परिचय से मिलता है साहस

उदारता की सीमा

निखिल सातवीं कक्षा में पढ़ता था| वह एक होनहार और समझदार बालक था| उसके मम्मी-पापा उसे हमेशा अच्छी बातों की सीख देते रहते थे| उसने अच्छे गुण अर्जित कर लिए थे – हमेशा सच बोलना, परिश्रम करना, बड़ों का आदर करना, गाली-गलौज नहीं करना तथा दूसरों की सहायता करना आदि| वह प्रतिदिन जल्दी उठता और स्वयं तैयार होकर, मम्मी द्वारा तैयार किया गया नाश्ता करके समय पर स्कूल के लिए निकल जाता|

निखिल को दूसरे लोगों की सहायता करना अच्छा लगता था| वह उदार प्रवृत्ति का था| उसका कोई सहपाठी अथवा मित्र उसकी किसी चीज की प्रशंसा करते हुए कहता कि निखिल यह चीज कितनी बढ़िया है, तो निखिल तुरंत वह वस्तु उसे दे देता था|

एक दिन उसके पापा उसके लिए बहुत अच्छा सा एक पेन लेकर आए और निखिल को देते हुए बोले – “बेटा निखिल तुम्हारे लिए मैं एक अच्छा सा पेन लेकर आया हूं| बेटा इसे हिफाजत से रखना| मासिक परीक्षा आने वाली है, अत: तुम्हारे पास दो पेन होना जरूरी है|”

निखिल को पापा के द्वारा दिया गया यह पेन बहुत पसंद आया| कुछ ही दिनों बाद मासिक परीक्षा टेस्ट शुरू हो गए| उस दिन अंग्रेजी विषय का टेस्ट था| अचानक निखिल के पास बैठे हुए विकास का पेन उसके हाथों से फिसल कर होकर नीचे फर्श पर गिर गया| पॉइंट खराब हो जाने के कारण पेन चलना बंद हो गया| उसने निखिल से पूछा, “निखिल तुम्हारे पास दूसरा पेन है क्या? मेरा पेन खराब हो गया|”

निखिल ने तुरंत अपना बढ़िया वाला पेन दे दिया| यह वही पेन था जो उसके पापा उसके लिए लाए थे| टेस्ट समाप्ति पर विकास ने कहा, “शुक्रिया निखिल तुमने अपना पेन देकर मेरी मदद की| वैसे मित्र यह पेन है बहुत अच्छा| कितना स्मूथ चलता है, और राइटिंग भी इससे बहुत अच्छी आती है| मैं भी बिल्कुल ऐसा ही पेन खरीदूंगा|”

“अरे खरीदने की क्या जरूरत है| तुम इसे ही रख लो| मेरी तरफ से इसे उपहार समझो|”

इसी प्रकार निखिल अपनी कई चीजें जैसे पेन, रबर, खाने-पीने की चींजे, स्टोरी बुक, शार्पनर आदि, अपने साथियों को दे देता था| उसकी इस उदारता का अनुचित लाभ कुछ साथी उठाते थे| उसके मम्मी-पापा ने भी उसे समझाया था कि वह अपनी चीजें यूं ही साथियों को न दिया करे| हां, यदि वास्तव में किसी की जरूरत हो तो अवश्य ही उसकी सहायता करनी चाहिए| और उनका काम हो जाए तो अपनी चीज वापस ले लेनी चाहिए|

उस दिन इतवार था| सुबह के समय निखिल के पापा गुनगुनी धूप में बैठे हुए अखबार पढ़ रहे थे| पास ही बैठा निखिल अपनी छोटी बहन शिखा के साथ बाल-पत्रिका पढ़ रहा था| मम्मी अंदर रसोईघर में सबके लिए नाश्ता तैयार कर रही थीं| तभी सड़क पर एक मदारी बंदर लेकर आया और डुगडुगी बजाकर बच्चों को आकर्षित करने लगा| मदारी को आया देख बहुत सारे बच्चे सड़क पर जमा हो गए| मदारी डुगडुगी बजाने लगा| उसके दूसरे हाथ में डंडा था| डंडे के लहराते ही बंदर नाचने-कूदने लगता था| निखिल और शिखा घर के गेट पर खड़े होकर ही बंदर का तमाशा देखने लगे| कुछ देर तमाशा दिखाने के बाद मदारी पैसा इकट्ठे करने लगा|

मदारी निखिल के पापा के पास भी आया| गेट पर खड़े होकर उसने कहा, “बाबूजी कुछ पैसा मिल जाए|”

निखिल के पापा ने अखबार से नजरें उठाकर मदारी की ओर देखा और कहा, “किस बात के पैसे चाहिए तुम्हे? एक बेजुबान जानवर को पकड़ कर उस पर जुल्म करने के लिए? जानते हो तुम्हें इस कार्य के लिए सजा भी हो सकती है|

“बाबूजी पेट के लिए सब करना पड़ता है|

“तुम यहां से चले जाओ वरना पुलिस को खबर करनी पड़ेगी| भविष्य में यहां नजर भी मत आना|”

निखिल के पापा के यह कहते ही मदारी वहां से रफूचक्कर हो गया|

कुछ ही देर बाद वहां एक भिखारी आया और यह कहकर भीख मांगने लगा, “बाबूजी दया करो| गरीब आदमी हूं… कुछ पैसा और गर्म कपड़ा मिल जाए|”

निखिल के पापा ने देखा, भीख मांगने वाला व्यक्ति काफी स्वस्थ और युवा दिखाई दे रहा था| उसके हाथ-पांव भी सलामत थे| उन्होंने कहा, “अरे तुम भीख क्यों मांग रहे हो? तुम तो अच्छे खासे दिख रहे हो| जाओ मेहनत करो, इस तरह भीख मांगना अच्छी बात नहीं है|”

“बाबूजी मैं बीमार हूं| मैं काम-काज नहीं कर सकता| भगवान आपका भला करे| दो-पांच रुपये मिल जाएं तो बड़ी कृपा होगी|”

“मुझे तो तुम कहीं से भी बीमार नहीं दिखाई नहीं दे रहे हो| भिखारी ने  पुन: गिड़गिड़ा कर कहा, “बाबूजी मैं सच कह रहा हूं, दो दिन से अन्न का एक दाना भी पेट में नहीं गया है|”

अचानक निखिल ने पापा के पास आकर कहा, “पापा कृपया इसकी सहायता कीजिए, देखिए किस तरह गिड़गिड़ा रहा है बेचारा| पापा जी इसे पांच रुपये दे दीजिए| मेरे पास पांच रुपये का सिक्का है, मैं दे दूं क्या पापा?”

“लेकिन निखिल…|”

“पापा प्लीज आप ही तो कहते हैं हमें गरीबों व दुखियों की सहायता करनी चाहिए|”

“हां पापा…|” छोटी शिखा ने पापा से प्यार से लिपटते हुए कहा|

“ठीक है बच्चों तुम देना ही चाहते हो तो दे दो पर इतना जान लो कि इन्हें सहायता की जरूरत नहीं है|”

पापा से स्वीकृति मिलते ही निखिल जल्दी से घर के अंदर गया और पांच रुपये लाकर भीख मांग रहे व्यक्ति को दे दिए|

उसी शाम निखिल अपने पापा के साथ सब्जी मार्किट गया| उन्हें रास्ते में सड़क के एक और तीन चार भिखारी दिखाई दिए| निखिल और पापा जब उनके पास से गुजर रहे थे तो उन लोगों में बैठे उस भिखारी को उन्होंने पहचान लिया जो सुबह उनके दरवाजे पर आकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांग रहा था| निखिल को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वे लोग जुआ खेल रहे थे| वही भिखारी कह रहा था, “आज लोगों को खूब बेवकूफ बनाया| रोनी सूरत बना कर गिड़गिड़ाया तो कई लोगों ने पैसा दिया| पूरे 400 रूपये मिल गए| आज जम कर मस्ती करेंगे|”

पापा ने निखिल से कहा, “देख लो निखिल यह वही भिखारी है जो सुबह हमारे दरवाजे पर गिड़गिड़ा कर भीख मांग रहा था| मैं मना कर रहा था पर तुमने तरस खाकर इसे पांच रुपये दे दिए थे| देखो भीख में मिले पैसों का वह कैसा दुरुपयोग कर रहा है|” निखिल ने खेदपूर्ण स्वर में कहा, “पापा सचमुच मुझसे गलती हो गई, मुझे पता नहीं था कि यह ऐसा होगा…|”

पापा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा हमेशा याद रखो कि सब मोहताज नहीं होते| चालाक और धूर्त लोग ऐसे ही लोगों को धोखा देते हैं| बेटा दूसरों की सहायता करना बुरी बात नहीं है| सहायता उसकी करो जिसे इसकी जरूरत हो| लोग तुम्हारी उदारता का अनुचित लाभ उठाते हैं| तुम्हारे मित्र तुम्हारी प्रशंसा करके तुमसे चीजें ऐंठ लेते हैं| बाद में वे तुम पर हंसते होंगे|”

पापा की बात सुनकर निखिल को अपनी गलती का अहसास हो गया| उसने निश्चय कर लिया कि वह अति उदारता से बचेगा और उसी की सहायता करेगा जिसे सचमुच सहायता की जरूरत हो|

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