधारे और बोले, ‘पानी रे पानी|’ नदी क्या बोलती? इसलिए उन्होंने खुद ही कहा, ‘बोलो झंडेलाल जानी|’ शायर मियां बोले, ‘बैंगन ले लूं दो-चार?’ जवाब भी खुद ही ने दिया, ‘हां-हां, ले लो दस-बारह|’ शायर मियां ने झोला भर कर बैंगन लिए और जैसे ही जाने लगे कि सयानेलाल पेड़ की आड़ में से बाहर निकाल कर उनके सामने खड़ा हो गया| फिर पूछा, ‘किसकी इजाजत से आपने ये बैंगन लिए?’ शायर मियां ने मासूमियत से कहा, ‘किसकी इजाजत से? उस नदी की इजाजत से लिए हैं|’

सयानेलाल ने फिर पूछा, ‘क्या नदी बोलती है?’ शायर मियां बोले, ‘नदी नहीं बोलती, लेकिन मैं बोलता हूं न|’

सयानेलाल को गुस्सा आ गया| उसने शायर मियां को रस्से से बांध कर कुएं में उतारा| फिर बोला, ‘पानी रे पानी|’ कुएं का पानी थोड़े ही बोलेगा? इसलिए सयानेलाल ने खुद ही कहा, ‘बोलो सयानेलाल सानी|’ सयानेलाल ने पूछा, ‘डुबकियां खिलाऊं दो-चार?’ कुएं के बजाए फिर से वही बोला, ‘खिलाओ दो दस-बारह|’ उसने शायर मियां को डुबकियां खिलानी शुरू की| वह रस्सा छोड़ता तो शायर मियां पानी में उतर जाते और खींचता तो बाहर आ जाते| उनके नाक, कान, मुंह में पानी भर जाता| वे गिड़गिड़ाने लगे, ‘भैया, मुझे माफ करो दो| अब मैं कभी चोरी नहीं करूंगा|’

दस डुबकियों के बाद सयानेलाल सानी को दया आ गई| उसने शायर मियां को बाहर निकाल कर छोड़ दिया| उन्होंने फिर कभी चोरी नहीं की|

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