परिचय से मिलता है साहस

चालाक कौआ

एक कौआ था| वह शौकीन स्वभाव का था| एक दिन उसके मन में आया कि उसके पास एक टोपी होनी चाहिए| टोपी पहन कर वह दूसरों से अलग दिखेगा| वह तुरंत दर्जी के पास गया और बोला, “दर्जी भाई मेरे लिए एक टोपी बना दो” दर्जी ने कहा, “कपड़ा लाओ”| कौए के पास कपड़ा खरीदने के लिए पैसे तो थे नहीं| वह एक कपड़ा बेचने वाले के पास गया जो सड़क पर ढेरी लगा कर कपड़ा बेच रहा था| कौए ने उससे कहा, “ऐ कपड़े वाले मुझे टोपी बनवानी है, उसके लिए कपड़ा दे दो|” कपड़े वाले ने कहा, “पैसे लाओ” कौआ बोला, “जब घर जाऊंगा तब बीस रुपये लाऊंगा| दस तुझको दस मुझको|” कपड़े वाले ने एक कपड़े का टुकड़ा कौए को दे दिया| कपड़ा कौए ने दर्जी को दे दिया| दो दिन बाद जब कौआ दर्जी से टोपी लेने गया तो दर्जी ने उससे टोपी की सिलाई मांगी| कौए ने पुन: वही उत्तर दिया जो उसने कपड़े वाले को दिया था| बोला, “जब घर आऊंगा तब बीस रूपये लाऊंगा| दस तुझको दस मुझको|” दर्जी ने टोपी उसे दे दी| टोपी लगाकर कौआ बहुत खुश हुआ| उसने सोचा कि टोपी लगाकर वह राजा जैसा दिखता है| वह राजा के महल में गया| वहां राजा के नौकरों ने उसे महल में घुसने नहीं दिया| कौआ महल के सामने खड़े पेड़ पर बैठ गया और ऊंची आवाज में चिल्लाने लगा, “मैं राजा, मेरे सर पेट टोपी” “राजा ने उसकी आवाज सुनी तो राजा को बहुत क्रोध आया| उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया, “यह कौन है जो खुद को राजा बता रहा है?” कर्मचारियों ने देखा तो पेड़ पर कौआ चिल्ला रहा था, “मैं राजा मेरे सर पे टोपी|” कर्मचारियों ने सब हाल राजा को बताया| राजा ने आदेश दिया उस कौए की इतनी हिम्मत कि खुद को राजा बताता है| जाओ, उसकी टोपी छीन लाओ, राजा के कर्मचारी गये, कौए को पकड़ कर उसकी टोपी छीन ली और ले जा कर राजा को दे दी| टोपी छिन जाने से कौए को दुख तो हुआ पर उसने हिम्मत नहीं हारी वह पेड़ पर बैठ कर गाने लगा, “राजा कंगाल टोपी ले गया|” राजा ने सुना तो उसे बहुत क्रोध आया कि एक मामूली सा कौआ उसे कंगाल बता रहा है| उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि वे कौए की टोपी लौटा दें| राजा के कर्मचारियों ने टोपी कौए को वापस कर दी| कौए ने टोपी अपने सर पर रख ली और गाने लगा, “राजा डरपोक टोपी दे गया, राजा डरपोक टोपी दे गया|” राजा का क्रोध के कारण बुरा हाल हो गया| उसने सोचा यह कैसा ढीठ कौआ है| किसी तरह मानता ही नहीं| उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि वे कौए को पकड़ कर लायें और उसे मार कर उसकी सब्जी बनायें| राजा के कर्मचारियों ने जैसे ही कौए को पकड़ कर काटने का प्रयास किया तो वह बोला यह सारी कथा उसके परिवार को पता है| आप लोग एक टोपी के लिए मुझे मार दोगे तो कल यह कथा पूरा शहर जानेगा|

राजा दुखी हो गया| अब मामला उसके मान-सम्मान का था| उसने कौए से कहा “क्या चाहते हो जिससे मुंह बंद हो तुम्हारा|” कौए ने उससे बीस रुपये मांगे और उसे मुक्त करने को कहा|

राजा ने बीस रुपये दिए तो कौए ने फट से रुपये और टोपी उठाई और उड़ गया अपना उधार वापस करने|

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