अब इतवार का दिन आ गया जब कैंप को ले जाने वाली बस में तीस लड़कियां जोश के साथ बैठी| ‘भारत माता की जय’ के साथ बस रवाना हुई| सबने मिलकर बहुत देर तक गीत गाये पर उसके बाद थकी लड़कियां नींद की आगोश में समाने लगीं और सन्नाटा पसर गया| तभी बस की गति धीरे हो गई और इंचार्ज (अध्यापिका) मिसेज भटनागर और कुमकुम मैडम ने कहा, “देखो इस चट्टान पर एक छोटी सी चाय की दुकान है| तुम लोग चाय पी लो, फिर आगे बढ़ेंगे| चाय पीकर गिलास इधर-उधर नहीं फेंकने हैं, सब कूड़े की पेटी में ही डालना|” मैम के आदेशानुसार एक भी कागज का टुकड़ा नीचे नहीं गिरा| बस थोड़ी देर में आगे रवाना हो गई|
बस पहाड़ी घुमावदार रास्ते के कारण धीमी गति से चल रही थी| ऋषिकेश से थोड़ा आगे वे बढ़कर उस स्थान पर पहुंच गये जहां कैंप लगाना था| बस से नीचे उतरने ही आभा पहाड़, हरे-भरे लंबे पेड़, रंग-बिरंगे गोल पत्थर, नदी की तेज धारा देखकर मंत्र मुग्ध हो गई| सहेली दीपा से बोली, ‘देखो कितना सुंदर दृश्य है|’ तभी दीपा ने बस से उतरकर पेडों के बीच गंदगी प्लास्टिक और कूड़े की ओर इशारा किया और बोली “खूबसूरत दृश्य प्रकृति का और ये गंदगी देखो मानव की देन है|” दोनों चुप हो गये| मिसेज भटनागर ने आदेश दिया कि दस-दस लड़कियों की तीन टोलियां होंगी, अपनी-अपनी सहेली चुन लो| हर खेल और कार्यक्रम पर नंबर दिए जाएंगे| अब चलते रात के भोजन की तैयारी करो| रात को तंबू में सोते समय मिसेज भटनागर ने पूछा, “तुम लोगों को घर की याद तो नहीं आ रही है?” कुछ लड़कियों ने ‘हां’ में उत्तर दिया और कुछ ने असहमति जताई|
कुमकुम मैडम ने अगले दिन सबको उठाते हुए कहा चलो बाहर भोर का दृश्य देखकर आते हैं| जब तक पहली नंबर की टोली नाश्ता तैयार करेगी| दोनों अध्यापिकाओं ने लड़कियों को कुछ पेड़ों और कुछ फूलों के बारे में बताया और पेड़ों के बीच बने पक्षियों के तरह-तरह के घोंसले दिखाये| भोर में शौच करते लोगों को देख मैडम ने बीमारयों की सूची गिनाने के साथ-साथ बच्चियों को शौचालय में ही जाने की सलाह दी| कैंप में पहुंचने के बाद टोली नंबर एक ने पहले से जो गर्म-गर्म दलिया तैयार किया था, सबने बड़े मजे में खाया| टोली नंबर दो कैंप की साफ-सफाई में लग गई और टोली नंबर तीन खाना पकाने के लिए चली गई|
खाना खाने के बाद पोस्टर प्रतियोगिता में सब लड़कियों ने भाग लिया| पोस्टर का विषय था ‘प्रकृति की मोहकता’| खुशी को प्रथम पुरस्कार मिला| उसने पक्षियों का पंखों का संकलन कर पेड़-पौधों की पत्तियों को एकत्रित कर उसने प्रकृति का सुंदर दृश्य बनाया|
एक दिन सभी हल्की सुनहरी धूप में चमचमाती नदी के किनारे गोल पत्थर पर बैठे एक-दूसरे को पानी के छीटों से भिगो रहे थे| कुछ लड़कियां नमकीन के पैकिट खा रही थीं जिन्हें मैडम द्वारा बार बार चेतावनी दी जा रही थी कि यहां गंदा नहीं करना है| नदी इतनी स्वच्छ थी कि नीचे उसमें गोल पत्थर चमचमा रहे थे| दीप्ति नदी की स्वच्छता देखकर बोल उठी, “अध्यापिका नदी चमचमा रही है|” अध्यापिका ने उसकी बात को काटते हुए कहा, “यह हम सबके कारण गंदी हो जाती है| यहां पूरे शहर का कचरा डालकर हम शहर तो स्वच्छ कर लेते हैं पर नदी गंदी कर देते हैं| बच्चों! तुम लोग अंजलि में जल भर कर संकल्प करो कि तुम अपने स्तर पर नदी को गंदा नहीं करोगे|” लड़कियां नदी के तट पर आईं| नदी को प्रणाम कर सबने नदी स्वच्छ रखने का संकल्प लिया| लकड़ी के पुल पर चढ़कर सबने एक-दूसरे की फोटो खीचें और फिर टैंट में लौट आये|
हर दिन रात को गीतों से कैंप गूंज उठता| अलका के गिटार की ध्वनी तो पूरे कैंप को रोमांचित कर देती| दिन हंसते-गाते टैंट की सफाई करते, खाना बनाते निकलते जा रहे थे| कैंप समाप्त होने के तीन दिन बाकी थे| मैडम ने भोर में नाश्ते के समय कहा कि आज रात को कैंप फायर होगा जिसमें नाच, गाने, कविता, चुटकले और फैन्सी ड्रेस की प्रतियोगिता होगी| वातावरण तालियों से गूंज उठा| रात को कैंप फायर में सबने उमंग के साथ हिस्सा लिया| आशा ने वीर शहीदों पर काव्य पाठ करके वातावरण को स्तब्ध कर दिया| तभी अध्यापिका ने घोषणा की कि पूरी मस्ती के बाद अब तीन दिन ऋषिकेश के महत्वपूर्ण स्थानों और मंदिरों की सफाई करनी है| सभी लड़कियां सहमत है या नहीं? यह सुन सभी ने खुशी से अपनी सहमती ने प्रकट की| अगले दिन सुबह चार बजे से सभी अध्यापिकाएं और छात्राएं झाड़ू, बाल्टी झाड़न और फटे पुराने कपड़ों के साथ गंगा किनारे के प्राचीन मंदिरों में मौजूद थीं| असीम उत्साह के साथ सफाई अभियान आरंभ हुआ| बच्चियों का उत्साह देखते ही बनता था| मंदिर के पुजारी समुदाय भी उन्हें सहयोग करने लगे| जैसे-जैसे समय बढ़ा, भक्तों की संख्या भी बढ़ने लगी| बच्चियां उन्हें बताने लगीं कि कौन-सा सामान किस तरह इस्तेमाल कर कहां रखें| कहां क्या व्यर्थ है और व्यर्थ सामन कहां फेंकना है| भक्त भी बच्चियों के साथ सफाई में जुट गए| जो वहां आया काम में लग गया| छोटी-सी शुरुआत सबका उद्देश्य बन गई| दिवारें, परिसर, मूर्तियां, भवन धीरे-धीरे सबके पुरानी चमक लौटने लगी| सबके चेहरों पर मुस्कान थी, पर्यटन अब सफल हो गया था|