दादी माँ उन बच्चों की आदत को भली-भाँति जानती थी| उन्हें भी पता था कि वे कहानी सुने बगैर मानेंगे नहीं| उन्हें कहानी सुने बगैर नींद नहीं आती| इसलिए उन्हें भी हर रात एक कहानी सुनाने की आदत सी पड़ गई थी| इससे बच्चों के साथ-साथ उनका अपना भी मनोरंजन हो जाता था| छोटे बच्चों से बातें करके बड़ों को काफी आनन्द मिलता है|
आज जैसे ही बच्चों ने दादी माँ के कमरे में प्रवेश किया तो सबसे पहले चुन्नू ने दादी का हाथ पकड़कर उसे दबाते हुआ कहा – “दादी माँ….. दादी माँ….. आज हम ‘सोनपरी’ की कहानी सुनेंगे|”
“सोनपरी!” दादी माँ ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा जैसे उसने कोई अनहोनी बात कह दी हो|
“हाँ….. हाँ….. दादी माँ….. सोनपरी की कहानी हमें बहुत अच्छी लगती है|” दूसरे बच्चे भी चुन्नू की हाँ में हाँ मिलाने लगे|
दादी माँ जान चुकी थीं कि अब तो मुझे कहानी सुनानी ही होगी| बच्चों का मन रखने की कला दादी माँ को खूब आती थी| बच्चों को कहानी सुनाने का यह अंदाज़ हर एक को नहीं आता| आज जिसे हम मनोविज्ञान का नाम देते हैं| वास्तव में प्राचीन युग से ही यह कला हमारे देश में एक परम्परा के रूप में चली आ रही है जो पीढ़ी चलती है| दादी माँ हो या नानी माँ इनका तो काम ही बच्चों का मनोरंजन करना रह जाता है|
दादी माँ ने बच्चों को लाड़-प्यार से अपने पास बैठाया और फिर थोड़ी देर तक खाँसने के पश्चात् गले को साफ करती हुई बोलीं – “बच्चों! तुम्हारी यह सोनपरी सात समुद्र पार एक ऐसे स्थान पर रहती थी जिसके आसपास कोई भी मानव नहीं रहता था| अकेली सोनपरी उस पाताल देश में रहती थी| असल में उसे अकेले रहने में ही बड़ा आनन्द आता था| वह इस मायारूपी संसार से दूर ही रहती थी|
उसे पता था कि इस संसार के लोग बड़े ही स्वार्थी हैं| वे किसी भी सुन्दर नानी को देखकर मन में मैल ही भरते हैं| किसी के पास धन हो तो उसे लूटने का भी प्रयास करते हैं|
बस यही डर उस सोनपरी के मन में बैठ गया था| इसलिए वह इस पाताल देश में रहने लगी| पाताल देश में बड़े विचित्र जीव-जन्तु रहते थे जो सबके सब उसके मित्र बन गए थे| वे सोनपरी की भाषा भले ही वे नहीं समझते थे लेकिन इशारे बराबर समझ जाते थे|
सोनपरी इनके पास रहकर बड़ी ही प्रसन्न थी| असल में वह इस पाताल की रानी बन गई थी| जिसकी प्रजा ये जीव-जन्तु ही तो थे| जिधर भी वह घूमने जाती उधर ही सबके सब जीव-जन्तु बड़े सावधान होकर उसे प्रणाम करने लगते| उनके प्रणाम करने के अपने-अपने अंदाज़ थे| कोई सिर झुकाकर प्रणाम कर रहा है तो कोई चौपाया आगे वाले दोनों पाँव जोड़कर|
इस सबसे मिलाकर सोनपरी बड़ी खुश होती| उसका जीवन बड़े ही आनन्द से व्यतीत हो रहा था| पाताल देश की इस रानी के साथ जीव-जन्तुओं को भी इतना प्यार हो गया था कि वे भी उससे जुदा होने को तैयार नहीं थे|
एक दिन न जाने कहाँ से एक काला देव उस पाताल देश में आ गया| जिसे देखकर सब पशु-पक्षी ज़ोर-ज़ोर से डरी हुई आवाज़ें निकालने लगे|
शेर दहाड़ा, हाथी चिंघाड़ा, गीदड़ भौंक रहे थे, चिड़िया, कौए, चीलें उड़-उड़कर पँख फड़फड़ाने लगे| सोनपरी समझ गई थी कि कोई न कोई नई आफत आने वाली है| जरूर पाताल देश में कोई शत्रु आया है|
“दादी माँ क्या सोनपरी भी उस काले देव से डर गई थी?” चुन्नू ने पूछा|
“हाँ बेटा! ऐसा ही समझ लो| जब भी कोई परदेसी घर में घुसेगा तो एक बार तो घर वाले डर ही जाएँगे| फिर उन लोगों ने तो इस प्रकार का प्राणी पहली बार ही देखा था|
पाताल देश में आने वाला यह पहला विचित्र प्राणी था| ऐसे लोग तो भू-लोक में ही बसते हैं| सोनपरी बड़ी देर तक उसे देखती रही|
कहाँ से आया है या प्राणी? जिसकी शक्ल देखकर ही लोग भयभीत हो जाए| पाताल देश के वासियों ने तो आज तक ऐसा भयंकर प्राणी देखा ही नहीं था|
वह निरन्तर आगे बढ़ रहा था और साथ ही अपनी भाषा में कुछ बोल रहा था| उसने शेर की दहाड़ सुनी, हाथी की चिंघाड़ सुनी जरूर परन्तु उस पर तो ज़रा भी प्रभाव नहीं हुआ|
सारे जानवर इकट्ठे होकर सोनपरी के पास पहुँचे| जीवन का मोह तो संसार के हर प्राणी को होता है| उस विचित्र मानव को देखकर ही ऐसा लग रहा था कि वह खूनी है| दया नाम की कोई चीज़ उसके हृदय में नहीं है|
सोनपरी अपनी चिन्ता और भय को उन सबसे छुपाकर रखना चाहती थी क्योंकि वे सबके सब उसे अपनी रानी समझते थे| अपनी रक्षक समझकर ही उसके पास आए थे|
“आप सब इतने डरे हुए क्यों हैं?” सोनपरी ने जानते हुए भी उनसे पूछा – “देखो नानी माँ! सामने से आते उस खूनी देव को देखो| वह कैसे चला आ रहा है| ऐसा लगता है उसका मन शुद्ध नहीं है| फिर यह अपने देश का भी तो नहीं है| किसी दूसरे देश का वासी है| हमें तो इससे डर लग रहा है कहीं ऐसा न हो कि यह हमें मारकर ही न खा जाए|”
सोनपरी ने उनके मन की भावना को समझ लिया था| वे जो कुछ कह रहे थे वह सत्य ही था| इस बात को तो वह स्वयं भी अच्छी तरह से जानती थी| वह उस काले देव के सामने अपने आपको असहाय सा महसूस कर रही थी|
अब तो काला देव बिल्कुल उनके पास ही आ चुका था| मरता क्या न करता| सोनपरी समझ चुकी थी अब या तो मरना होगा या फिर कुछ करना होगा| यदि इस काम में थोड़ी भी देर हो गई तो….
आहा….हा….हा….
हा…. हा…. हा….
वह सामने आकर बड़े ज़ोर से हँसने लगा जैसे कोई पागल हँसता है|”
“दादी माँ….दादी माँ…. वह काला देव वहाँ क्यों गया था? क्या सोनपरी उससे डर गई थी? शेर उसे नहीं मार सकता था?” चुन्नू बीच में ही बोल पड़ा|
मुन्नू क्रोध में आकर बोला – “अरे भाई! बीच में क्यों बोल रहे हो? पहले पूरी कहानी तो सुन लो| टोका-टोकी करने की आदत अच्छी नहीं होती|”
मुन्नू से डांट खाकर चुन्नू चुपचाप बैठ गया| उसे कहानी सुनने में बड़ा ही आनन्द आ रहा था| सोनपरी की कहानी तो उसे बहुत ही अच्छी लगती थी|
दादी माँ ने अपनी कहानी को फिर आगे बढ़ाते हुए कहना शुरू किया – सोनपरी ने अपनी पूरी शक्ति को इकट्ठा किया और भय को अपने मन से निकाल ज़ोरदार आवाज़ निकाली – “कौन हो तुम और हमारे देश में क्या करने आए हो?”
उसने सोनपरी की आवज़ को सुनकर अनसुना कर दिया और सोनपरी को क्रोध की दृष्टि से देखता हुआ आगे बढ़ने लगा|
“रुक जाओ! खबरदार जो एक कदम भी आगे बढ़ाया|”
“हा… हा… हा… हा… हा… हा…” वह एक बार फिर ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा| हँसते समय उसके लम्बे-लम्बे दाँत बाहर निकले हुए दिखाई दे रहे थे| उसकी इस हँसी को खुशी की हँसी नहीं कहा जा सकता था| उससे तो साफ बदबू आ रही थी पाप की, शत्रुता की| उसका मन शुद्ध नहीं था|
“तुम क्या चाहते हो?”
“भोजन! भूखा हूँ|”
“तो हमारे देश में ही क्यों आए हो? क्या तुम्हारे देश में भोजन नहीं है?”
“है|”
“तो फिर हमारे देश में आने का कारण?”
“सुना है पाताल देश का भोजन बड़ा स्वादिष्ट होता है| सोनपरी! तुम कितनी सुन्दर हो| तुम्हारा देश भी बड़ा सुन्दर है| मैं चाहता हूँ कि अब यहीं पर रहने लगूँ|”
“नहीं….. नहीं….. ऐसा नहीं हो सकता| हम अपने देश में किसी भी ऐसे प्राणी को नहीं रहने देते जिसे देखकर हमारी यह शान्तिप्रिय जनता डरने लगे| अब मैं आपसे यही प्रार्थना करती हूँ कि आप शान्ति और प्रेम से उसी रास्ते से वापस चले जाओ जिस रास्ते से आए हो|”
“यदि मैं न जाऊँ तो….. ?”
“तो फिर हमें मजबूर होकर अपनी शक्ति का प्रयोग करना पड़ेगा|”
“हा….. हा….. हा….. हा…..|” वह पागलों की तरह हँसने लगा| जैसे सोनपरी की शक्ति की हँसी उड़ा रहा हो और फिर अपनी हँसी को रोककर बड़े ध्यान से सोनपरी की ओर देखा जैसे कहना चाहता हो – “क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा|”
सोनपरी वह बड़े धैर्य से बोला – “हाँ तो मेरी प्रिय सोनपरी! यदि मैं कहूँ कि आप मेरे से शादी कर लो फिर हम बड़े मज़े से जिन्दगी व्यतीत करेंगे|”
“यह तुम क्या कह रहे हो?” सोनपरी को जैसे इस बात पर विश्वास न हो रहा हो| आज तक तो उसने कभी किसी से ऐसी बात सुनी नहीं थी|
शादी…. विवाह…. यह सब क्या होते हैं? उसे नहीं पता था| उसने जब से आँख खोली थी तब से अपने आपको इस देश में ही पाया था|
आज यह काला देव उससे शादी की बात कर रहा है, जबकि उसे पता तक नहीं कि शादी क्या होती है?
“कहो सोनपरी! मेरी बात मन्जूर है?”
“देखो जी, मैंने तो कभी शादी का नाम नहीं सुना और न ही मैं जानती हूँ कि शादी क्या होती है?”
“उसकी चिन्ता क्यों करती हो? मैं आपको सात दिन में ही सब कुछ सिखा दूँगा|”
“ऐसा कुछ नहीं होगा| आपको मेरे इस देश से जाना ही होगा| इस देश में कोई शादी नहीं होती, और न ही कोई शादी का नाम ही जानता है| तुम यहाँ से जाओ|”
“मैं जाने के लिए नहीं| मैं तो अब इसी देश में आपके साथ ही रहूँगा|”
“ऐसा नहीं होगा|” सोनपरी बोली|
“मैं कहता हूँ ऐसा ही होगा|”
“हे काले देव! यह मत भूलो कि मैं पाताल की रानी हूँ|”
“और मैं पाताल का राजा|”
“बकवास बन्द करो| मैंने कह दिया न कि तुम यहाँ से जाओ, चले जाओ|”
“मैं नहीं जाऊँगा| यदि तुममें शक्ति है तो मुझे निकाल दो नहीं तो मैं तुम्हें अपनी पत्नी बना ही लूँगा|”
सोनपरी जान गई थी कि यह आदमी खूनी है| इसके पास शक्ति भी है| यह मुझे अवश्य पकड़ेगा| वह वास्तव में उसकी ओर बढ़ रहा था| उसकी आँखों से अंगार बरस रहे थे| उसने हाथ आगे को फैला रखे थे जैसे सोनपरी को अपनी बाँहों में भर लेगा|
सामने खड़े सारे जानवर सोनपरी के इस दर्द को भली-भाँति समझ रहे थे| परन्तु उस काले देव के अन्दर छिपी शक्ति के भय के कारण उनमें से कोई भी तो आगे आने का साहस नहीं कर रहा था|
सोनपरी बुरी तरह भयभीत थी और सोच रही थी कि मैं क्या करूँ? कौन मेरी सहायता करने आएगा? ऐसे अवसर पर उसे अपनी माँ के दिए हुए उस लाकेट की याद आ गई जिसके अन्दर शक्ति यन्त्र छिपा हुआ था| यह उस समय की बात है जब वह अपनी माँ के पास बैठी उसे अपनी बीमारी के कारण तड़पते देख रही थी|
उसकी माँ ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा था – “बेटी! अब मैं जा रही हूँ| प्रभु ने मुझे अपने पास बुलाया है| हम परियों का जीवन अपना नहीं होता| हमें तो ईश्वर की ओर से ही इस पाताल देश में भेज जाता है| प्रभु जितने भी समय के लिए हमें भेजते हैं इसके बारे में तो वही जानते हैं| हाँ, जब हमारा अन्त होने लगता है तो हमारी आत्मा से अपने आप आवाज़ आती है कि – “तुम्हारा समय पूरा हो चुका है|”
बेटी! मैंने अपनी आत्मा की आवाज़ सुन ली है| अब मुझे कोई नहीं रोक सकता क्योंकि हम परियाँ हैं| हमारी डोरी केवल प्रभु के हाथ में है|”
“माँ… माँ… माँ… मुझे अकेली छोड़कर मत जाओ| मत जाओ…. !”
“बेटी! यह शक्ति यन्त्र का लॉकेट है जो हमारे वंश में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है| इस गले में पहन लो| मेरे पश्चात यही तुम्हारा साथी होगा, यही तुम्हारा रक्षक होगा| कभी भी तुम पर कोई संकट आए तो इसे तीन बार पुकार कर कहना – “मुझे शक्ति दो! मुझे शक्ति दो! मुझे शक्ति दो! मेरी रक्षा करो! मेरी रक्षा करो!” बस उसी समय प्रभु प्रकट होकर तुम्हारी रक्षा करेंगे| वही हमारे स्वामी हैं| वही माता-पिता हैं| अब यही लाकेट तुम्हारी रक्षा करेगा| बस इस लाकेट को सँभाल कर गले में डाल लेना| बस बेटी! अब मैं जा रही हूँ| तुम जब भी अपने गले के लाकेट को हाथ में लेकर तीन बार कहोगी – “माँ! मेरी रक्षा करो|” तो मैं उसी समय आऊँगी| पापी भले ही कितना शक्तिशाली क्यों न हो| मैं उसका नाश कर दूँगी| तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होगा|”
सोनपरी को अपनी माँ के कहे शब्द उस समय ही याद आए जब शत्रु उसके सिर पर मंडरा रहा था| वह काला देव अब उसे अपनी बाँहों में भरने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुका था|
उसी समय सोनपरी की आत्मिक शक्ति जाग्रत हो चुकी थी| उसने अपनी माँ के दिए लाकेट की ओर देखा फिर अंतिम बार उस काले देव से कहा – “रुक जाओ!”
“काले देव का निर्णय तो भगवान भी नहीं बदल सकता सोनपरी| यह बात मत भूलो कि मेरे पास भी शक्ति है| मैंने शनि की उपासना करके वर पाया है कि मुझे कोई मार नहीं सकता| उसी शक्ति के कारण तो मैं इस पाताल देश में आया हूँ|” सोनपरी जो इस संसार की सबसे सुन्दर परी है| मेरी माँ ने मुझे यह कहानी सुनाई थी कि सबसे सुन्दर परी पाताल देश में रहती है| उसे कोई भी आज तक पा नहीं सका| मैंने माँ को वचन दिया था कि एक दिन मैं उसे प्राप्त करके ही रहूँगा| मैं उसी से शादी करूँगा| यदि वह परी है तो मैं भी देव हूँ| देव और परियों का तो अपना ही एक इतिहास है जो मानव जाति के इतिहास से अलग है| आज हम दोनों विवाह करके नया इतिहास लिखेंगे सोनपरी!”
“नहीं….. नहीं….. तुम मुझसे दूर रहो| नहीं तो मैं तुम्हें भस्म कर दूँगी|”
“मुझे भस्म करने की शक्ति तुममें नहीं है सोनपरी! काला देव उसके निकट आ चुका था|”
“देखना चाहते हो मेरी शक्ति?”
“हाँ…. हाँ…. मैं देव हूँ देव, काला देव, जो सोनपरी को पाने के लिए पाताल देश में आया है|”
“तुम नहीं तुम्हारी मौत तुम्हें लेकर आई है|”
“मैं अपनी मौत को अपनी जेब में रखता हूँ सोनपरी! मैं मौत से नहीं डरता| मौत मुझसे डरती है|”
वह और निकट आ गया था| उसके नथनों से निकलती गर्म हवा जब सोनपरी के गोरे चेहरे पर पड़ने लगी तो वह समझ गई कि अब पानी सिर से गुज़र गया है| अब यह खूनी राक्षस चांडाल बन गया है|
उसने उसी समय अपना लॉकेट गले से निकाल कर माथे से लगातार चूमते हुए कहा –
“शक्ति दो, शक्ति दो, शक्ति दो|”
“माँ मेरी रक्षा करो, माँ मेरी रक्षा करो|”
“इस चांडाल से मेरे पवित्र शरीर को बचा लो माँ, बचा लो माँ|”
सोनपरी आँखें बन्द करके माँ की उपासना कर रही थी, लॉकेट उसके हाथ में था| काला देव तो उस समय अंधा हो चुका था| वह चांडाल का रूप धारण किए हुए था| उसने अपने दोनों हाथों से सोनपरी के हाथ के साथ लगा ही था कि बड़े ज़ोर से बादल टकराने की आवाज़ आई| उनमें से भयंकर आग निकली जैसे आकाश फटने लगा हो| फिर ज़ोरदार धमाका हुआ|
सामने खड़े काले देव का सारा शरीर आग में जलने लगा| आग को देखकर पाताल के सारे जानवर इधर-उधर भागने लगे|
काला देव जल रहा था| बिल्कुल ऐसे ही जैसे दशहरे के दिन रावण जलता है| वह तड़प रहा था पानी से निकली मछली की भाँति|
उस पापी को बचाने वाला कोई नहीं था| उसने जो पाप किया था उसका दंड उसे मिल गया| उसकी आत्मा शरीर से निकलकर जब वायु में उड़ती हुई जा रही थी तो उसमें से आवाज़ आई – “सोनपरी! तुमने मेरी हत्या तो कर दी परन्तु मैंने केवल शरीर ही तो बदला है| अब मैं जा रहा हूँ| मैं एक बार फिर जन्म लूँगा और तुम चाहे किसी भी रूप में, किसी भी लोक में रहोगी मैं तुम्हें पाकर ही रहूँगा, पाकर रहूँगा सोनपरी!”
“दादी माँ क्या उस काले देव का अन्त हो गया?” सब बच्चों ने इकट्ठे होकर पूछा|
बेटे उस काले देव का अन्त जरूर हो गया परन्तु उसकी आत्मा तो नर्क में चली गई| प्यासी आत्मा तो भटक रही थी| उसने तो सोनपरी को प्राप्त करने की प्रतिज्ञा कर ली थी| शनि का आशीर्वाद उसे प्राप्त था|
“तो फिर आगे क्या हुआ?”
सोनपरी की दूसरी कहानी तुम्हें कल सूनाऊँगी| अब रात बहुत हो गई है तुम लोग जाकर सो जाओ|