सुनहरी नदी का राजा - The Fisherman and the Fish

सुनहरी नदी का राजा – King of Golden River

एक गरीब मछुआरा अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ नदी के किनारे एक झोंपड़ी में रहता था| वह परिवार इतना गरीब था कि उनके पास खाने के लिए कुछ भी न था| हर रोज़ मछुआरा मछली पकड़ने नदी में जाता लेकिन उसके जाल में कोई मछली नहीं फँसती थी| शाम को उदास और हताश होकर वह घर की ओर लौट आता था|

एक दिन सुबह मछुआरा अपना भाग्य आजमाने के लिए पुन: घर से निकला| बहुत प्रतीक्षा के बाद उसे प्रतीत हुआ कि उसके जाल में कोई चीज़ फँस गई है| उसने जैसे ही जाल खींचा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा| जाल में एक सुनहरी मछली आ गई थी| इससे पहले कि वह खुश होता, मछली रोते हुए कहने लगी, “कृपया मुझे वापस पानी में डाल दो, मैं मरना नहीं चाहती|”

मछुआरे को उस पर दया आ गई| अपने भूख परिवार के बारे में न सोचते हुए उसने मछली को छोड़ दिया| मछली बहुत खुश हुई और बार-बार अपनी पूँछ को इधर-उधर हिलाकर उसे धन्यवाद देने लगी|

उस रात परिवार ने अपने लिए चावल उबाल कर उसके पानी का सेवन किया| वे खाना खाने बैठे ही थे कि उनके दरवाजे पर दस्तक हुई| उन्होंने देखा कि एक भूखा और थका हुआ बूढ़ा आदमी उनके दरवाजे पर खड़ा था| मछुआरे के परिवार ने उसका स्वागत किया| उसे खाने को चावल का सूप दिया तथा सोने के लिए एक चटाई दी| अगली सुबह वह बूढ़ा व्यक्ति अपनी राह चला गया|

इधर मछुआरा फिर एक बार जाल उठाकर मछली पकड़ने चल दिया| इस बार पुन: वही सुनहरी मछली उसके जाल में आ फँसी| मछली ने अपने जीवन के लिए याचना की और मछुआरे ने उसे फिर छोड़ दिया|

निराश मछुआरा अपने घर की ओर जाते हुए सोचने लगा कि वह अपनी पत्नी और बच्चों से क्या कहेगा| तभी उसका रास्ता राजसी वस्त्र पहने हुए एक व्यक्ति ने रोका| उस व्यक्ति ने मछुआरे से बोला, “मैं इस सुनहरी नदी का राजा हूँ| तुमने मुझे दो बार छोड़कर अपनी दयालुता दिखाई है| यही नहीं एक बार बूढ़ा आदमी बनकर मैं ही तुम्हारे घर आया था और तुमने मुझे अपने हिस्से का खाना दिया और सोने के लिए जगह भी दी|”

मछुआरा भौंचक्का सा उसे देखता रहा| वह आदमी आगे बोला “मैं एक श्राप के कारण मछली बन गया था और इस श्राप से मुक्ति मुझे तभी मिलती जब कोई दयावान व्यक्ति मेरे ऊपर दया करता| तुम्हारी सहृदयता ने मुझे मेरा मानवीय रूप वापस दिला दिया|”

सुनहरी नदी के राजा ने मछुआरे को खुश होकर बहुत से जेवर, उपहार और रहने के लिए एक घर दिया| राजा ने मछुआरे को मछलियों की रक्षा करने के लिए सुनहरी नदी का पहरेदार बना दिया| अब वह परिवार गरीब नहीं रहा और खुशी-खुशी अपना जीवनयापन करने लगा|

कथा सार: परोपकार ही सर्वोच्च धर्म है|

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