सियार और नगाड़ा - The Jackal and the Drum

सियार और नगाड़ा – The Jackal and The Drum

एक बार जंगल में एक सियार रहता था| एक दिन वह बहुत भूखा था और खाना ढूँढने के लिए इधर-उधर घूम रहा था| उसको रास्ते में एक पेड़ के नीचे एक नगाड़ा पड़ा मिला| हल्की हवा के कारण पेड़ की एक डाल लगातार नगाड़े से टकराते हुए एक आवाज उत्पन्न कर रही थी| सियार ने नगाड़ें का चारों तरफ से निरिक्षण किया फिर अपने आगे के पंजों से उसे बजा कर देखा| वह बहुत अचंभित हुआ| उसने पुन: नगाड़े पर मारा| उस नगाड़े से फिर आवाज आई| वह सोचने लगा कि अवश्य उसके अंदर कोई छोटा-सा जानवर बैठा है जो आवाज निकाल रहा है| सियार ने सोचा यदि वह जानवर उसकी पकड़ में आ जाए तो क्या बढ़िया स्वाद आएगा| यह सोचते ही उसके मुँह में पानी आ गया| उसने नगाड़े को फाड़ने की बहुत कोशिश की परंतु नगाड़े का ऊपरी हिस्सा बहुत मजबूत था|

सियार की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे| तभी उसे एक उपाय सूझा| वह अपने आगे के पंजों से नगाड़े को जोर-जोर से बजाने लगा| उस नगाड़े की आवाज पूरे जंगल में गूँजने लगी| आवाज सुनकर एक चीता वहाँ आया| उसने सियार से पूछा, “तुम यह क्या कर रहे हो?”

“महाराज,” सियार ने बड़ी विनम्रता से कहा, “मुझे लगता है कि इस नगाड़े के अंदर कोई जानवर छिपा हुआ है|”

आपके पंजे और दांत बहुत पेने हैं| यदि आप इसके ऊपर की खाल को फाड़ देंगे तो आपको नगाड़े के अंदर बैठा शिकार मिल जाएगा| चीता स्वयं बहुत भूखा था| वह सियार की बातों में आ गया और उसने अपने भारी पंजों से नगाड़ें को फाड़ दिया| नगाड़ा बड़ी जोर की आवाज के साथ फट गया| परंतु यह क्या हुआ? उसके अंदर तो कोई जानवर ही नहीं था| वह तो अंदर से खाली निकला| अब चीते को बहुत गुस्सा आया| वह जोर से दहाड़ कर बोला, “तुमने मेरा सारा समय नष्ट कर दिया| इसमें तो कोई खाना नहीं है| मुझे भूख लगी है और अब मैं तुम्हें मारकर खा जाउँगा|” सियार जब तक अपनी जान बचाता चीते ने तुरंत ही उसे दबोच लिया और मारकर खा गया|

कथा सार: लालच बुरी बला है|

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