बहुत समय पहले किसी नगर में एक बहुत बड़ा हाथी रहता था। हाथी बेहद धार्मिक व आस्थावान था और रोज मंदिर के सामने जाकर पूजा भी किया करता था। भारी-भरकम शरीर होने के बावजूद उसके दिल में प्यार भरा हुआ था। सभी लोग उससे प्रेम करते थे और खाने के लिए तरह-तरह के फल देते थे। उस हाथी की एक आदत यह भी थी कि वह मंदिर आने-जाने के लिए रोज एक ही रास्ता इस्तेमाल किया करता था। मंदिर जाने के रास्ते में हाथी को नगर के व्यस्त बाजार से होकर गुजरना पड़ा था। बाजार में बैठने वाला एक फूल वाला रोज उसको गेंदे के फूलों की माला पहना देता था, जबकि फल विक्रेता उसे फल खाने को देता था। वह हाथी भी इसके लिए दोनों का आभार प्रकट करता था। बाजार के बहुत से लोग हाथी के पास एकत्र हो जाते और उसे प्यार से थपकी देने लगते। सबके मन में हाथी के लिए बेहद सम्मान था।
सब कुछ पहले की तरह ही चल रहा था, लेकिन इंसान के मन में क्या है, इसे भला कौन जान सकता है। एक दिन न जाने क्यों फूल बेचने वाले को हाथी से मजाक करने की सूझी। उस दिन हाथी जब उसकी दुकान पर आया तो उसने उसकी सूंड़ में माला पहनाने की जगह सुई चुभो दी। दर्द के मारे छटपटाता हुआ हाथी जमीन पर बैठ गया। कुछ लोग उसके आसपास एकत्र होकर हंसने लगे।
फूल वाले की यह हरकत हाथी को बेहद बुरी लगी। उस दिन वह मंदिर भी पूजा करने नहीं गया। कुछ देर बाद वह कीचड़ भरे एक तालाब पर पहुंचा और ढेर सारा गंदा पानी अपनी सूंड में भर लिया और फूल वाले की दुकान पर वापस आ पहुंचा। वहां आकर उसने अपनी सूंड में भरा हुआ सारा कीचड़ फूलवाले और उसकी दुकान में फेंक दिया। फूल वाले का सारा सामान बरबाद हो गया। कुछ भी बिकने लायक नहीं बचा।
अब फूल वाला पछताने लगा कि उसने ऐसी गलती क्यों की। लोगों ने भी उसकी करनी पर उसे धिक्कारा। नुकसान जो हुआ सो अलग। फूल वाले को अपनी करनी का फल मिल गया।