धर्मबुद्धि सहमत हो गया। दोनों ने पास के जंगल में जाकर एक गहरा गङ्का खोदा और अपना सारा धन उसमें गाड़ दिया। एक दिन पापबुद्धि गया और गद्दे से उसने सारा धन निकाल लिया। अगले दिन, वह धर्मबुद्धि के पास गया और बोला कि उसे कुछ धन की आवश्यकता है, इसलिए साथ चलकर जंगल से धन निकाल लिया जाए।
जब दोनों जंगल में पहुँचे तो उन्होंने पाया कि गा तो खाली है। पापबुद्धि जोर-जोर से रोते हुए कहने लगा, “धर्मबुद्धि, तुमने सारा धन चुरा लिया। उसमें आधा हिस्सा मेरा भी था। मेरा हिस्सा वापस करो।” हालाँकि, धर्मबुद्धि ने फौरन इन्कार कर दिया। पापबुद्धि नहीं माना और उस पर लगातार आरोप लगाता ही रहा।
दोनों का झगड़ा अदालत पहुँचा। वहाँ पर पापबुद्धि ने न्यायाधीश से कहा, “मैं गवाह के रूप में वनदेवता को प्रस्तुत कर सकता हूँ। वे ही तय करेंगे कि कौन दोषी है।” न्यायाधीश मान गए। उन्होंने दोनों से अगले दिन सुबह जंगल पहुँचने का आदेश दिया।
पापबुद्धि घर गया और अपने पिता से बोला, “पिताजी, मैंने धर्मबुद्धि का सारा धन चुरा लिया है। मामला अदालत में है। अगर आप सहायता करें तो मैं मुकदमा जीत सकता हूँ। आप जाइए और पेड़ के खोखले तने में छिप जाइए। कल सुबह जब न्यायाधीश वहाँ पहुँचेंगे तो मैं आपसे सचाई पूछूगा। आप कह देना कि धर्मबुद्धि ही चोर है।”
पिता को पापबुद्धि के षड्यंत्र में शामिल होने में झिझक हो रही थी लेकिन अपने बेटे के प्यार की वजह से वह आखिरकार राजी हो गया।
अगले दिन, जब धर्मबुद्धि और न्यायाधीशों के सामने पापबुद्धि पेड़ के पास गया और चिल्लाकर बोला, “हे वनदेवता, आप गवाह हैं। आप ही बताएँ, हम दोनों में से कौन दोषी है।”
पेड़ के खोखले तने में छिपा पिता ने जवाब दिया, “धर्मबुद्धि ने चुराया है सारा धन ।” धर्मबुद्ध को संदेह हो गया। उसने पेड़ के खोखले तने में घास-फूस भर दिया और उसमें तेल डालकर आग लगा दी। आग जली तो पिता पेड़ से निकलकर भागा।
“यह सब पापबुद्धि के शैतानी दिमाग की उपज है,” पिता ने न्यायाधीशों से स्पष्ट कह दिया।
राजा के सिपाहियों ने पापबुद्धि को गिरफ्तार कर लिया।