परिचय से मिलता है साहस

सींगों वाली परी

हालांकि, दादाजी के घर में विभिन्न प्रकार के पालतू पशु भरे पड़े थे| लेकिन मुझे सबसे ज्यादा पसंद वह नन्ही काली बकरी थी, जो सरसों के खेतों से एक दिन मेरे पीछे-पीछे मेरे घर तक आ गयी थी|

प्रत्येक वर्ष वर्षा ऋतु के आने से पूर्व छोटी कल-कल करती नदी एक पतली धारा में बदल जाती थी| तब मैं इस नदी के पार खेतों और चाय के बागानों में घूमता हुआ घास और सरसों के बीच घूमते हुए पुरुषों व चाय की पत्तियां चुनती सुर्ख लाल साड़ियों में लिपटी स्त्रियों को देखा करता था|

एक बार मैं सिंचाई वाली छोटी नहर के किनारे बैठा कीचड़ वाले पानी में कुछ बगुलों को मछली पकड़ते देख रहा था| तभी मैंने अपनी कुहनी पर किसी चीज के टकराने का अनुभव किया| आसपास देखने पर मुझे बगल में गहरे काले रंग की और रेशमी बालों वाली नन्ही बकरी दिखाई दी, जिसकी आंखें भूरी थीं| न तो उसका मालिक ओर न उसकी मां आसपास थी|

बकरी मुझे लगातार धकेलती रही| मैंने अपनी जेबें देखीं और एक अदरक वाला बिस्कुट उसकी ओर बढ़ा दिया| उसने मजे से बिस्कुट खाया और तब मेरे पास बैठते हुए घास में मुंह चलाने लगी| थोड़ी देर बाद जब मैं जाने के लिए उठा, बकरी भी उठ खड़ी हुई| जब मैंने घर की तरफ चलना शुरू किया तो वह भी मेरे पीछे आने लगी| उसकी पतली टांगें चलते समय कांप रही थीं|

वह मेरे चारों ओर उछलने लगी तो मैंने कहा, “घर जाओ|” लेकिन मेरा पीछा करते-करते वह नदी के तट तक आ गयी| मुझे मालूम था कि उसकी कांपती टांगें नदी की बहती धारा में नहीं टिक पायेंगी, इसलिए मैंने उसे अपनी बांहों में उठा लिया और उसे नदी के उस पार ले गया| जब मैंने उसे नीचे उतारा, तब भी वह मेरे पास खड़ी रह अपने को मेरी टांगों के साथ रगड़ती रही|

मैं यह सोचते हुए तेज कदमों से घर के लिए चल पड़ा कि बहुत जल्दी ही मैं उस छोटी बकरी को पीछे छोड़ दूंगा| लेकिन जैसा मैंने अनुमान किया था, उसके उलट उसकी टांगें मजबूत साबित हुईं| वह उछलती-कूदती मेरे घर के दरवाजे तक आ गयी|

उसे साथ अंदर ले चलने और दादाजी को उसे उपहार के रूप में देने के सिवा मैं कुछ न कर सका| दादी मां ने बरामदे में उसे दूध की तश्तरी चाटते हुए देखकर कहा, “और कोई पालतू जानवर नहीं| मैंने तुम दोनों को बार-बार कहा है कि मैं इस घर में और किसी जानवर को बर्दाश्त नहीं करूंगी|”

दादी मां के विरोध को समझना आसान था| हाल ही में, हमारे पालतू बंदर टोटो के द्वारा की गयी तबाही ने दादी मां को घर में किसी पालतू जीव को रखने के बिलकुल खिलाफ कर दिया था| टोटो ने बर्तनों को तोड़ डाला था व पर्दों को फाड़ दिया था|

यह तो दादाजी ही थे जो प्राय: कई प्रकार के जानवरों को घर ले आते थे| अगर दादी मां यह जानने लगी हैं कि मैंने भी अब दाद की भांति जानवरों को घर लाना शुरू कर दिया है तो वह मुझे वापस होस्टल में भेज सकती थीं|

दादाजी मुझे अपने दोस्त समझते थे, इसलिए उन्होंने यह बहाना बनाया कि यह बकरी बड़ी होकर दूध देने के लिए खरीदी गयी है|

उन्होंने दादी मां को कहा, “बकरी का दूध तुम्हारे गठिया के रोग में बहुत फायदेमंद है|”

यद्यपि दादीजी यह जानती थीं कि उसे दूध देने में काफी वक्त है, पर दूध की आशा ने दादीजी को उस नये पालतू के प्रति थोड़ा नरम बना दिया|

पीटर पैन की परी के नाम पर मेरी बकरी का जल्दी ही एक नाम पड़ गया – टिंकर बेल| टिंकर में सचमुच कुछ न कुछ परी पैसा था| वह खेल-खेल में छलांगें भरती और जब वह लॉन के चारों ओर उछलती तो ऐसा लगता, मानो उसके पांवों में स्प्रिंग बंधे हों| उसके नाम को और सार्थक बनाने के लिए मैंने उसके गले में एक छोटी सी घंटी बांध दी ताकि उसकी घंटी की आवाज से मैं जान पाऊं कि वह कहां है|

उसे सुबह की सैर पसंद थी| कई मायनों में कुत्ते की बजाय उसे साथ ले जाना अच्छा था| वह न तो इधर-उधर भटकती थी और न बिल्लियों, आवारा कुत्तों या दूसरे पशुओं के साथ उलझती थी| बस, उसकी केवल एक आदत थी और वह थी तितलियों का दूर तक पीछा करना| उनका पीछा करते-करते वह गड्डे में गिर जाती और फिसलती चली जाती|

लेकिन बकरियां बहुत जल्दी बढ़ती हैं| पीटर पैन, टिंकर बेल और अन्य परियों की तुलना में हमारी टिंकर तेजी से बड़ी हो रही थी| बढ़ने के साथ ही उसके सिर में एक जोड़ी सिंग दिखने लगे| उसकी भूख भी बढ़ने लगी थी| मीठे मटर, जिरेनियम, जलकुंभी के पत्ते व फूल खाना उसे बेहद पसंद था| ये सब दादाजी के पसंदीदा बगीचे के फूल थे|

एक सुबह हमने देखा कि मीठे मटर के ज्यादातर पौधे बर्बाद हो चुके थे| जल्दी ही मैंने और दादाजी ने यह कहते हुए दादीजी को समझाने की कोशिश की कि रात के वक्त जरूर कोई गाय बाड़ तोड़कर घुस आई होगी| हालांकि दादीजी ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की, पर उनकी नजरें मानो बता रही थीं कि वह दोषी को जानती हैं|

और एक दिन बिन मौसम की बरसात की तरह एक मुसीबत आ धमकी जब हमें इसका अनुमान भी नहीं था| अब टिंकर आए दिन हमेशा किसी न किसी को सींग मारा करती और वह इस अवसर की हमेशा तलाश में रहती थी| माली, डाकिया और फल-विक्रेता सभी ने उसकी शिकायत की| परंतु उन सबमें हिरण सी प्यारी टिंकर का कुछ बिगाड़ने का साहस न था|

लेकिन हद तो तब हो गयी जब हमारी एक चाची हमारे यहां घूमने आयी थी| माबेल चाची फूलों के गमलों पर झुककर उनसे बातें करने की आदी थी| उनका कहना था कि ऐसा करने से फूल जल्दी बढ़ते हैं| एक दिन जब वह एक गमले के ऊपर झुककर फूलों से बातें कर रही थी, तब टिंकर को यह शक हुआ कि कहीं चाची उसकी पसंद की पत्तियों को तो नहीं खा रही| उसे अपने प्रिय भोजन पर दूसरे द्वारा हक जताना बर्दाश्त नहीं हुआ और चाची को पीछे से सींगों से टक्कर मार दी| माबेल चाची ने इस तरह बरामदे से गिराए जाने की घटना को सहजता से नहीं लिया| टिंकर का यही आखिरी दिन था – हमारे साथ रहने का| दादीजी ने रसोइए को यह आदेश दिया कि वह टिंकर को सीधे बाजार ले जाये और जो भी पहला ग्राहक मिले, उसी को इसे बेच दे| भले ही वह कितनी ही कीमत दे|

मैं दरवाजे पर खड़ा था और बेचारी टिंकर को ले जाते हुए देख रहा था| वह पीछे मुड़कर मुझे देखती रही और मिमियाते हुए शायद इस बात से चकित हो रही थी कि मैं आज उसके साथ घूमने क्यों नहीं जा रहा| मैंने सिर्फ उसे हाथ हिलाकर विदा किया और यह प्रार्थना की कि उसका दूसरा मालिक दयालु हो|

रसोइए ने वापस आकर कहा कि उसने टिंकर को बेच दिया है| लेकिन कुछ देर बाद जब मैं उसके साथ रसोई में अकेला था तो उसने बताया कि टिंकर को उसने खुद ही खरीद लिया है और मैं, बाजार के पीछे स्थित उसके नये घर में जब चाहूं उससे मिलने आ सकता हूं|

कभी-कभी मैं टिंकर को मिलने गया भी और कुछ दिन बाद मैंने उसे एक छौने के साथ देखा| टिंकर दूध देने वाली एक अच्छी बकरी साबित हुई और रसोइए का परिवार उससे बहुत खुश था| सभी के साथ उसकी अच्छी बनती थी, लेकिन वह उन्हीं अजनबियों को सींग मारती भी जो बहुत ज्यादा नीचे झुककर सलाम किया करते थे|

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