सियार की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे| तभी उसे एक उपाय सूझा| वह अपने आगे के पंजों से नगाड़े को जोर-जोर से बजाने लगा| उस नगाड़े की आवाज पूरे जंगल में गूँजने लगी| आवाज सुनकर एक चीता वहाँ आया| उसने सियार से पूछा, “तुम यह क्या कर रहे हो?”
“महाराज,” सियार ने बड़ी विनम्रता से कहा, “मुझे लगता है कि इस नगाड़े के अंदर कोई जानवर छिपा हुआ है|”
आपके पंजे और दांत बहुत पेने हैं| यदि आप इसके ऊपर की खाल को फाड़ देंगे तो आपको नगाड़े के अंदर बैठा शिकार मिल जाएगा| चीता स्वयं बहुत भूखा था| वह सियार की बातों में आ गया और उसने अपने भारी पंजों से नगाड़ें को फाड़ दिया| नगाड़ा बड़ी जोर की आवाज के साथ फट गया| परंतु यह क्या हुआ? उसके अंदर तो कोई जानवर ही नहीं था| वह तो अंदर से खाली निकला| अब चीते को बहुत गुस्सा आया| वह जोर से दहाड़ कर बोला, “तुमने मेरा सारा समय नष्ट कर दिया| इसमें तो कोई खाना नहीं है| मुझे भूख लगी है और अब मैं तुम्हें मारकर खा जाउँगा|” सियार जब तक अपनी जान बचाता चीते ने तुरंत ही उसे दबोच लिया और मारकर खा गया|
कथा सार: लालच बुरी बला है|