बौने और दर्जी - The Dwarfs and Tailor

बौने और दर्जी – The Dwarfs and Tailor

बहुत समय पहले एक दर्जी रहता था, जो अपनी सिलाई कला के लिए प्रसिद्ध था और उसकी बड़ी माँग थी। फिर एक समय ऐसा भी। आया कि उसके ग्राहक कम होने लगे। लोगों ने उसकी सिलाई व कपड़ों के डिजाइनों को पुराने फैशन के कहना शुरू कर दिया था।

दजी के पास काम कम आने लगा, तो उसकी आय कम हो गई। गरीबी के दिन आने लगे। फिर उसे ऑर्डर मिलने बिल्कुल बंद हो गए। दर्जी की बीवी ने पूछा- “क्या हो गया है तुम्हें, क्यों सारे ग्राहक भाग गए?

दर्जी ने अपना गंजो सिर खुजाकर उत्तर दिया – “मैं क्या करूँ भागवान? अपनी तरफ से मेहनत तो बहुत करता हूँ। खैर, मैंने जैकेटों के नए डिजाइन सीने की सोची है। पर समस्या यह है कि कपड़ा खरीदने के लिए मेरे पास पैसे नहीं बचे हैं। बस, मेरे पास जितना कपड़ा बचा है, उससे एक जैकेट बन सकता है।”

शाम को उसने जैकेट का कपड़ा काट कर रख दिया। दूसरी सुबह सीने का कार्यक्रम बनाकर सो गया। दूसरे दिन प्रात: नाश्ता करने के बाद वह जैकेट सीने के लिए अपनी जगह बैठा, तो चकित रह गया। जैकेट सी दिया गया था। बहुत बढ़िया सिलाई की गई थी और जैकेट भी बढ़िया बना था।

“क्या चमत्कार है।” दर्जी अपनी बीवी से बोला – “मुझे पता ही नहीं था कि तुम इतनी बढ़िया सिलाई कर लेती हो।’ भावुक होकर दर्जी ने अपनी बीवी की माथा चूमा।

बीवी ने चौंककर कहा – “तुम किसलिए मेरी प्रशंसा कर रहे हो? मेरी समझ में कुछ नहीं आया।”

दर्जी ने कहा – “क्यों? क्या तुमने वह जैकेट नहीं सी, जब मैं सो रहा था? तुम मुझे बना रही हो।”

बीवी बोली – “नहीं! मैंने तो तुम्हारे कपड़े को हाथ भी नहीं लगाया। मुझे तो सिलाई ठीक से आती भी नहीं।”

दर्जी चकित था, ‘तो कौन रात को जैकेट सी गया?’

वह बातें ही कर रहे थे कि किसी ने दरवाजा खटखटाया।

वह एक ग्राहक था, जिसे एक जैकेट की आवश्यकता थी।

जैकेट देखते ही उसे पसंद आ गया और उसने मुँहमाँगे दामों पर जैकेट खरीद लिया।

इससे उत्साहित होकर दर्जी दो जैकेटों का कपड़ा खरीद लाया। कुछ पैसा खर्चे के लिए भी बच गया।

उसने फिर कपड़े की कटाई करके रख दी और सो गया।

दूसरे दिन वह उठा और देखा, तो फिर वही चमत्कार हुआ मिला। दोनों जैकेट सीकर तह किए रखे थे। फिर वैसी ही बढ़िया सिलाई की गई थी।

इस बार भी ग्राहक दरवाजे पर ही खड़े मिले। उन्होंने जैकेटों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और दोनों जैकेट मुंहमाँगे दाम देकर खरीद लिए।

वे बोले – “हमें ऐसे ही पाँच जैकेट और चाहिए। कब तक हमें दे सकोगे?”

दर्जी ने अपनी बीवी की ओर देखा।

बीवी ने उत्तर दिया – “जनाब, हम दिन-रात काम करेंगे और आपको पाँच जैकेट दो दिन बाद दे देंगे।”

ग्राहक संतुष्ट होकर चले गए।

दर्जी बाजार गया और पाँच जैकेटों का कपड़ा खरीद लाया।

फिर वही चमत्कार हुआ। दो दिन बाद ग्राहक आकर मुँहमाँगे दाम देकर जैकेट ले गए।

यही सिलसिला बहुत समय चला। दर्जी अब गरीब नहीं रह गया था। उसने काफी कमाई कर ली थी और सम्पत्ति भी जोड़ ली थी।

एक रात को दर्जी और उसकी बीवी ने राज का पता लगाने का निर्णय कर लिया। वह जानना चाहते थे कि उन पर इस प्रकार कृपा करने वाले कौन हैं? कोई देवता हैं या जिन-प्रेत?

सो वह उस रात अपने बिस्तरों पर जाकर नहीं सोए। सिलाई वाले कमरे में परदों के पीछे छिपकर खड़े हो गए। आधी रात का समय होगा। न जाने कहाँ से कमरे में पाँच बौनों ने प्रवेश किया| पहले तो वे एक दूसरे का हाथ पकड़कर गोलाई में नाचे। फिर वे बैठ गए और कटे हुए पीस उठाकर सिलाई करने में जुट गए।

दर्जी व उसकी बीवी अवाक् देखते रहे। उस दिन दर्जी ने दस जैकेटों का कपड़ा काट रखा था। देखते ही देखते बौनों ने सारे जैकेट सी डाले। उनके हाथ मशीनों की तरह चलते थे।

काम समाप्त होने पर वे उठ खड़े हुए और हाथों में हाथ डाल कर नाचने लगे। वे गा रहे थे –

“जाओ जाओ कह दो कोई दर्जी से,
मैं नाचू गाऊँ ऊपर वाले की मर्जी से,
उसने मुझे दिया है एक बेटा,
नन्हा-मुन्ना, गोल-मटोल बेटा,
सीनी है उसके लिए एक लंगोटी,
नीली, पीली, लाल, लंगोटी।”

बौनों के गाने ने दर्जी की बीवी पर इतना प्रभाव डाला कि उसने तुरंत उनके बच्चे के लिए एक लंगोटी सीने का निर्णय कर लिया। अच्छे से नर्म मुलायम कपड़े की लंगोटी।

काफी देर नाचने गाने के बाद बौने गायब हो गए।

दर्जी और उसकी बीवी को बौनों के बेटे के लिए छोटी-छोटी लंगोटियाँ सीने में सारा दिन लग गया। उन्होंने लगे हाथ बौनों के लिए भी कुर्ते, पाजामे, जैकेट और जुराबें सी डाली।

आधी रात के बाद पाँच बौने वहाँ न जाने कहाँ से प्रकट हो गए। दर्जी व उसकी बीवी परंदों के पीछे से देखते रहे।

बौनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नाचना शुरू कर किया।

नाच के बाद वे सिलाई के काम के लिए बैठे। उन्होंने कटे हुए पीस ढूंढे पर आज उन्हें बच्चे की लंगोटिया, बौनों के लिए विभिन्न कपड़े सिले हुए रखे मिले| वे देखते ही समझ गए कि वे कपड़े उनके लिए हैं|

उन्होंने फटाफट वे कपड़े पहन लिए और दर्पण में स्वयं को निहारने लगे विभिन्न कोणों से। दर्पण के सामने खूब धक्का-मुक्की हुई।

एक बौना बोला – “मैं जानता था कि दर्जी व उसकी बीवी बहुत भले लोग हैं। रहमदिल और उदार। देखो! उन्होंने हमारे बौने बच्चे के लिए कितनी प्यारी-प्यारी लंगोटियाँ सी रखी हैं।”

“हाँ, तुम ठीक कहते हो। हमारे कपड़े भी तो बहुत अच्छे बने हैं। अब हम अपने पुराने चीथड़े फेंक सकते हैं। दूसरा बोला|

“मैं तो उनसे जान-पहचान व दोस्ती करना चाहता हूँ।” तीसरे ने कहा|

“ठीक है। पर हमारा भेद नहीं खुलना चाहिए|” चौथे ने चेताया।

पाँचवाँ कुछ कह पाता, इससे पहले ही दर्जी व उसकी पत्नी परदों के पीछे से निकलकर सामने आ गए।

बौने कुछ सहम से गए। कुछ भयभीट भी लग रहे थे।

दर्जी की बीवी ने कहा – “कृपया डरिए मत। हमने जो कुछ किया, वह आप लोगों का आभार प्रकट करने के लिए किया है। आपने हमारे लिए जो किया है, वह ऋण तो हम कभी चुका नहीं पाएँगे। हम सदा आपके ऋणी रहेंगे।’

बुजर्ग बौने ने सामने आकर कहा – “आप दोनों बहुत दयालु और उदार हैं और ईमानदार भी। हमें ऐसे ही लोग भाते हैं। हमने आपकी ईमानदारी देखी और गरीबी के दिन भी। इसलिए आपकी सहायता करने का निर्णय लिया था।”

“उस सब सहायता के लिए अति धन्यवाद। हमारे पास जो धन-सम्पत्ति आज है, वह आप ही का दिया है। हम आपके लिए क्या कर सकते हैं?” दर्जी बोला।

पाँचवाँ बौना, जो अब तक चुप था, बोला – “उसकी चिंता मत करो। केवल औरों पर दया करते रहिए। वही काफी है।”

“हमारी एक प्रार्थना है।” दर्जी की बीवी ने कहा – “क्या हम आपके लंगोटी वाले बौने बच्चे को देख सकते हैं?”

“हाँ-हाँ क्यों नहीं? हम उसे कल ले आएँगे। उसकी माँ को भी।” बौने बच्चे के पिता ने कहा।

दूसरी रात दर्जी व उसकी बीवी परदों के पीछे नहीं छिपे।

वे कभरे में ही बैठे प्रतीक्षा करते रहे। उनके छोटे-छोटे मेहमान ठीक अपने समय पर आए। वे कुल सात थे। माँ व बच्चा भी आए थे न|

दर्जी की बीवी ने बच्चे को अपनी हथेली पर लेकर चूमा। मुर्गी का चूजा-सा लग रहा था। वह भी दर्जी की बीवी को देख मुस्कराया।

इस बार बौने नाचे, तो उनके नाच में दर्जी व बीवी भी शामिल हुए।

जब मेहमान जाने लगे, तो दर्जी व उसकी बीवी ने उन्हें अनेक उपहार दिए। बच्चे की माँ को उन्होंने अलग से उपहार दिए।

दर्जी की बीवी ने कहा – “हमसे डरिए मत। जब जी चाहो, मिलने आना। हम पर विश्वास रखिए। आप लोगों का रहस्य हम सीने में
छुपाए रखेंगे।”

बौने खुशी-खुशी गाना गाते हुए विदा हुए –

“जब जरूरत पड़े तब हमें बुलाना,
जरूरत न हो तो भी न भुलाना”

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