परिचय से मिलता है साहस

टोटो के कारनामे

एक दिन दादाजी तांगे वाले से पांच रुपये में टोटो को खरीदकर ले आये| तांगे वाला इस छोटे लाल बंदर को टट्टू के चारे-पानी की हौद से बांधकर रखता था| बंदर बहुत ही उदास दिखाई देता था| दादाजी ने उसे घर लाने का फैसला किया जबकि घर में पहले से ही बहुत से पालतू जानवर थे|

टोटो सुंदर बंदर था| उसकी चमकीली आंखों में शैतानी भरी रहती थी| और वह प्राय: खींसे निपोरकर अपने मोतियों से चमकते सफेद दांत दिखाता रहता था| उसके हाथ इतने शुष्क हो गये थे जैसे वह वर्षों तक धूप में ही रहा हो| लेकिन उसकी उंगलियां तेजी से चलती थीं| पूंछ तो उसकी सुंदरता में चार चांद लगा देती थी और यह उसके तीसरे हाथ का काम करती थी| दादाजी का कहना था कि पूंछ से तो सभी की सुंदरता बढ़ जाती है| पूंछ का उपयोग वह शाखाओं पर झूलने और ऐसे फल आदि को तोड़ने के लिए करता था जो उसके हाथों की पकड़ से दूर होते थे|

जब दादाजी किसी भी नये प्राणी को घर में ले आते तो दादाजी हमेशा ही बतंगड़ बना देती थीं| इसलिए दादाजी और मैंने फैसला किया कि जब तक दादाजी अच्छे मूड में न हों तब तक टोटो को छुपाकर रखा जाये| हमने उसे एक छोटी से कोठरी में बंद कर दिया| कोठरी का दरवाजा मेरे कमरे में खुलता था और टोटो कोठरी में आनाकानी किए बिना ही चला गया|

कुछ घंटों के बाद दादाजी और मैं टोटो का हाल-चाल जानने गये| हमने देखा कि दीवार पर दादाजी की पसंद के लगे सजावटी कागज उधड़े पड़े हैं और दीवार पर ईंटें व पलस्तर साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं| दीवार पर लगी खूंटी उखड़ी पड़ी है और वहां टंगा मेरा स्पोर्ट्स कोट तार-तार हो चूका है|

दादाजी, बंदर की करतूत से खुश नजर आये| उन्होंने कहा, “काफी होशियार है| यदि इसे और समय मिलता तो यह तुम्हारे कोट के फटे टुकड़ों से रस्सी बनाता और खिड़की से बाहर भाग जाता|”

फिर टोटो को बगीचे में बनाए गये बाड़े में रखा गया| वहां दादाजी के और कई पालतू जानवर भी थे| लेकिन इस बंदर ने वहां के अपने किसी भी साथी यानी कछुए, खरगोश के जोड़े और खच्चर को उस रात सोने नहीं दिया|

आख़िरकार जब दादीजी टोटो को रखने के लिए राजी हो गयीं (हालांकि दादाजी झुंझलाई, लेकिन उनमें दादाजी के जानवरों को निकालने की हिम्मत नहीं थी) और टोटो को बाड़े में बढ़िया जगह मिल गयी|

सर्दियों की शाम को टोटो के लिए सुखद क्षण तब आता था, जब दादी जी उसे गर्म पानी से नहलाती थीं| पानी के बड़े टब में घुसने से पहले टोटो उंगलियों से परखता था कि पानी कितना गर्म है| फिर धीरे-धीरे वह पानी में घुसता था| पहले वह एक पैर और फिर दूसरा पैर टब में डालता था (ऐसा उसने मुझे करते देखा था)| इसके बाद वह पूरा ही पानी में घुस जाता था और केवल उसकी गर्दन ही पानी से बाहर होती थी| ठीक से बैठने के बाद वह साबुन को हाथ से पूरे शरीर में मलता था|पानी ठंडा होने के बाद वह बाहर निकल आता था और तेजी से भागकर रसोई में चूल्हे के सामने अपने बदन को सुखाता था| उस समय यदि उस पर कोई हंस देता था तो उसे बुरा लग जाता था और वह नहाने को तैयार नहीं होता था|

एक दिन ऐसा हुआ कि चाय बनाने के लिए पानी से भरी डेगची चूल्हे पर ही रह गयी| टोटो को और कोई काम नहीं सूझा तो उसने देगची का ढक्कन हटाने की सोची| पानी नहाने लायक गर्म था, अत: वह उसमें घुस गया| बाहर सिर्फ उसका सिर दिखाई दे रहा था| कुछ देर तो सब ठीक-ठाक रहा, लेकिन बाद में पानी उबलने लगा| टोटो थोड़ा उठा, लेकिन बाहर ठंड होने के कारण फिर से उसमें बैठ गया| कुछ समय तक वह वहीं हाथ-पांव मारता रहा| आखिरकार दादाजी आये और उसे अधझुलसी हालत में बाहर निकाला|

यदि दिमाग में कोई ऐसा भाग होता है जो सिर्फ शैतानी के लिए हो तो कहा जा सकता है कि टोटो का यह भाग बहुत ही विकसित था| दादाजी को भी मानना पड़ा कि उस जैसे जानवर को बहुत लंबे समय तक नहीं रख सकते| हम बर्तनों, कपड़ों व वाल-पेपर के नुकसान को बार-बार सहन नहीं कर सकते थे| लेकिन हम तांगे वाले को भी टोटो नहीं लौटाना चाहते थे| एक दिन हमारी समस्या हल हो गयी| एक दिन एक महात्मा हमारे घर पधारे और उन्होंने कहा कि वे अपने पवित्र बंदर को खोजने आये हैं|

दादाजी ने कहा, “हमारे पास बंदर तो है, लेकिन पवित्र होने की बजाय वह ज्यादा अपवित्र है|”

महात्मा जी ने कहा, “मेरा बंदर बहुत पवित्र था| छह महीने पहले उसे कोई चुराकर ले गया| बाद में पता लगा कि वह बाजार में तांगे वाले के पास है| उसने बताया कि उसने वह बंदर एक साहब को बेच दिया जिनके घर में चिड़ियाघर है|”

एक ही साहब ऐसे थे जिनके घर में चिड़ियाघर था और वह मेरे दादाजी थे|

दादाजी ने कहा, “हां, मैंने बाजार से बंदर खरीदा है और आप देख सकते हैं कि वह आपका है या नहीं|”

इतने में ही टोटो बरामदे में आ गया| उसने गेरुए वस्त्र वाले महात्मा जी को देखा और खुशी से किलकारी भरी| फिर वह उनके कंधों पर चढ़ गया| “क्या यह आपका ही बंदर है?” दादाजी ने पूछा| “और क्या यह वास्तव में पवित्र है?” मैंने पूछा| मैं सोच रहा था कि क्या कोई शैतान लड़का भी पवित्र हो सकता है!

“बहुत पवित्र है,” महात्मा जी ने कहा|

“आप इसे ले जा सकते हैं,” दादीजी ने कहा|

दादाजी की इच्छा थी कि उन्हें टोटो के बदले पांच रुपये मिल जायें, लेकिन हुआ यह कि उन्हें महात्मा जी को पांच रुपये दान में भी देने पड़े| महात्मा जी ने हमें आशीर्वाद दिया| मैंने टोटो को केले दिए और उसने मुझे स्नेह से देखा| इस प्रकार दादाजी को राहत मिल गयी|

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