मुर्ख लोमड़ी - The Foolish Fox

मुर्ख लोमड़ी – The Foolish Fox

एक घने जंगल में एक छोटी-सी नदी बहती थी| उस नदी में एक चतुर कछुआ अपने मित्रों के साथ रहता था|

कई बार वे कछुए नदी के किनारे घूमने के लिए बाहर निकलते थे| एक दिन एक लोमड़ी खाने की तलाश में नदी के किनारे आई| नदी किनारे घूमते हुए कछुओं को देख उसकी जीभ लपलपाने लगी|

चालाक लोमड़ी दबे पाँव कछुओं के निकट एक झाड़ी में छिप गई और उनमें से किसी एक को दबोचने की ताक लगाए बैठ गई|

अचानक उसने मंद आवाज़ में छींका जिससे कछुओं को खतरे का अंदेशा हुआ और उन्होंने घूमकर चारों ओर देखा| उन्हें झाड़ियों में छिपी लोमड़ी दिखाई दी| वे तुरंत ही नदी में वापस लौट गए परंतु चतुर कछुआ उतनी तेजी से नहीं चल पाया और लोमड़ी ने उसे दबोच लिया| अपनी सुरक्षा हेतु कछुए ने अपने अंग अपने कवच में समेट लिए| लोमड़ी कवच के हर ओर दाँत मारते हुए उसे खाने की चेष्टा करती रही परंतु उसे कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई|

कछुए को एक उपाय सूझा| वह बोला, “प्यारी लोमड़ी! मेरा कवच बहुत सख्त है, वह आसानी से नहीं टूटेगा| इसलिए तुम मुझे पानी में धकेल दो| पानी में डूबकर यह कवच कुछ देर बाद नरम पड़ जाएगा| तब तुम मुझे आसानी से खा सकोगी|”

लोमड़ी को यह उपाय पसंद आया और उसने कछुए को पानी में धकेल दिया| कछुआ पानी में गिरते ही तैरकर नदी के बीचों बीच पहुँच गया और वहीं से चिल्लाकर बोला, “अरे लोमड़ी! इसमें कोई शंका नहीं कि तुम बहुत चालाक हो, परंतु तुम यह याद रखो कि तुमसे और चालाक जीव भी हो सकते हैं|”

कथा सार: चतुरता का अहंकार बुद्धि को क्षीण कर देता है|

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *