सब कुछ पहले ही की तरह था, लेकिन कमी थी तो उन चिड़ियों की चह-चहाहट की| वेद ने सोचा कि रंग-बिरंगे पंखों वाले उसके साथियों ने उससे मित्रता तोड़ दी है| फिर भी उसे अपने साथियों से मिलने की आशा थी| उसके मन में अनगिनत सवाल उठने लगे थे| रात होते ही उसकी मां ने उसे पढ़ने के लिए बोला, लेकिन वेद का मन पढ़ने में नहीं लग रहा था| उसे तो बस उसकी चीची की याद सता रही थी| वेज रोज की तरह दूध पीकर सोने चला गया| तभी पास वाली खिड़की से आवाज आई…वेद…वेद…|
वेद चौंककर उठ गया| उसके मन में सवाल आया कि इतनी रात को उसे कौन पुकार रहा है?
वेद ने पूछा, “कौन है?”
उधर से आवाज आई, “पहचाना नहीं वेद, मैं हूं चीची”
वेद जैसे ही खिड़की के पास गया| चाची को देखकर बड़ा ही प्रसन्न हुआ| जिस गौरया को लेकर सुबह से परेशान था, वह अब उसके सामने थी|
वेद ने बड़ी मासूमीयत से सवाल किया, “चीची, तुम मुझे छोड़कर क्यों चली गई| तुम इतनी रात को मेरे पास क्यों आई हो?”
चीची ने जवाब दिया, “मैं तुमसे मिलने आई हूं| मुझे तुम्हारी याद आ रही थी दोस्त|”
वेद ने पूछा कि क्या तुम पहले की तरह मेरे आंगन में नहीं आओगी?
चीची ने कहा, “नहीं”
यह सुनकर वेद की आंखें भर आई|
वेद ने फिर चीची से पूछा, “ऐसा क्यों दोस्त, क्या तुम्हें अब मेरी दोस्ती पसंद नहीं है?”
वेद का सवाल सुनकर चीची काफी दुखी हो गई, उसने कहा, “नहीं दोस्त, ऐसा नहीं है, हमें तो तुम्हारा साथ बहुत पसंद था| लेकिन आम के पेड़ कटने की वजह से मेरा आशियाना उजड़ चुका है|”
“दोस्त, पहले तो मेरा आशियाना उजड़ा, उसके बाद भोजन के भी लाले पड़ गए| एक दिन तुम्हारे गांव के तालाब में पानी पीने गए तो तालाब भी सूख चुका था| प्यास की वजह से हमारी हालत काफी खराब हो रही थी| पानी की खोज में हमने उड़ान भरनी शुरू की, लेकिन कोई तालाब नहीं मिला| आस-पास के सारे तालाब सूख चुके थे| इस दौरान हमारे कई साथी प्यास की वजह से दम तोड़ गए, तो कई हमसे हमेशा के लिए बिछड़ गए| पानी, भोजन और आशियाने की तलाश में हम इतनी दूर निकल चुके थे कि वापस आना मुश्किल था| लेकिन तुमसे मिलने की चाहत हमेशा बनी रही|”
चीची की बात सुनकर वेद काफी परेशान हो गया| उसने चीची को भरोसा दिलाया कि तुम्हे बुलाने के लिए हम कठिन प्रयास करेंगे| चीची से बात करते-करते वेद को नींद आ गई|
तभी वेद की दादी की आवाज आई…वेद…वेद उठो, सुबह हो गई| स्कूल नहीं जाना है क्या|
वेद आंखें मलते हुए खिड़की की तरफ दौड़ा, लेकिन उसे चीची नहीं मिली| जब वेद की नजर दादी पर पड़ी तो दादी ने धरती को प्रणाम करने के बाद सवाल किया, किसे ढूंढ रहे हो वेद?
वेद ने मायूसी के साथ कहा किसी को नहीं?
वेद ने तुरंत दादी से सवाल किया, “दादी, रोज सुबह तुम धरती को छूकर प्रणाम क्यों करती हो?”
दादी ने कहा, “जल्दी से तैयार हो कर स्कूल जाओ| नहीं तो देर हो जाएगी| स्कूल से लौटकर आओगे तो तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगी|
स्कूल से लौटने के बाद वेद दौड़ा हुआ अपनी दादी के पास गया और उन्हें अपना वादा याद दिलाया| दादी ने उसे अपनी गोद में बिठाते हुए बोली, “देखो बेटा, धरती हमारी मां है, यह हमारा पालन-पोषण करती है| पानी, भोजन, कपड़ा और मकान ये सभी धरती की ही देन है| इसीलिए मैं धरती को रोज प्रणाम करती हूं| लेकिन आज हम विकास के दौर में इतने अंधे हो गए हैं कि हम इस धरती की अहमियत को भूल गए हैं| हम अपने काम के लिए जहां तेजी से वनों को काट रहे हैं, वहीं तेजी से बढ़ती आबादी, जहर उगलने वाले उद्योगों और शहरीकरण के कारण मौसम में भी बदलाव आ रहा है| मिट्टी, जल और वायु प्रदूषित हो गया है| सूर्य के विकरण से सुरक्षा देने वाला ओजोन पर भी क्षय हो रहा है, जिसकी वजह से आज धरती मां के शरीर का तापमान बढ़ गया है| भूकंप, तूफान और सुनामी की वजह से जान-माल का काफी नुकसान हो रहा है| इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं| हम जिस डाल पर बैठे हो उसी डाल को काट रहे हैं|”
तभी वेद ने दादी मां को बीच में ही टोकते हुए कहा, “कहीं इसी कारण से गौरया का झुंड हमारी आंगन से तो नहीं चला गया, उसने चीची की सारी व्यथा दादी के सामने रख दी और फूट-फूटकर रोने लगा|”
पोते की आंखों में आंसू देखकर दादी भी संवेदनशील हो गई| उन्होंने कहा, “हां, वेद मेरी बूढ़ी आंखों ने देखा है, कैसे सब कुछ बदल गया है| पहले सब कुछ हरा-भरा था| तालाब का पानी कभी नहीं सूखता था| मैं फिर से गांव को उसी तरह देखना चाहती हूं| इसके लिए अब तुम्हारे साथियों की मदद की जरूरत है|”
वेद दौड़कर गांव में गया और अपने साथियों को बुला लाया| दादी ने वेद और उसके दोस्तों को धरती मां के साथ हो रहे अन्याय के बारे में बताया और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझाया|
दादी ने बच्चों से कहा कि पृथ्वी को बचाने और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर वर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है| पहली बार 22 अप्रैल, 1970 को तत्कालीन अमेरिकी सीनेटर गेलार्ड नेल्सन की अगुवाई में अमेरिका में ‘पृथ्वी दिवस’ मनाने के लिए बड़ा आयोजन किया गया, जिसे व्यापक जनसमर्थन मिला| इसके बाद से हर वर्ष पृथ्वी दिवस विश्व के करीब 180 देशों में मनाया जाता है|
तभी वेद ने दादी से सवाल किया, “दादी…दादी… हम लोग धरती मां को बचाने के लिए क्या कर सकते हैं?”
अपने पोते की जिज्ञासा को देखकर दादी काफी खुश हुईं| उन्होंने कहा कि पृथ्वी दिवस महज एक मनाने का दिन नहीं है| इस बात के चिंतन-मनन का दिन है कि हम कैसे अपनी वसुंधरा को बचा सकते हैं|इसे बचाने के लिए ऐसे कई तरीके हैं, जिसमें हम अकेले और सामूहिक रूप से अपना योगदान दे सकते हैं|
दादी की बात सुनकर बच्चों में काफी उत्साह का संचार हुआ| इस दौरान सभी बच्चों ने दादी की अगुवाई में पर्यावरण को बचाने के लिए गांव में पेड़ लगाने का संकल्प लिया| सबसे पहले वेद ने अपने घर से इसकी शुरुआत की और अपने कटे हुए आम के पेड़ की जगह नया आम का पौधा लगाया| बच्चों ने गांव में पेयजल की समस्या को दूर करने के लिए पुराने तालाब की सफाई और मरम्मत की और साथ ही गांव के सरपंच से नए तालाब खुदवाने की मांग की|
साथ ही बच्चों ने गांव की सफाई पर भी ध्यान दिया| ताकि धरती मां को स्वच्छ और सुंदर बनाया जा सके और दूसरों को भी स्वच्छता का संदेश दे सकें| बच्चों की लगन और मेहनत को देखकर गांव के दूसरे लोग भी उनके अभियान से जुड़ गए| कुछ दिनों के बाद वेद और उसकी दादी की मेहनत रंग लाई| गांव पहले की तरह हरा-भरा हो गया और तालाबों में पानी भी रहने लगा|
कुछ दिनों बाद, रविवार के दिन स्कूल की छुट्टी थी, वेद फिर अपने घर के सामने खेल रहा था| तभी उसकी नजर आम के पेड़ पर पड़ी, जहां चीची अपने पंख फड़-फड़ा रही थी, मानो जैसे वह वेद को धन्यवाद दे रही हो|