एक दिन चारों ने जंगल की सैर करने का प्लान बनाया| उन के मम्मी पापा ने उन्हें समझाया, “तुम चारों तो जा रहे हो, मगर जंगल में एक साथ ही रहना और चारों एकसाथ ही वापस आना|”
“ठीक है, हम एकदूसरे का सस्थ नहीं छोड़ेंगे,” कह कर चारों तुकतुक करते हुए जंगल की तरफ चल पड़े|
रास्ते में चारों को एक बीमार हाथी मिला| उस की हालत बहुत ही खराब थी| देखने में लगता था अब मरा कि तब मरा|
अंशु ने पूछा, “अंकल, आप को क्या हुआ है?”
हाथी बोला, “बच्चो, मैं बहुत बीमार हूं| मेरे साथी भोजन की तलाश में दूर चले गए हैं| अब मेरी देखभाल करने और मुझे डॉक्टर के पास ले जाने वाला भी कोई नहीं है|”
चारों एकसाथ बोले, “अंकल आप चिंता मत करो| हम आप को डॉक्टर के पास ले जायेंगे|
“पर मैं तो बहुत कमजोर हो गया हूं| अपने आप चल भी नहीं सकता, फिर मुझे डॉक्टर के पास कैसे ले चलोगे?” हाथी की बात सुनने पर चारों दोस्त एकदूसरे का मुंह ताकने लगे|
काफी सोचविचार करने के बाद आशु ने हाथी के पैर गिने, “1, 2, 3, 4…”
फिर वह अपने साथियों से बोला, “देखो, अंकल के 4 पैर हैं और हम भी 4 हैं| अगर अंकल अपना 1-1 पैर हम चारों के ऊपर रख लें तो हमलोग उन्हें बड़े आराम से डॉक्टर चूहेराम के पास पहुंचा सकते हैं|”
बाकी के 3 कछुए भी आशु से सहमत हो गए, “हां, यही ठीक रहेगा|”
लेकिन अब हाथी आनाकानी करने लगा, “नहीं नहीं, इस में तुम्हारी जान को खतरा है| मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकता| मेरे वजन से तो तुम चारों मर जाओगे|”
अभी हंसते हुए बोला, “नहीं नहीं अंकल, आप तो बेवजह डर रहे हो| आप यकीन मानिए, ऐसा कुछ नहीं होगा| हम चारों रोज सुबहशाम नदी के तट पर कसरत करते हैं|
हाथी ने बहुत मना किया| मगर उन चारों कछुओं के आगे उस हाथी की एक न चली| आखिर उसे हार माननी ही पड़ी| उस ने अपने 1-1 पैर चारों के ऊपर रख दिए|
कछुए भी तैयार खड़े थे| चारों ने दम लगाया और हाथी को ले कर टुकटुक करते हुए डॉक्टर चूहेराम के क्लिनिक की तरफ चल पड़े|
“जोर लगा कर चल मेरे यार, हाथी बेचारा है| बीमार,” हाथी को दवा दिलवाने के बाद चारों ने जंगल की सैर की| सब ने हरेभरे वातावरण में खूब मजे किए|
लौटते समय डैनी ने याद दिलाया, मम्मी पापा ने हमें कहा था कि चारों साथ में ही लौटना| हमें अब अपनी गिनती कर ही लेनी चाहिए कि हम पूरे हैं भी या नहीं|”
अंशु ने गिनती शुरू की, “1, 2, 3…”
वह खुद को गिनना ही भूल गया, “अरे, एक कछुआ किधर गया?”
“क्या?” इस बार अभि ने गिनती की, “1, 2, 3…” उस ने भी अपने आप को नहीं गिना, “मम्मी रे, एक कछुआ गायब है|”
चारों ने गिनती की, मगर किसी ने भी अपनेआप को नहीं गिना| उन्हें लगा कि अपना एक साथी बिछड़ गया है| चारों रोने लगे|
“अब हम घर जा कर मम्मी पापा को अपना मुंह कैसे दिखाएंगे?”
एक बदमाश लोमड़ी के पेड़ के पीछे से यह सारा नजारा देख रही थी| उसे कछुओं की बेवकूफी पर हंसी आ रही थी|
“इन नादान कछुओं को तो आसानी से शिकार बनाया जा सकता है|” सोचते ही लोमड़ी के मुंह में पानी आ गया|
वह कछुओं के पास जा कर बोली, “अरे, तुम लोग यहां पर हो और तुम्हारा एक साथी वहां तुम्हारे इंतजार में बैठा है|”
“मौसी, आप हमें उस के पास ले चलो| अगर वह हमें न मिला तो मम्मी पापा हमें बहुत डांटेंगे|” चारों ने लोमड़ी से विनती की|
अपनी चाल कामयाब होते देख लोमड़ी की आंखें खुशी से चमकने लगीं| वह चारों कछुओं को ले कर अपने ठिकाने की ओर चल पड़ी|
वहां 3 लोमड़ियां और थीं| वें कछुओं को देख उछलने लगीं| वाह बहन, तुम ने तो कमाल कर दिया| ऐसा भोजन तो हर किसी को नहीं मिलता है|”
सुन कर कछुए समझ गए कि लोमड़ी ने उन के साथ धोखा किया है| अब उन्हें अपनी जान कहीं से भी बचती नजर नहीं आ रही थी|
“ये भी 4 और हम बही 4 बड़े मजे से 1-1 कछुआ खाएंगे|” एक लोमड़ी हंसते हुए बोली|
इस पर चारों कछुए एकदूसरे का मुंह ताकने लगे| “पर हम तो सिर्फ 3 हैं|”
“तुम 3 नहीं, पूरे चार हो| 1, 2, 3, 4…” लोमड़ी गिनती कर के बोली, “वहां तुम गिनने में गलती कर रहे थे| अपने आप को तो कोई गिन ही नहीं रहा था|”
“हम भी कैसे बेवकूफ हैं| अपने आप को तो गिना ही नहीं,” चारों कछुओं ने अपना सिर ही पीट लिया|
“अब तुम्हारे नरमनरम मांस से ही हमारी भूख शांत होगी|” तभी लोमड़ियां कछुओं पर टूट पड़ी|
लोमड़ियों को हमला करते देख कछुओं ने खुद को अपने खोल में छिपा लिया| अचानक उन्हें जोरजोर ने उठापटक की आवाज सुनाई दी|
कुछ देर बाद जब उन्हें लगा कि बाहर बिलकुल शांति हैं तो चारों ने धीरे-धीरे अपना मुंह खोल से बाहर निकला| बाहर का नजारा देख चारों दंग रह गए|
लोमड़ियां अधमरी हालत में जमीन पर पड़ी थीं| हाय रे, मार ही डाला…”
पास ही 4-4 हाथी खड़े खड़े मुस्करा रहे थे| वे बोले, “तुम ने हमारे लीडर की जान बचाई थी| इसलिए हम तुम्हें सुरक्षित तुम्हारे घर पहुंचाएंगे|” कछुए चारों हाथियों के साथ चलने को तैयार हो गए|
रास्ते में एक हाथी बोला, “तुम लोग काफी धीरे चल रहे हो| ऐसे तो हम अंधेरा होने से पहले घर तक नहीं पहुंचेगे|”
चारों हाथियों ने 1-1 कछुए को उठाया और अपनी पीठ पर लाद लिया| हाथी की सवारी कर के कछुओं को बहुत ही मजा आ रहा था|
वे एकदूसरे को गिनते हुए चले जा रहे थे और गुनगुना रहे थे, “1…2…3…4… हम तो चले नदी की ओर|”